नहीं पता था कि ईसाई इतने फटेहाल भी होते हैं
धारणाएं कब आपको गुलाम बना लेती हैं, पता ही नहीं चलता। अभी तक ईसाई से मन में गोवा या केरल की किसी मैडम या मिस्टर डी-कोस्टा की छवि बनती रही है जिसने कुछ अंग्रेज़ी किस्म के कपड़े पहन रखे हों। शायद फिल्मों ने यह धारणा बनाई हो या आसपास के ईसाई परिवारों ने। इसलिए आज सुबह जब मैंने इंडियन एक्सप्रेस में यह तस्वीर देखी तो एकबारगी झटका-सा लगा। मन में पहली प्रतिक्रिया यही उठी कि अरे, ये तो गरीब आदिवासी हैं, ईसाई कैसे हो सकते हैं। लेकिन हकीकत तो यही है कि इनकी आदिवासी पहचान को गौण कर इन्हें महज नफरत का निशाना बनाया जा रहा है जिसके लिए ज़रूरी है कि इन भूखे-नंगे फटेहाल लोगों को ईसाई माना जाए। तो यह तस्वीर है उड़ीसा के ईसाइयों की जिनके घर विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने जला दिए हैं और वे फुलबानी की पहाड़ियों में शरण लेने के लिए भागे जा रहे हैं।
फोटो पार्थ पॉल की, सौजन्य इंडियन एक्सप्रेस का
फोटो पार्थ पॉल की, सौजन्य इंडियन एक्सप्रेस का
Comments
जागो भारत, जागो!
धन्यवाद
पर यह दर्दनाक बात है, मजेदार नहीं, चिपलूनकर जी!
यदि इनके लिए ईमानदारी से प्रयास किये जायें तो धर्मांतरण जैसी चीजों का रोना ना रोना पड़े.
और ईसाई मिशनरीज का तो कहना ही क्या...उनके लिए तो ये बस शिकार हैं...जिनको एक बार ईसाई बनाकर इनका खात्मा कर देना है...भला ये भी कब चाहते हैं आदिवासियों का
राजनीति क्या इंसान कहलाने वाले जीव को इतना कुत्ता बना देती है, कि धर्म के नाम पर चल रही इस अधर्मनीति से आँखें मूँदे रहती है । हमारा अरण्य रूदन उनको क्योंकर हिलाये भला ?