एक पोस्ट पर इत्ते टैग! दहाड़ कम, गूंज ज्यादा!!

काफी दिनों से देख रहा हूं कि कुछ ब्लॉगर छटांक भर की पोस्ट पर किलो भर के टैग लगा देते हैं। इधर पोस्ट का आकार तो बड़ा हो गया है, लेकिन टैग का वजन अब भी उस पर भारी पड़ता है। हो सकता है, ऐसे ब्लॉगरों की तादाद ज्यादा हो, लेकिन दो खास ब्लॉगरों पर मेरी नज़र गई हैं। ये हैं – सुरेश चिपलूनकर और दीपक भारतदीप। सुरेश जी श्रेष्ठ ब्लॉगर हैं। झन्नाटेदार अंदाज़ में लिखते हैं, जैसे अभी कोई धमाका कर देंगे। उनकी राष्ट्रभक्ति पर उंगली उठाना पूर्णमासी के चांद में दाग खोजने जैसा है। सेकुलर बुद्धिजीवियों पर तो ऐसे उबलते हैं कि वश चलता तो सबको सूली पर लटका देते या बंगाल की खाड़ी में फेंकवा देते।

कल उनकी पोस्ट थी – खबरदार, यदि नरेंद्र मोदी का नाम लिया तो... शीर्षक और उपसंहार में प्रत्यक्ष रूप से नमो-नम: किया है। लेकिन बाकी सब कुछ परोक्ष है। वो कहते हैं कि देश को ज़रूरत है, “एक सही युवा नेता की, जिसमें काम करने का अनुभव हो, दृष्टि खुली हुई हो, ‘भारत का हित’ उसके लिए सर्वोपरि हो, जो भ्रष्टाचार से मुक्त हो, परिवारवाद से मुक्त हो, जो देश के गद्दारों को ठिकाने लगा सके, जो अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ‘नये भारत की नई दहाड़’ दिखा सके (बकरी की तरह मिमियाता न हो), जो चीन को आँख दिखा सके, जो बांग्लादेश को लतिया सके, जो पाकिस्तान को उसकी सही औकात दिखा सके।”

जाहिर है कि ऐसे युवा नेता तो 58 साल के होने जा रहे नरेंद्र मोदी ही हैं। भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं, परिवारवाद से मुक्त। आगे नाथ न पीछे पगहा। दहाड़ने का अच्छा रियाज़ है। चीन को आँख दिखा सकते हैं, बांग्लादेश को लतिया सकते हैं, पाकिस्तान को उसकी सही औकात दिखा सकते हैं। लेकिन इतनी साफ शिनाख्त के बाद भी सुरेश जी विनम्रता से कहते हैं... है कोई आपकी निगाह में? फिर व्यंजना शैली में जवाब भी दे डालते हैं कि खबरदार जो नरेंद्र मोदी का नाम लिया तो... (हा, हा, हा, हा, हा...)

मैं सुरेश जी की भावना का पूरा सम्मान करता हूं। मुझे भी भारत की असली ताकत के उभरने का बेसब्री से इंतज़ार है। लेकिन मेरा सवाल है जो नेता चीन को आँख दिखाने, बांग्लादेश को लतियाने और पाकिस्तान को उसकी सही औकात दिखाने में लगा रहेगा, उसे बाकी कामों के लिए वक्त कहां से मिलेगा? वैसे भी मोदी जी, अब गला फाडने के बजाय विनम्रता से विकास के कामों पर ज्यादा ज़ोर दे रहे हैं। क्यों खोखली दहाड़ में लगा कर आप उनका गला खराब करवाना चाहते हैं।

खैर, आपका घर है और उसमें दखल का मेरा कोई हक नहीं बनता। लेकिन सुरेश जी, इस पोस्ट के साथ Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode जैसे टैग जोड़ने का तुक मुझे नहीं समझ में आता। आपने सेकुलर बुद्धिजीवियों वाली पोस्ट पर भी ये सारे टैग जोड़े थे। राष्ट्रीय स्वाभिमान पर लिखा तो आपने बीजिंग ओलम्पिक समेत करीब 50 टैग जोड़ डाले। इनका मकसद अगर ज्यादा से पाठक खींचना है तो मान लीजिए कोई Hindi Typing on Computers सर्च करके मोदी वाली पोस्ट पर आ जाए तो क्या यह उसके साथ धोखाधड़ी नहीं है?

वैसे इस काम में दीपक भारतदीप भी आपको तगड़ी टक्कर देते हैं। दीपक जी के विस्तीर्ण क्षितिज और विशद ज्ञान से आप सभी परिचित होंगे। उनके दो ब्लॉग पर लिखी अलग-अलग पोस्ट का नमूना पेश है। अब इन पर लगे टैग्स के भी दर्शन कर लीजिए - Blogroll, E-patrika, FAMILY, blogging, deepak bharatdeep, friends, hasya, hindi bhasakar, hindi culture, hindi epatrika, hindi internet, hindi journlism, hindi litreture, hindi megzine, hindi nai duinia, hindi web, inglish, internet, web bhaskar, web dunia, web duniya, web panjab kesri, web patrika, आलेख, कला, मस्तराम, समाज, साहित्य, हास्य-व्यंग्य, ariticle, आकर्षण, कठिन, पाठक, फोरम, ब्लाग लेखक, editoriyal, hindi, show, vews....

दीपक जी से भी मेरा वही सवाल है जो मैंने सुरेश जी से किया है। एक बात और दीपक जी से कहनी है कि इसमें कई अंग्रेज़ी शब्दों की वर्तनी गलत है। कृपया इसे सुधार लें। छटांक भर की पोस्ट पर किलो भर का टैग लगानेवाला एक ब्लॉग है बाल उद्यान। इससे पहले मुकेश कुमार भी इसमें सिद्धहस्त रहे हैं। वे तो सात्विक-सी पोस्ट पर भी sex का टैग लगा देते थे और एक समय अपने अंग्रेज़ी ब्लॉग पर हर दिन 1200 हिट्स के आने का दावा किया था। लेकिन उनका वो ब्लॉग अब विलुप्त हो चुका है और उन्होंने कालचक्र पर किलो-किलो के टैग लगाने बंद कर दिए हैं।
फोटो सौजन्य: funkandjazz

Comments

Udan Tashtari said…
छटांक भर की पोस्ट पर किलो भर के टैग ---भाई मेरे, चरण कमल कहां हैं जरा इस तरफ बढ़ाना!! गजब!!!!!!
एक गृह स्वामिनी रसोई के सामान भरने के लिए डब्बे और उन पर चिपकाने को लेबल लाई। काम वाली को दिये कि वह सब सामानों को डब्बों में डाले और हर डब्बे पर उस सामान के नाम की चिप्पी लगाए। यह तंत्र कामवाली को समझ न आया। उसने सामानों के सारे पैकेट एक ही ड्रम में डाले और चिप्पियाँ ड्रम के बाहर चिपका दीं।
Udan Tashtari said…
दिनेश भाई ने तो एक ही गागर में सागर भर दिया!! :)
dpkraj said…
अनिल रघुराज जी,
आपने बहुत अच्छा सवाल किया है। दरअसल मैंने ब्लाग के बारे में सवा दो वर्ष पहले मैंने एक पत्रिका में पढ़ा था। उस समय कंप्यूटर और इंटरनेट कनेक्शन होने के बावजूद मेरा इरादा ब्लाग बनाने का नहीं था क्योंकि मुझे बनाना ही नहीं आता था। जब बनाया तो जो उसमें पढ़ा था उसकी खास बातें मुझे याद रहीं जो यहां आपको संक्षिप्त में बता देता हूं क्योंकि उसमें बताये गये निर्देशों पर ही मैंं चल रहा हूं।
1.अपने ब्लाग पर नियमित रूप से लिखते रहें। इस बात की परवाह न करें कि उसकी लंबाई चैड़ाई कितनी है। कुछ पोस्ट पाठकों को नापसंद भी आ सकते हैं, पर आप लिखें।
2.अपने ब्लाग पर अधिक से टैग या श्रेणियां लगायें क्योंकि वही आपके लिखे पाठ को वहां ले जायेंगी जहां आप भेजना चाहते हैं। अगर आप अंग्रेजी में नहीं लिखते तो भी अंग्रेजी के टैग लगायें क्योंकि आम पाठक अंग्रेजी शब्दों से सर्च करता है। जितने आप टैग लगाते हैं उतने ही शब्दों पर आपका ब्लाग खुलता है।
3.टिप्पणियेां की चिंता बिल्कुल न करें न इस बात की परवाह करें कि कितने लोगों ने इसे पढ़ा। आप तो यह सोचिये कि कितने लोग इसे पढ़ने वाले हैंं।
4.अखबार एक दिन बाद कबाड़ हो जाता है और किताबें अल्मारी में बंद हो जाती हैं पर आपका ब्लाग हमेशा ही हवा में तैरता रहेगा। यही सोचकर लिखते रहें।
5.आने वाला समय ब्लाग लेखकों के लिये उज्जवल है।

संयोगवश सुरेश चिपलूनकर और मैं मध्य प्रदेश के हैं, और लिखने में कहां हैंं यह तो आप मित्र तय करते हैं। मैं तो लकीर का फकीर हूं। जिस बात का मुझे ज्ञान है उस विषय पर मैं किसी की नहीं सुनता और जिस बात का नहीं हैं उसी नी दूसरे का सुनकर या पढ़कर उसी राह पर ही चल पड़ता हूं जब तक कोई विपरीत ज्ञान प्राप्त न हो क्योंकि जीवन में आगे बढ़ने के लिये इतना तो करना ही पड़ता है। अधिक टैग लगाने का कोई लाभ नहीं है अगर यह बात आप या कोई अन्य ब्लाग लेखक मुझे समझा दे तों ऐसा नहीं करूंगा। वैसे जिस ब्लाग को आपने दिखाया है उसमें सबसे अधिक टैग और श्रेणियां हैं ओर पाठक भी अधिक यहीं हैं। आपका लिखा बहुत अच्छा लगा। सच तो यह है कि मैं आपसे भी बहुत सीखता हूं। आपके इस प्रयास की सराहना करता हूं।

दीपक भारतदीप
Sajeev said…
अनिल जी, दीपक जी ने सब कह ही दिया है, यही अच्छा है कि हिन्दी ब्लॉगर समय के साथ बदलें, अब कोई टैग लगता है तो उससे क्या परेशानी हो सकती है किसी को :)
सजीव सारथी
आवाज़
अपने अपने ब्लॉग है, जो जैसे चाहे लिखे...मगर पढ़ कर मजा जरूर आया, टेगो पर कभी ध्यान ही नहीं दिया, अब देखना पड़ेगा :)
azdak said…
कहीं टैग जले कहीं दिल? क्‍यों?
Anil Pusadkar said…
tag badhaya jay ya nahi ab nai samasya aa gayi hai,
मैं अगर ज्यादा टैग लगाना भी चाहता हूँ तो ब्लॉगर वाले error बताने लगते हैं। अधिकतम २०० अंग्रेजी अक्षर (स्पेस को जोड़ते हुए) अनुमन्य हैं। BarahaIME से टाइप करने पर हिन्दी में मुश्किल से सात-आठ टैग ही बन पाते हैं।
मैं तो वह तरीका ढूंढ रहा था जिससे कुछ अधिक टैग लगा सकूँ। आपको पढ़ कर सन्तोष मिला।
.
क्षमा करना रघुराज,
इतनी बारिकी से ब्लाग पढ़ने वाले भी हैं,
देख कर हर्ष हुआ... कमेन्ट भी बेहतरीन हैं ।
मेरी उपस्थिति का 80 प्रतिशत समय पाठक के रूप में
ही बीतता है, पर इस विषय पर भी लिखा जा सकता है, सोचा ही न था ।
क्या लाईन है, छटांक भर की पोस्ट और किलो भर के टैग। ;)

वैसे मैं भी पहले टैग लगाता था पर इन दिनों समय की कमी के चलते लिखना ही कम हो गया है तो टैग लगाना बंद।
Anonymous said…
टैग और लेबल में अन्तर ? दिनेशजी का किस्सा आनन्द दे गया ।
अफ़लातून
बढ़िया , ज्ञानवर्धक पोस्ट।
सोचता हूँ हम जैसे "टेक्नोलॉजी असक्षम" लोग जिन्हें ये भी अंदाजा नही की ये टोटके भी जरूरी है हिट्स कराने के लिए ,आप जैसे लोगो की पोस्ट पढ़कर अपनी आँखे खोलते है जैसे कल किसी साहब ने पोस्ट में लिखा की मेरी रेंक ३ हो गई तो हमें पता चला की रेंक नाम की भी कोई चीज़ है......आप लोगो का साधुवाद .......हमें तो यही मालूम था की बस अच्छा लिखना जरूरी होता है ...यानि की ब्लॉग का कंटेंट ,,,,,,,.पर एक बात है आप जैसे पाठक जो इतनी गहरे से बांचते है .....इसका भी कमाल है
pallavi trivedi said…
टेग और लेबल में क्या अंतर है? न लगाने से क्या पाठक कम आते हैं? यदि अधिक लगाने से पाठक ज्यादा आते हैं तो लगाने में क्या बुराई है?
Nitish Raj said…
हमेशा ही देखता हूं कि कई लोग अपना एक आर्टिकल दो दो ब्लाग से पोस्ट कर देते हैं।पढ़ने वाला बेवकूफ बन जाता है। लेकिन दीपक जी से एक बात पूछनी चाहिए थी कि क्या ज्यादा टैग लगाने से आर्टिकल के कंटेंट में कुछ फर्क आता है या नहीं। भई आप लिख रहे हैं क्यूबा के बारे में टैग ठेल दिए सारी बड़े बड़े देशों के तो क्या ये धोखाधड़ी नहीं है। मीडिया को हमेशा गाली देते रहेंगे कि न्यूज के नाम पर क्या दिखाते हैं लेकिन खुद पर भी तो झांकें। मुझे ढूंढना है अमेरिका और क्यूबा के आर्टिकल पर पहुंच गया क्या ठगा हुआ महसूस नहीं करूंगा मैं। पूरा पोस्ट पढ़ लूंगा लेकिन अमेरिका का नाम नहीं तो क्या ये जालसाजी नहीं है। लेकिन सजीव सारथी, संजय बेंगाणी और डॉ साहब से बिल्कुल एग्री करता हूं कि उनका ब्लॉग जो लिखें।
Avinash Das said…
सही पकड़ा, सही धुना...
Shiv said…
'टैग-टोटके' का महत्व तो हमें पता ही नहीं था. आज ही फैसला किया है कि पहले ढाई पेज का टैग लिखूंगा उसके बाद पोस्ट....:-)

comment filed under: टैग, टोटका, महत्व, फैसला, ढाई पेज, पोस्ट, भारत, इंडिया, हिंदुस्तान, हिन्दी चिटठा, दहाड़, पछाड़, पहाड़, हिन्दी ब्लागिंग, history of hindi blogging, hindi education, hindi rectification, hindi satire, hindi essays, essay on blogging, comment on tags, tags on comment, commented tags, tag and tags, rags, Pakistan, Musharraf, Bangladesh, forum, हास्य-व्यंग, पाठक, उपधिया, आलेख, सुलेख, कला, भला, जला, पत्रकारिता, सहकारिता, 'litarechar', fateechar, accilerator, turbanator, terminator, blog roll, chicken roll, egg roll, ढोल की पोल, पंजाब केसरी, गुजरात केसरी, दैनिक जागरण, रात्रि जागरण, राष्ट्रीय स्वाभिमान, अभिमान, परिधान, मान, सम्मान, इम्तिहान, 'nyooj', 'vyooj', 'hyooj', अगति, दुर्गति, सद्गति, प्रगति, आधार, जनाधार, रामअधार,
Sanjay Tiwari said…
जनता जनार्दन इस गलतफहमी से बाहर ही नहीं आना चाहती कि हजार टैग देने से आपके पाठक नहीं बढ़ जाएंगे. गूगल के साथ ऐसा बिल्कुल नहीं है कि वह आपके टैग के आाधार पर आपकी पोस्ट को खींचे और और लोगों को पढ़ाये. हां कुछ हद तक यह काम याहू करता है लेकिन ब्लागस्पाट पर बने ब्लाग याहू के लिए ज्यादा मायने नहीं रखते.
पहले तो
"जिसका ब्लोग उसीकी मरजी "
से
शत प्रतिशत सहमति है मेरी ~~

और फिर,

" कौनू ठगवा नज़रिया लूटल हौ "

बस,
आजकत टैग लगाये ही नहीँ !
- लावण्या
Abhishek Ojha said…
अरे भाई हिट्स और एडसेंस भी तो कुछ होता है... और सुना है टैग्स से बड़ा गहरा नाता है इनका !
Unknown said…
जवाब एक पूरी पोस्ट में दिया जायेगा… दर्द कहीं और का तथा चोट कहीं और… अच्छा व्यंग्य है, स्वागत है, लेकिन मेरी पोस्ट का भी इंतज़ार करें…
निशाना टैग है या नरेन्द्र मोदी! अगर नरेन्द्र मोदी है तो यह दूध में पानी मिलाती पोस्ट है। न दूध का स्वाद न शुद्ध जल का!
और अगर टैग पर है तो क्या फरक पड़ता है - जित्ते मर्जी टैग लगाये!
टैंगिग के बारे में तीन साल पहले देबाशीष ने लेख लिखा था। उससे लोगों को टैंगिंग के बारे में काम भर की जानकारी मिल सकती है। लेबेल पर भी परिचर्चा पर काफ़ी चर्चा हुयी थी। दोनों के लिंक ये रहे:
टैंगिंग बड़े काम की चीज है।

लेबेल का रहस्य क्या है?
ज्ञान जी, निशाना न तो टैग है और न ही मोदी। निशाना छल की वो मानसिकता है जो खोखले वादों और शब्दों का सहारा लेकर धंधा चलाती है।
पोस्ट में चर्चित एक ब्लॉगर 'मस्तराम' और mastram का टैग भी लगाते हैं । यह पोस्ट पढ़ीत बउ नके चिट्ठे पर गया।
अनिल भैया, हमने भी बहुत से टैग लगा लिये है ढूँढ कर...:)सोचा लिखते तो कुछ खास नही हैं जरा ब्लॉग का श्रृंगार ही कर दिया जाये...
अनिल भाई
अपनी एक जरूरी पोस्ट इस उम्मीद से यहां रख रहा हूं कि इसे आपके ब्लॉग पर अलग से स्थान मिल सकेगा।
भोजवानी



वेस्ट यूपी में मीडिया की ताजा अंगड़ाई

नारा है....
जो जागे, सो आगे

भ्रष्टाचार के विरुद्ध
हम करेंगे युद्ध.....

जागता शहर
नाम है उस ताजा जुनून का, जो उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान के कुल इकत्तीस जिलों में भ्रष्टाचार केखिलाफ मीडिया-हुंकार भरने जा रहा है।
जागता शहर नाम है उस साप्ताहिक न्यूज मैग्जीन का, जिसके भीतर छिपी आग की लपटें अभी से सुदूर तक नएतरह के जन-कोलाहल का संकेत देने लगी हैं।
जागता शहर हिंदी समाचार साप्ताहिक के संपादक है अनिल शुक्ला, जिनकी खोजी रपटों ने किसी जमाने में रविवार के पन्नों से ठहरे वक्त को ललकारा था।
वह जमाना था जाने-माने पत्रकार और रविवार के संपादक एसपी सिंह का, जिन्होंने राजेंद्र माथुर के बाद हिंदी पत्रकारिता को नयी दशा-दिशा का एहसास कराया था।
अमर उजाला आगरा से कुछ ही समय बाद मुंह मोड़ कर अनिल शुक्ला एसपी सिंह की टीम में शामिल हो गए थे, फिर संडे मेल, दूरदर्शन आदि में कुछ समय रहे।
अनिल शुक्ला, जिन्होंने यह कहते हुए संडे मेल से त्यागपत्र दे दिया था कि मैं मूर्ख संपादकों को झेलते-झेलते आजिज आ गया हूं, उनकी चाकरी नहीं करूंगा।
जागता शहर के संपादक अनिल शुक्ला ने रविवार के लखनऊ, जयपुर ब्यूरो प्रमुख का दायित्व संभालने के दौरान ही लिया था रिजनल न्यूज मैग्जीन का संकल्प।
रीजन फोकस न्यूज मैग्जीन, सप्ताह में एक बार, महीने में चार बार उत्तर प्रदेश के नौ मंडलों, राजस्थान के चार जिलों और मध्य प्रदेश के तीन जिलों में पहुंचेगी।
उत्तर प्रदेश में जागता शहर का पाठक वर्ग होगा वेस्ट यूपी के 26 जिलों में...आगरा, मथुरा, फीरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, औरैया, फर्रुखाबाद, एटा, कांसीराम नगर, हाथरस, अलीगढ़, बुलंदशहर, गाजियाबाद, मेरठ, बागपत, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और मुरादाबाद-बरेली मंडल।
राजस्थान में जागता शहर के पाठक होंगे धौलपुर, बयाना, भरतपुर, बाड़ी के लोग और मध्य प्रदेश में ग्वालियर, भिंड, मुरैना आदि के पाठक इसे पढ़ सकेंगे।
जागता शहर सिर्फ साप्ताहिक न्यूज मैग्जीन नहीं, संपादक अनिल शुक्ला के जीवन का वह आखिरी मोर्चा है, जिसका नारा है, भ्रष्टाचार के विरुद्ध हम करेंगे युद्ध।
जागता शहर में होंगी ऐसी स्टोरी, जो उसके पाठक वर्ग ने कभी किसी अखबार या चैनल पर देखी-सुनी नहीं होगी, साथ में यूथ, महिलाओं और खेल के पन्ने भी।
जागता शहर का नारा है..जो जागे सो आगे। उसकी खोजी रपटें उन लोगों को झकझोरेंगी, जगाएंगी जो व्यवस्था की मार से थकने और ऊंघने लगे हैं।
जागता शहर में हर हफ्ते खुलेगी उनकी पोल, जो अजगर की तरह अपने आसपास को लपेटे हुए हैं। अजगर अफसर, मंत्री, नेता, अपराधी।
जागता शहर यानी जनतंत्र का प्रहरी, ढुलमुलाते लोकतंत्र की आवाज, भ्रष्ट नौकरशाहों और राजनेताओं का दुश्मन और आम आदमी की जुबान।
जागता शहर अपने जन्म से पहले ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नए मीडिया-परिदृश्य की तरह सुलगने लगा है। उसकी चिंगारियां अटकलों में गूंजने लगी हैं।
जागता शहर के संपादक अनिल शुक्ला की संपादकीय टीम में हैं ऐसे पत्रकार, जिन्हें सेठों और उनके पायताने बैठे समर्पणकारियों की चाटुकारिता रास न आयी।
उन पत्रकारों की टीम, जिन्होने जीवन भर देश के चार बड़े हिंदी अखबारों के भीतर समय गुजारते हुए भी अपनी सोच और शब्द-संपदा को सुरक्षित रखा।
वे पत्रकार, जिन्होंने बड़े-से-बैनर को बात-बात पर ठोकरें मारीं, कभी उनकी झांसा-पट्टियों में नहीं आए। वे जहां भी रहे, पेशे की लड़ाई लड़ते रहे।
...तो ऐसा है जागता शहर परिवार। पत्रकारिता में नयी संभावनाओं का वारिस। पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पूरे प्रदेश और फिर चार राजधानियों तक होगा उसका सफर।
इसी संकल्प के साथ वेस्ट यूपी में नयी कोलाहल पैदा करने जा रहा है जागता शहर। अपने करोड़ों पाठकों की उम्मीदों की सुबह लिये आ रहा है वह शीघ्र सितंबर में.....
अनिलजी ब्लागस्ते,
जहाँ तक मुझे याद आरहा है की बिल्ली से सम्बंधित कथा ,सर आइजेक न्यूटन के साथ जुdi है , और दरवाजे में छेद करने ka ullekh है ,जिससे दरवाजा बंद कर के कaaम करते समय बिल्ली कमरे में आने के लिए दरवाजे पर पंजे मार-मार कर एकाग्रता ना भंग कर सके | और रही बात टैग लगाने की तो हर एक की अपनी आदत या विशेषता होती है | मतलब तो इससे है की ब्लॉगर क्या लिख रहा है ,कैसा लिख रहा है | जहाँ आप ने मुकेश कुमारजी द्वारा Sex टैग लगाने पर आपत्ति उठाई है वहां आप को धन्यवाद |इन सब में समय व्यर्थ करने के स्थान पर जोलिख रहें है अच्छा लिख रहे हैं उसी पर ध्यान दें तो हम जैसों को कुछ पढ़ने को मिलता रहे | यदि मेरी पूर्व की या इस टिप्पणी में कुछ अप्रिय हो तो मुझे खेद है | यहाँ पर दो शीर्षकों की टिप्पणियाँ एक साथ हैं :--१. महज मृदा और मुर्दा ताकतों . . . .22-8-2008 शुक्रवार 2. एक पोस्ट पर इतने टैग ........23-8-2008 शनिवार |

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