Friday 29 August, 2008

जो शांति ला सकते हैं, वे ही लूप के बाहर!!!

वो डंके की चोट पर कहते हैं कि कंधमाल के जंगलों में बसे आश्रम में जन्माष्टमी के दिन स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या माओवादियों ने की है। लेकिन स्वामीजी के बाद आश्रम की बागडोर संभालनेवाले ब्रह्मचारी शंकर चैतन्य का कहना है कि माओवादी कभी ऐसा कर ही नहीं सकते। किसको सही माना जाए? कुछ पूर्व पुलिस अधिकारी भी मानते हैं कि हमले के अंदाज़ से नहीं लगता कि माओवादी ने लक्ष्मणानंद को मारा है। फिर जिन पांच हमलावरों को आश्रमवालों ने उस दिन पकड़ा है, उनमें से कोई भी माओवादी नहीं है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि उड़ीसा की बीजेपी-बीजेडी सरकार माओवादी हिंसा से नहीं निपट पाई है और वह स्वामी की हत्या में माओवादियों का हाथ बताकर चुनावी लाभ बटोरना चाहती है।

ब्रह्मचारी चैतन्य भी राज्य सरकार पर निशाना साध रहे हैं। उनका कहना है, “हमने राज्य सरकार को 30 बार लिखा था कि स्वामीजी और हमारा जीवन खतरे में है, कि ईसाई नेता हमें धमकी दे रहे हैं। हादसे से पहले हमें स्वामीजी को मारने का धमकी भरा पत्र मिला था। हमने औपचारिक तौर पर पुलिस और ज़िला प्रशासन से शिकायत की। लेकिन उन्होंने चार लाठीधारी कांस्टेबल भेजकर इतिश्री कर ली।” चैतन्य को यह भी शिकायत है कि घटना के बाद सरकार में शामिल बीजेपी तक का कोई मंत्री आश्रम में झांकने नहीं आया। लेकिन इससे भी तकलीफ चैतन्य को इस बात की है कि शांति प्रक्रिया से आश्रम को पूरी तरह बाहर रखा गया है। इस बाबत किसी अधिकारी ने उनसे बात नहीं की। उनका दावा है कि जब तक शांति प्रक्रिया से उन्हें बाहर रखा जाएगा, हिंसा जारी रहेगी।

इस बीच उड़ीसा में ईसाई आदिवासियों, चर्च और ईसाइयों से जुड़े संस्थानों पर हो रहे हमले को ऑल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल ने राष्ट्रीय मुद्दा बना लिया है। आज देश भर के कॉन्वेंट स्कूल बंद रहे। अब यह भी साफ हो गया है कि विश्व हिदू परिषद ने अनाथालय की जिस 22 साल की महिला को ज़िंदा जलाकर मार दिया था, वह ईसाई नहीं, हिंदू थी। कुछ प्रेक्षक मानते हैं कि सारा मामला सत्ता के खेल का है। उड़ीसा में जल्दी ही चुनाव होनेवाले हैं। इससे पहले संघ परिवार राज्य में धार्मिक ध्रुवीकरण चाहता है। इसलिए स्वामीजी की हत्या में खुद विश्व हिंदू परिषद की भूमिका की जांच की जानी चाहिए क्योंकि माना जाता है कि बड़ी उपलब्धि के लिए आरएसएस किसी को भी बलिदान कर सकता है।

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप ने जिन संदेहों को सामने रखा है उन की जाँच निष्पक्ष ऐजेन्सी द्वारा जरूर की जानी चाहिए। सच सामने आ सके।

संजय बेंगाणी said...

चुनाव जितने के लिए संघीयों ने आज़ादी के बाद भी मिशनरियों को भारत में रहने दिया, बेरोकटोक धर्म परिवर्तन करवाने दिया, ताकि एक दिन ये आँख दिखा सके, किसी को भी मार सके और इसका फायदा भाजपा चुनावों में उठा सके. मिशनरियाँ दूध से धूलि हुई है तभी वहाँ बैठा पॉप संताप कर रहा है.

लगे रहें सत्य सामने आएगा.