Saturday 15 March, 2008

मुंबई के तीन नए ब्लॉगरों के आगे मैं पिद्दी बन गया

नेट पर बैठ जाओ तो पूरा चेन रिएक्शन शुरू हो जाता है। यहां से वहां, वहां से वहां। कल दिन में नेट पर ऐसी ही तफरी कर रहा था कि मुंबई के तीन नए ब्लॉगरों से पाला पड़ गया। और, यकीन मानिए, इनका लिखा मैंने पढ़ा तो कॉम्प्लेक्स से भर गया। मुझे लगा कि साढ़े पांच सौ किलो का जो वजन उठाने का मंसूबा मैं बांध रहा था, उसे तो ये लोग अभी से बड़ी आसानी से उठा रहे हैं। मैं पहले पहुंचा मानव कौल के ब्लॉग पर। मानव की उम्र महज 33 साल है। वे अक्सर ‘अपने से’ बात करते हैं।

इसी बातचीत में वे एक जगह कहते हैं, “कुछ अलग कर दिखाने की उम्र, हम सबने जी है, जी रहे हैं, या अभी जीएंगे। मुझे हमेशा लगता है, ये ही वो उम्र होती है... जब हम सामान्य से अलग दिखने की कोशिश में, खुद को पूरा का पूरा बदल देते हैं।... कुछ अलग कर दिखाने की होड़, हमें किस सामान्यता पर लाकर छोड़ती है, ये शायद हमें जब तक पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। फिर हम शायद अपने किए की निरन्तरता में अपने होने की निरन्तरता पा चुके होते हैं।”

मानव ने एक अन्य पोस्ट में हार-जीत के बारे में लिखा है, “मैं हार क्यों नहीं सकता... या मुझे हारने क्यों नहीं दिया जा रहा है। मुझे हमेशा उन गुरुओं, अभिभावकों से ये गुस्सा रहा है जिन्होंने हमें हमेशा हारने से बचाया है। वो हमें हमारी हार भी पूरी तरह से जीने नहीं देते।...मेरे हिसाब से बात बस रमने की है, खुद अपनी जगह तलाशने की है, जहां से खड़े होकर आपको दुनिया देखना है।” इस पर आई टिप्पणी देखी तो अभिभूत रह गया। वहां से टिप्पणीकार मलय मांगलिक के प्रोफाइल में गया तो पता चला कि उनका अलग ब्लॉग है। मलय मार्केटिंग से जुड़े हैं, मुंबई में ही रहते हैं, गहरे मनोभाव की कविताएं लिखते हैं।

मलय अपनी टिप्पणी में ऐसी बातचीत करते हैं जैसी हम पुराने ब्लॉगरों के बीच नजर नहीं आती। मलय का जवाब यूं है, “इस जीवन में, इस समाज में रहते हुए हम कम से कम उसे तो बिलकुल अनदेखा नहीं कर सकते जो प्राकृतिक मानवीय व्यवहार है। जीतना, हमेशा जीतना, यह मनुष्य मात्र की सबसे मूलभूत इच्छा होती है। समय व स्थान की सीमाओं से मुक्त... सुप्त ही सही, ये भावना प्रत्येक (बिना किसी अपवाद के) मनुष्य में होती है... और कुछ में तो इतनी प्रबल कि हार के कुछ झटके ही उनकी जीने की या प्रगति करने की इच्छा को पूरी तरह से मार सकते हैं।....कई बार हार जीत के अंतर का मिटा दिया जाना उस दबे-छुपे डर पर भी आश्रित होता है कि अगर एक हार हुई और उसकी वजह से लोग पिछली सारी जीतों को भूल गए तो??कहीं एक हार की वजह से रेस में दोबारा स्टार्ट-लाइन पर खड़े कर दिए गए तो?? चलो इससे अच्छा तो पहले से ही बोल दिया जाए कि हार या जीत, कोई फर्क नहीं... गौर से देखें तो यह सब बेसिक सरवाइवल की इच्छा का ही एक्सटेंशन है... दूसरे शब्दों में दबी-छुपी जीत की इच्छा।....
हार या जीत का अंतर न रखना वास्तव में तब उचित है जब बात एक्सेप्टेंस की हो, किसी व्यक्ति विशेष की, उसके समाज में/ उसके परिवेश द्वारा। पर यह व्यक्ति का नहीं, बल्कि उसके समाज का कर्तव्य है... किसी भी समाज को इतना आचारित/ उदार अवश्य होना चाहिए कि वो एक व्यक्ति के संपूर्ण अस्तित्व को मात्र एक हार-जीत से न तौले, बल्कि उसे उसकी संपूर्णता में देखे व स्वीकार करे। दुख है कि कई बार ऐसा नहीं होता... महान से महान (?) समाजों द्वारा भी नहीं..."

टिप्पणी और भी बड़ी है। लेकिन इतने हिस्से से आप मलय के चिंतन की ईमानदारी और गहराई समझ सकते हैं। अब मलय के ब्लॉग से मैं जा पहुंचा मुंबई के तीसरे नए ब्लॉगर अतुल मोंगिया के ठिकाने पर। अतुल अभी 29 साल के हैं। कहीं आरे कॉलोनी की हरी वादियों में रहते हैं। वो अंग्रेजी से हिंदी में आए हैं, कैसे आप उन्हीं के मुंह से सुन लीजिए: यूँ तो हिन्दी मेरी मातृभाषा है पर कुछ ग्लोबलाइज्ड भारत के दोष पर और कुछ अंग्रेज़ी भाषित साहित्य के आत्मसात होने पर, अंग्रेज़ी एक तरह से मेरी पहली भाषा बन गई। मेरा अधिकतम सोचना, बातचीत करना इसी भाषा के संयोग से हुआ। पर विचित्र यह कि एक साल पहले जब कलम को कागज़ पे चलाया तो उसने हिन्दुस्तानी भाषा को अपना माध्यम चुना। मुझे बहुत अच्छा लगा। एक अपनापन भी महसूस हुआ। कुछ भावों और एहसासों को माँ की बोली ही परिणाम दे सकती है, यह ज्ञात हुआ।

अंत में बस इतना ही कि मैं इन तीनों संभावनामय युवा ब्लॉगरों का मुरीद हो गया हूं। ये तीनों ही आपस में एक दूसरे के एक्सटेंशन हैं। और इस एक्टेंशन में अभी विस्तार की बहुत गुंजाइश है।

21 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

तीन नए नौजवान ब्लॉगरों से मुलाकात कराने के लिए धन्यवाद। और ब्लॉग जगत को बधाई इन तीन नए ऊर्जा स्रोतों के आगमन की।

अनूप शुक्ल said...

ब्लाग परिचय कराने का शुक्रिया लेकिन ये बौनेपन का अहसास काहे? आपने भी तो ऐसे तमाम लेख लिखे हैं।

Tarun said...

अरविंदजी, वाकई जो आपने लिखा सही लिखा है, धन्यवाद ३ और ब्लोगरस से मिलाने के लिये।

अनिल रघुराज said...

अनूप जी, धन्यवाद। मैंने भी ऐसे तमाम लेख ज़रूर लिखे हैं, लेकिन ये लोग ज्यादा गहराई से लिख रहे हैं। भावों की गुत्थियों में उतरने का बेहतर हुनर है इनके पास। अच्छा है।
मेरा तो बस यही कहना चाहता था कि तमाम चिरांधियां ब्लॉगरों से अलग नए किस्म के ऊर्जावान और संवेदनशील लोग हिंदी में लिखने लगे हैं। यह बहुत ही सुखद विकासक्रम है।

Unknown said...

मानव की कविताएँ भी बहुत बढ़िया हैं/ बिल्कुल अनूठी शैली है - मुझे उनका पता इरफान के ब्लॉग से मिला था - बाकी दोनों को भी बुक मार्के कर लिया - फुरसत से पढने के लिए - मनीष

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अनिल जी ,
अच्छे को अच्छा कहना , अच्छी से अच्छी बात है .
प्रतिभा के फूल कभी भी ,कहीं भी खिल सकते हैं .
दूसरों की क़ाबिलियत को तहे दिल से तवज़्ज़ो देकर
दरअसल आपने एक बेहद सुलझे हुए और
उदार हृदय का परिचय दिया है .
इससे हमारी नज़र में आपका कद और उँचा हो हो गया है .
काश ! हरेक हिन्दुस्तानी ऐसे ही दिल का मालिक होता !

गुस्ताखी माफ said...

मानव कौल को तो ब्लागवाणी पर पढ़ते रहे है.
अतुल और मलय को मिलाने के लिये शुक्रिया

Sanjeet Tripathi said...

शुक्रिया इनसे परिचय करवाने के लिए

बलबिन्दर said...

इन परिचयों के लिये कोटि-कोटि धन्यवाद्।
एक नयी दुनिया मिली।

anuradha srivastav said...

अभी तक इन पर नज़र क्यों नहीं पढी समझ नहीं आया। शुक्रिया आपने इनसे इनकी प्रतिभा से रुबरु करवाया।

Sunil Deepak said...

अनिल जी, किसका लिखा पसंद आता है और क्यों, कभी पसंद आता है और कभी नहीं भी आता है, यह सब तो अपनी अपनी पसंद की बात है. मुझे तो आप का लिखने का तरीका अच्छा लगता है!
सुनील

Vikash said...

कहीं ये ’शक्कर के पाँच दाने’ और ’इलहाम’ वाले मानव कौल तो नहीं? मैं तो इनका फ़ैन टाइप से हूँ.
धन्यवाद अवगत कराने के लिये.

Yunus Khan said...

बहुत सही । बहुत दिनों से मानव कौल को खोज रहे थे, उनसे मिलने की भी तमन्‍ना है । आपने बहुत ही नेक काम किया है, अपन ने तीनों को बुकमार्क कर लिया है, व्‍यस्‍तताओं की तनी डोर जब ढीली होगी तो झट से पढ़ डालेंगे ।

बोधिसत्व said...

अनिल जी
मोंगिया जी को बतादें कि पाश हिंदी का नहीं पंजाबी का कवि है....

Anita kumar said...

अनिल जी इन तीनों के बारे में बताने के लिए धन्यवाद ,आप इतने प्रभावित हुए है तो जरूर जा कर देखेगें,

Malay M. said...

Shriyut Raghraj ji ... aapke likhe shabd mujh jaise nausikhiye ke liye na kewal aseem utsaahvardhan hain balki aap sarikhe sashakt lekhak ke aashirvachan bhi ... Dr. Jain ne sahi likha hai - pratyek hindustani ko aap sa suljha v udaar hriday hona chahiye ... aapko mera shat shat dhanyavaad ...

Yahaan Aapka likha padhne ka bhi saubhagya mila ... Khazanaa hai , bahut se ratn mile ... aapko 'book mark' kar liya hai ...
Achha likha hua padhnaa meri kamzori hai ...

संजय शर्मा said...

मैं जो कहता जैन साहेब कह गए .सारी नदिया सागर मे विलीन होजाती है . कोई जल्दी चलके कोई देर से . अपनी सोच को आसमान ,जमीन पर रह कर ही दिलाया जा सकता है . शब्द वाक्य सुंदर बन भी जाते है कभी कभी पर अक्सर जब्बर्दास्ती बनाये भी जाते है .
सुंदर बातें , सुंदर सोंच बहुत पहले से परोसी जाती रही है ,उसको जीवन मे उतारने वाला का सर्वथा आभाव रहा है . एहन तक कि उसे उसका रूप भी सही ,सहज नही समझा जाता .

उन तीनो का सोच स्वीकार्य हो ,मंगल कामना ! आपको उनकी बातें अच्छी लगी धन्यवाद ! उनकी सोच से अवगत कराने का साधुवाद !!

संजय शर्मा said...

मैं जो कहता जैन साहेब कह गए .सारी नदिया सागर मे विलीन होजाती है . कोई जल्दी चलके कोई देर से . अपनी सोच को आसमान ,जमीन पर रह कर ही दिलाया जा सकता है . शब्द वाक्य सुंदर बन भी जाते है कभी कभी पर अक्सर जब्बर्दास्ती बनाये भी जाते है .
सुंदर बातें , सुंदर सोंच बहुत पहले से परोसी जाती रही है ,उसको जीवन मे उतारने वाला का सर्वथा आभाव रहा है . एहन तक कि उसे उसका रूप भी सही ,सहज नही समझा जाता .

उन तीनो का सोच स्वीकार्य हो ,मंगल कामना ! आपको उनकी बातें अच्छी लगी धन्यवाद ! उनकी सोच से अवगत कराने का साधुवाद !!

अजित वडनेरकर said...

बहुत बढ़िया अनिल भाई। जिस बड़प्पन का परिचय देते हुए आपने तीनों युवा साथियों से मिलवाया वही बात पसंद आई। तीनो साथियों से तो खैर लगातार मिलते रहेंगे।

Atul Mongia said...

मैं बहुत नया हूँ, मलय भी.
धन्यवाद नहीं कहना चाहता, पर आपके प्रोत्साहन से आगे लिखने का कारवां बढेगा, ऐसी आशा है . जीवन की पहली short story लिख रहा हूँ , हिंदी में.
चाहूँगा आप पढें और टिप्पनी दें. शायद समय लग जाए पर पूरी ज़रूर करूँगा . मलय ने मेरी बात चुरा ली, डॉ. जैन ने अपनी टिप्पनी में पहले ही सब कह दिया है ...

Unknown said...

well.....mein toh lekhika nahi hoon, par yeh teen blogs padhkar especially manav aur malay ke blogs padhkar ek inspiration mila aisa laga shayad mein bhi kuch likh sakti hoon....toh kya agar logon ko pasand aya nahi...jaise in logone kaha....jitna hi toh sab kuch nahi hai..