बिल ही बिल हैं गेट्स की सर्वजन सुखाय भंगिमा में
हम बड़े भले लोग हैं। भद्रजन हैं। अमीर हस्तियों की दरियादिली देखकर ऐसे कृत-कृत्य हो जाते हैं कि तारीफ के अलावा दूसरे शब्द मुंह से निकलते ही नहीं। ऐसे में हमारे दाधीच जी अगर माइक्रोसॉफ्ट के मुख्यालय जाकर बिल गेट्स से मिलकर लौटे हैं तो उनकी अद्वितीय मेधा और अतुलनीय सादगी के कसीदे तो काढेंगे ही। क्या करें हमारे संस्कार ही ऐसे हैं। कामयाब इंसान के सहस्र खून आसानी से माफ कर देते हैं। चमक पर जान छिड़कते हैं, असल से नज़रें फेर लेते हैं। फिर, असलियत भी अक्सर वो नहीं होती जो ऊपर से दिखती है। जटिलताएं होती हैं, उलझाव होते हैं, संघर्षों की भंवरें होती हैं, जिनके मंथन से सच की कांति निकलती है। मेरे पास इतनी जानकारी नहीं है कि मैं बिल गेट्स के कर्मों की भंवर में पैठ सकूं। इसलिए ऑस्ट्रेलिया की ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के शोधार्थी Michael James Barker के शोधपत्र के चुनिंदा अंश पेश कर रहा हूं। यह शोधपत्र उन्होंने हाल भी में Australasian Political Science Association के एक सम्मेलन में पेश किया था।
दुनिया के तमाम उद्योगपतियों की तरह ही बिल गेट्स एक खास किस्म के लोकतंत्र में यकीन रखते हैं, जिनमें अमीरों के लिए समाजवाद होता है और गरीबों के लिए पूंजीवाद। किसी ज़माने में ‘robber barons’ कहे जानेवाले जॉन डी. रॉकफेलर और एंड्र्यू कारनेगी के रॉकफेलर फाउंडेशन और कारनेगी कॉरपोरेशन की तर्ज़ पर उन्होंने भी बिल एंड मेरिंडा गेट्स फाउंडेशन बना लिया है। ऐसे लोग सरकारी मदद से अपने व्यावसायिक हितों को प्रतिस्पर्धा से बचाते हैं। इनके लिए सरकार अपने मुनाफे को महत्तम करने का महज एक जरिया है और एक बार आर्थिक व्यवस्था की जोड़तोड़ व दोहन से अकूत संपदा हासिल कर लेने के बाद ये अपने कंधों पर वैश्विक विषमता और बढ़ती गरीबी को दूर करने का बोझ डाल लेते हैं। परोपकारी बन जाते हैं, सर्वजन सुखाय की भंगिमा अख्तियार कर लेते हैं। लेकिन असल में इसके पीछे छिपा होता है धूर्तता से भरा पाखंड।
बिल गेट्स का बिल एंड मेरिंडा गेट्स फाउंडेशन इसका उम्दा उदाहरण है। आज यह अगर दुनिया का अपनी तरह का सबसे बड़ा फाउंडेशन बन गया है तो इसके पीछे रही है बिल गेट्स की वैश्विक सोशल इंजीनियरिंग। दुनिया भर के बाज़ारों पर किसी का आधिपत्य यूं ही नहीं बन जाता है। इसके लिए चलाया जाता है व्यापक प्रचार अभियान ताकि लोगों के दिमाग पर कब्जा किया जा सके। Alex Carey ने कहा था कि, “बीसवीं सदी में राजनीतिक महत्व की तीन खास चीजें हुई हैं: लोकतंत्र का विकास, कॉरपोरेट ताकत का विकास और लोकतंत्र के सामने कॉरपोरेट ताकत को बचाने के साधन के रूप में कॉरपोरेट प्रोपैगेंडा का विकास।”
बहुत सारी वजहें हैं जिनके चलते कॉरपोरेट दिग्गज परोपकार/फिलैंथ्रॉपी करते हैं। एक तो उन्हें इसका राजनीतिक फायदा मिलता है। लेकिन दूसरी अहम बात है कि ऐसे कल्याणकारी कामों से अवाम के दिमाग में उनकी बड़ी सकारात्मक छवि बनती है जिससे परोक्ष रूप ने उनकी बाज़ार हिस्सेदारी बढ़ती है। गेट्स फाउंडेशन जैसे उदार प्रतिष्ठान कई तरह की प्रगतिशील गतिविधियां चलाते हुए दिखते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं होता कि जिस उद्योग साम्राज्य (माइक्रोसॉफ्ट) के ज़रिए उन्होंने दरियादिली का ये माद्दा हासिल किया है, वो अपने धंधे में लोकतंत्र-विरोधी जोड़तोड़ नहीं करते। वो astroturf groups जैसे ग्रासरूट संगठनों के ज़रिए अपनी कॉरपोरेट सत्ता को बचाने के लिए हर तरह के कृत्य-कुकृत्य करते रहते हैं।
मसलन, माइक्रोसॉफ्ट ने 1999 में Americans for Technology Leadership नाम का एक ग्रुप बनाया था। दो साल बाद इस पर आरोप लगा कि इसके ज़रिए माइक्रोसॉफ्ट के एकाधिकार को बचाने का राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया गया था। इस ग्रुप से जुड़े लोगों ने माइक्रोसॉफ्ट के खिलाफ चलनेवाले एंटी-ट्रस्ट मुकदमे में कंपनी की मदद की। 1995 में एक चौंकानेवाली बात सामने आई थी कि माइक्रोसॉफ्ट ने कुछ consultants के जरिए रिपोर्टरों के लेखों के विश्लेषण से लेकर पत्रकारों की निजी ज़िंदगी तक का ब्यौरा तैयार करवाया था। इसका साफ मसकद था ये पता लगाना कि मीडिया को कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है।
कारनेगी कॉरपोरेशन, फोर्ड फाउंडेशन और रॉकफेलर फाउंडेशन का अमेरिका की बदनाम खुफिया एजेंसी सीआईए से गहरा जुड़ाव रहा है। बिल गेट्स की कंपनी माइक्रोसॉफ्ट भी इसमें पीछे नहीं रही है। 1999 में खुलासा हुआ था कि खुफिया तंत्र के साथ माइक्रोसॉफ्ट के सीधे रिश्ते हैं क्योंकि अमेरिकी नेशनल सिक्यूरिटी एजेंसी (एनएसए) द्वारा इस्तेमाल किये जानेवाले special access कोड गुपचुप तरीके से विंडोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम के सभी वर्जन्स में डाल दिए गए हैं।
अमेरिकी रक्षा मुख्यालय पेंटागन माइक्रोसॉफ्ट का खास क्लाएंट है। यही नहीं, माइक्रोसॉफ्ट के निदेशक बोर्ड में दुनिया के तीसरी सबसे बड़े हथियार निर्माता समूह Northrop Grumman Corporation से जुड़े Charles Noski जैसे लोग शामिल हैं। खुद माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ Steven Ballmer का ताल्लुक विवादास्पद Jewish National Fund (JNF) से रहा है। जेएनएफ कहने को पर्यावरण संबंधी संगठन है, लेकिन असल में इसे फिलिस्तीनियों के दमन का Zionist tool माना जाता है।
तो ये थी बिल गेट्स के सर्वजन हिताय अंदाज़ के कॉरपोरेट आधार की एक झलक। उनके फाउंडेशन का पूरा हाल आप Michael James Barker के ब्लॉग पर दिए गए लिंक्स से हासिल कर सकते हैं। Barker अपने खुलासे के दो भाग लिख चुके हैं। तीसरा भाग अभी आना बाकी है।
दुनिया के तमाम उद्योगपतियों की तरह ही बिल गेट्स एक खास किस्म के लोकतंत्र में यकीन रखते हैं, जिनमें अमीरों के लिए समाजवाद होता है और गरीबों के लिए पूंजीवाद। किसी ज़माने में ‘robber barons’ कहे जानेवाले जॉन डी. रॉकफेलर और एंड्र्यू कारनेगी के रॉकफेलर फाउंडेशन और कारनेगी कॉरपोरेशन की तर्ज़ पर उन्होंने भी बिल एंड मेरिंडा गेट्स फाउंडेशन बना लिया है। ऐसे लोग सरकारी मदद से अपने व्यावसायिक हितों को प्रतिस्पर्धा से बचाते हैं। इनके लिए सरकार अपने मुनाफे को महत्तम करने का महज एक जरिया है और एक बार आर्थिक व्यवस्था की जोड़तोड़ व दोहन से अकूत संपदा हासिल कर लेने के बाद ये अपने कंधों पर वैश्विक विषमता और बढ़ती गरीबी को दूर करने का बोझ डाल लेते हैं। परोपकारी बन जाते हैं, सर्वजन सुखाय की भंगिमा अख्तियार कर लेते हैं। लेकिन असल में इसके पीछे छिपा होता है धूर्तता से भरा पाखंड।
बिल गेट्स का बिल एंड मेरिंडा गेट्स फाउंडेशन इसका उम्दा उदाहरण है। आज यह अगर दुनिया का अपनी तरह का सबसे बड़ा फाउंडेशन बन गया है तो इसके पीछे रही है बिल गेट्स की वैश्विक सोशल इंजीनियरिंग। दुनिया भर के बाज़ारों पर किसी का आधिपत्य यूं ही नहीं बन जाता है। इसके लिए चलाया जाता है व्यापक प्रचार अभियान ताकि लोगों के दिमाग पर कब्जा किया जा सके। Alex Carey ने कहा था कि, “बीसवीं सदी में राजनीतिक महत्व की तीन खास चीजें हुई हैं: लोकतंत्र का विकास, कॉरपोरेट ताकत का विकास और लोकतंत्र के सामने कॉरपोरेट ताकत को बचाने के साधन के रूप में कॉरपोरेट प्रोपैगेंडा का विकास।”
बहुत सारी वजहें हैं जिनके चलते कॉरपोरेट दिग्गज परोपकार/फिलैंथ्रॉपी करते हैं। एक तो उन्हें इसका राजनीतिक फायदा मिलता है। लेकिन दूसरी अहम बात है कि ऐसे कल्याणकारी कामों से अवाम के दिमाग में उनकी बड़ी सकारात्मक छवि बनती है जिससे परोक्ष रूप ने उनकी बाज़ार हिस्सेदारी बढ़ती है। गेट्स फाउंडेशन जैसे उदार प्रतिष्ठान कई तरह की प्रगतिशील गतिविधियां चलाते हुए दिखते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं होता कि जिस उद्योग साम्राज्य (माइक्रोसॉफ्ट) के ज़रिए उन्होंने दरियादिली का ये माद्दा हासिल किया है, वो अपने धंधे में लोकतंत्र-विरोधी जोड़तोड़ नहीं करते। वो astroturf groups जैसे ग्रासरूट संगठनों के ज़रिए अपनी कॉरपोरेट सत्ता को बचाने के लिए हर तरह के कृत्य-कुकृत्य करते रहते हैं।
मसलन, माइक्रोसॉफ्ट ने 1999 में Americans for Technology Leadership नाम का एक ग्रुप बनाया था। दो साल बाद इस पर आरोप लगा कि इसके ज़रिए माइक्रोसॉफ्ट के एकाधिकार को बचाने का राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया गया था। इस ग्रुप से जुड़े लोगों ने माइक्रोसॉफ्ट के खिलाफ चलनेवाले एंटी-ट्रस्ट मुकदमे में कंपनी की मदद की। 1995 में एक चौंकानेवाली बात सामने आई थी कि माइक्रोसॉफ्ट ने कुछ consultants के जरिए रिपोर्टरों के लेखों के विश्लेषण से लेकर पत्रकारों की निजी ज़िंदगी तक का ब्यौरा तैयार करवाया था। इसका साफ मसकद था ये पता लगाना कि मीडिया को कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है।
कारनेगी कॉरपोरेशन, फोर्ड फाउंडेशन और रॉकफेलर फाउंडेशन का अमेरिका की बदनाम खुफिया एजेंसी सीआईए से गहरा जुड़ाव रहा है। बिल गेट्स की कंपनी माइक्रोसॉफ्ट भी इसमें पीछे नहीं रही है। 1999 में खुलासा हुआ था कि खुफिया तंत्र के साथ माइक्रोसॉफ्ट के सीधे रिश्ते हैं क्योंकि अमेरिकी नेशनल सिक्यूरिटी एजेंसी (एनएसए) द्वारा इस्तेमाल किये जानेवाले special access कोड गुपचुप तरीके से विंडोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम के सभी वर्जन्स में डाल दिए गए हैं।
अमेरिकी रक्षा मुख्यालय पेंटागन माइक्रोसॉफ्ट का खास क्लाएंट है। यही नहीं, माइक्रोसॉफ्ट के निदेशक बोर्ड में दुनिया के तीसरी सबसे बड़े हथियार निर्माता समूह Northrop Grumman Corporation से जुड़े Charles Noski जैसे लोग शामिल हैं। खुद माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ Steven Ballmer का ताल्लुक विवादास्पद Jewish National Fund (JNF) से रहा है। जेएनएफ कहने को पर्यावरण संबंधी संगठन है, लेकिन असल में इसे फिलिस्तीनियों के दमन का Zionist tool माना जाता है।
तो ये थी बिल गेट्स के सर्वजन हिताय अंदाज़ के कॉरपोरेट आधार की एक झलक। उनके फाउंडेशन का पूरा हाल आप Michael James Barker के ब्लॉग पर दिए गए लिंक्स से हासिल कर सकते हैं। Barker अपने खुलासे के दो भाग लिख चुके हैं। तीसरा भाग अभी आना बाकी है।
Comments
गहन मनन को उद्देपित करती एक पोस्ट..
अभी टिप्पणी की रस्म अदा करना समीचीन न होगा...ग्रेट !
बहुत सही कहा अनिल भाई।
शुक्रिया
आज ध्यान से पढ़ा, वाकई महत्वपूर्ण तथ्य रखे हैं, आपने ।
साधुवाद !