एक विचार, एक सवाल

एक सिलसिला आज से शुरू कर रहा हूं। कोशिश करूंगा कि हर दिन एक सवाल पेश करूं। इसका जवाब दें या न दें, ये आप पर है, लेकिन इस पर सोचें जरूर, ऐसा मैं चाहता हूं।
पहला सवाल, जिसे राजनीतिक मनोवैज्ञानिक आशीष नंदी ने शनिवार, 24 मार्च 2007 के टाइम्स ऑफ इंडिया में उठाया है :
एक अरब की आबादी वाला कोई देश अपनी प्रतिष्ठा और सम्मान का जिम्मा बीस से तीस साल के 11 खिलाड़ियों पर कैसे छोड़ सकता है? जो काम राजनीतिक नेताओं, प्रशासकों, औद्योगिक हस्तियों, सेना और कानून-व्यवस्था की मशीनरी को करना है, उसके लिए क्रिकेट टीम की तरफ देखना कहां तक वाजिब है?

Comments

Udan Tashtari said…
अनिल भाई

प्रतिष्ठा और सम्मान के कई पहलू होते है देश की तरह हर परिवार में भी- मसलन लड़का बर्बाद निकल गया, लड़की भाग गई, बाप दारुबाज है, दादा जी कर्जा ले कर खा गये ...परिवार की प्रतिष्ठा और सम्मान के लिये सभी पहलूओं का परफेक्ट रहना जरुरी है...हमारी क्रिकेट टीम का विश्व कप प्रदर्शन भी इसी तरह भारत यानि देश की प्रतिष्ठा और सम्मान का एक पहलू है...उसके फिट न रहने पर धक्का पहुँचना तो स्वभाविक है.

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