हम क्यों दें सर्विस टैक्स?
1994-95 में देश में सर्विस टैक्स की शुरुआत तीन सेवाओं से हुई। आज इसे करीब सौ सेवाओं पर लगा दिया गया है। इसे लागू करते समय तर्क दिया गया था कि बहुत सारे लोग अलग-अलग धंधों से अच्छी-खासी कमाई करते हैं, लेकिन सरकारी खजाने में कुछ नहीं देते। इसलिए उन पर टैक्स लगाना जरूरी है। आम लोगों ने इसका स्वागत किया। लेकिन असल में जब ये टैक्स लगाया गया तो सर्विस देनेवालों पर नहीं, सर्विस लेनेवालों पर लगाया गया। यानी, आम आदमी पर बोझ और बढ़ गया। कमानेवालों पर कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि वो तो ग्राहक के बिल में सर्विस टैक्स ऊपर से जोड़ देते हैं। होटल में आप 100 रुपए का खाना खाते हैं तो आपको देने पड़ते हैं 110 रुपए। यही हाल वैल्यू ऐडेड टैक्स, वैट का भी है। फर्नीचर आप खरीदते हैं 1000 रुपए का, लेकिन आपकी जेब से ढीले होते हैं 1125 रुपए। वैसे, आज भी धुआंधार कमाई करनेवाले डॉक्टर और वकील सर्विस टैक्स के नेट से बाहर हैं। लेकिन इन पर सर्विस टैक्स लगाने की मांग करने से भी डर लगता है क्योंकि यह टैक्स लग गया तो ये अपनी फीस उसी हिसाब से बढ़ा देंगे।
आज का सवाल इसी से जुड़ा है :
क्या सर्विस टैक्स सर्विस देनेवालों पर लगाया जाना चाहिए या अभी की तरह सर्विस लेनेवालों पर?
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