वो तो सुधर गए, लेकिन ये अब भी अड़े हैं
सामाजिक गतिविधि से जुड़े विवाद अच्छे होते हैं क्योंकि ऐसा हर विवाद उस गतिविधि की सामाजिक स्वीकार्यता बढ़ाने का ज़रिया बन जाता है। भड़ास और निजता से जुड़ा ताज़ा विवाद भी हम सभी के लिए अच्छा रहा है। असल में, कोई कितना भी कहे कि ब्लॉगिंग निजी अभिव्यक्ति का माध्यम है, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि इंटरनेट जैसे खुले मंच पर होने के कारण यह एक सामाजिक गतिविधि है। वैसे भी अभी तक एग्रीगेटरों के चलन के चलते हिंदी ब्लॉगिंग एक सामाजिक/सामूहिक मंच ही बनी हुई है। इसलिए आज का तकाज़ा यही है कि ब्लॉगिंग न तो हर तरह की भड़ास निकालने का मंच है और न ही हम यहां किसी की निजता को तोड़ने की अराजकता कर सकते हैं।
आप सड़क चलते किसी को मां-बहन की गाली नहीं दे सकते और न ही किसी के अंतरंग राज़ का ढिढोरा पीट सकते हैं। नेट के चलते मामला थोड़ा दूर का और परिष्कृत हो गया है, नहीं तो ऐसे लोगों की शारीरिक समीक्षा में ज्यादा देर नहीं लगती। यह अलग बात है कि कुछ लोग इतने थेंथर हो जाते हैं कि हर दूसरे दिन मार खाते हैं, फिर भी छेड़खानी से बाज़ नहीं आते। लेकिन सुखद सच यह है कि ताज़ा विवाद के बाद भड़ास के प्रमुख संचालक ने समझ लिया है कि कैसे कुछ लोग उनके मंच का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं और उन्होंने सदस्यता की नई शर्त बना दी है। फिर भी यह कहकर उन्होंने अपने मंच के बेजा इस्तेमाल की गुंजाइश छोड़ दी है कि, “इसमें अश्लील बातें भी आ सकती हैं लेकिन उनका एक सामाजिक संदर्भ व संदेश व निजी जीवन से कोई मतलब होना चाहिए।” लोगबाग हर अश्लील बात का कोई न कोई सामाजिक संदर्भ और संदेश बता ही डालेंगे।
आप सड़क चलते किसी को मां-बहन की गाली नहीं दे सकते और न ही किसी के अंतरंग राज़ का ढिढोरा पीट सकते हैं। नेट के चलते मामला थोड़ा दूर का और परिष्कृत हो गया है, नहीं तो ऐसे लोगों की शारीरिक समीक्षा में ज्यादा देर नहीं लगती। यह अलग बात है कि कुछ लोग इतने थेंथर हो जाते हैं कि हर दूसरे दिन मार खाते हैं, फिर भी छेड़खानी से बाज़ नहीं आते। लेकिन सुखद सच यह है कि ताज़ा विवाद के बाद भड़ास के प्रमुख संचालक ने समझ लिया है कि कैसे कुछ लोग उनके मंच का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं और उन्होंने सदस्यता की नई शर्त बना दी है। फिर भी यह कहकर उन्होंने अपने मंच के बेजा इस्तेमाल की गुंजाइश छोड़ दी है कि, “इसमें अश्लील बातें भी आ सकती हैं लेकिन उनका एक सामाजिक संदर्भ व संदेश व निजी जीवन से कोई मतलब होना चाहिए।” लोगबाग हर अश्लील बात का कोई न कोई सामाजिक संदर्भ और संदेश बता ही डालेंगे।
हमें नहीं भूलना चाहिए कि कि हम एक लोकतंत्र में रह रहे हैं और अभिव्यक्ति की आज़ादी की छूट का इस्तेमाल करते हुए भी हमें कुछ संयम-नियम का पालन करना होता है। एक-डेढ़ महीने पहले मैंने बोस्टन से जारी एक अमेरिकी दंपती की खबर पढ़ी थी। इसमें पति ने तलाक हो जाने के बाद पत्नी से जुड़ी तमाम बातें अपने ब्लॉग पर लिख मारी, यह कहते हुए कि यह चरित्र काल्पनिक है और उसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन कोर्ट ने कहा कि हम काल्पनिक बताकर भी ऐसी बातें नहीं लिख सकते जिनको किसी चरित्र से जोड़कर देखा जा सके। इसलिए उसने पति महोदय से अपनी पूर्व पत्नी से जुड़ी बातें हटाने को कहा। हालांकि इस दिलजले ने फिर भी अपनी बकवास जारी रखी। अमेरिकी कोर्ट कथात्मक अंदाज़ में लिखी बातों को लेकर कार्रवाई करने में हिचक रहा है, लेकिन पति महोदय ने जहां अपनी पत्नी की डायरी के पन्ने बिना उसकी इजाज़त के छापे हैं, उस पर वह कभी भी सख्त कार्रवाई कर सकता है।
लेकिन अपने यहां तो सामाजिक व राजनीतिक रूप से प्रतिबद्ध साहित्यिक जन डंके की चोट पर कह रहे हैं कि, “चाह कर भी मैं मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं हो सकता। ईर्ष्या, द्वेष, कृतघ्नता की लहलहाती फसल वाले इस देश में मुझे मेरे घटिया होने पर गर्व नहीं है। शर्मिंदगी भी नहीं है।” वो तो निजता की बात उठानेवालों के जीवन मूल्यो पर सवाल उठाते हुए ललकारते हैं, “निजता की इस प्रबल आकांक्षा के पीछे वे कौन-से जीवन मूल्य हैं, जो बड़े सामाजिक मुद्दे को हास्यास्पद बना देने की मुहिम में सक्रिय हो जाने की प्रेरणा देते हैं? एक कमज़ोर और डरी हुई स्त्री की भावुकता से इतना मोह?” वाह रे, ऐसा शब्दाडंबर!!!
लेकिन अपने यहां तो सामाजिक व राजनीतिक रूप से प्रतिबद्ध साहित्यिक जन डंके की चोट पर कह रहे हैं कि, “चाह कर भी मैं मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं हो सकता। ईर्ष्या, द्वेष, कृतघ्नता की लहलहाती फसल वाले इस देश में मुझे मेरे घटिया होने पर गर्व नहीं है। शर्मिंदगी भी नहीं है।” वो तो निजता की बात उठानेवालों के जीवन मूल्यो पर सवाल उठाते हुए ललकारते हैं, “निजता की इस प्रबल आकांक्षा के पीछे वे कौन-से जीवन मूल्य हैं, जो बड़े सामाजिक मुद्दे को हास्यास्पद बना देने की मुहिम में सक्रिय हो जाने की प्रेरणा देते हैं? एक कमज़ोर और डरी हुई स्त्री की भावुकता से इतना मोह?” वाह रे, ऐसा शब्दाडंबर!!!
यानी, ये नहीं सुधरेंगे। ये महानुभाव तो निजी चैट के और भी प्रसंग जुटाने के जुगाड़ में लगे हुए हैं ताकि कुछ सनसनी और (थोथे चने की) घनी आवाज़े सुनाई जा सकें। दिक्कत यह है कि ये किसी की सुनने को तैयार नहीं हैं क्योंकि हम में हर किसी की बातों को इन्होंने ‘ब्लॉग संसार के सियारों का हुआं-हुआं’ करार दिया है। इनको सदबुद्धि नहीं आ सकती है। लेकिन हम ‘सियारों’ को तो अपने स्तर पर इतना करना ही चाहिए कि इस लोमड़ का हमेशा-हमेशा के लिए बहिष्कार कर दें।
फोटो सौजन्य: Tony Dawe
फोटो सौजन्य: Tony Dawe
Comments
लिखते तो आप बढ़िया हैं ही।
आपसे बस इतना निवेदन है कि लिंक्स हटा लीजिए। सभी लोग जान चुके है कि माजरा क्या है, लिंक देकर सम्मान मत दें किसी को।