अनुभूति उन्मत्त प्यार की
1. उसके सीने में हल्की-सी सिहरन पैदा करता, लेकिन साथ ही कुछ अजीब किस्म की दुस्साहसी भावनाओं का बहाव अनचाही उम्मीदें लेकर हिलोरे मार रहा था। इसके साथ ही ये आशंका भी कि कहीं ये सब ऐसा सपना न हो जो कभी सच न हो सके। इधर-उधर करवटें लेता उसके अंदर का बहाव एक विराट धारा का रूप ले रहा था, एक ऐसा अहसास जैसे उसके भीतर कुछ खुल जाना चाहता हो, सांस लेना चाहता हो...एक सिसकी, एक गीत, एक चीख या एक जोरों की हंसी...
(नोबेल पुरस्कार विजेता जर्मन लेखक हेरमान हेस्से के उपन्यास Unterm Rad की लाइनें)
2. समय जब अल्हड़ होता है, शरीर की एक-एक कोशिका ज्वालामुखी
जिंदगी जब काटे नहीं कटती
नींद के पहले और बाद, किसी का ख्याल जब हटाए नहीं हटता
बातें जब कभी खत्म नहीं होतीं
जेहन में जब मीठा-मीठा डर होता है
अपना वजूद ही जब किसी के अंग-अंग में घुल जाता है
किसी के प्रभामंडल की आंच में मन जब शीतल-शीतल हो जाता है
दिल जब किसी की आहट, किसी की आवाज़, किसी की पलकों के उठने से
अज्ञात, अव्यक्त, अकल्पनीय धड़कन बन जाता है, तब...
तब, अल डोरोडो में भी कांदीद को चैन नहीं मिलता
कुनेगुन ही सबसे बड़ा सच होती है
तब फलसफे भी सुकून नहीं देते
Hang up Philosophy! Unless Philosophy can make a Juliat (शेक्सपियर)
तब थम जाता है प्रवाह, बन जाती है भंवर तुम्हारा परिक्रमा
क्षण नित्य हो जाता है
सापेक्ष-निरपेक्ष, विज्ञान और तर्क के सारे नियम
तुम्हारे कदमों में झुक गए होते हैं...
(प्रसन्न चौधरी की एक लंबी कविता का अंश)
(नोबेल पुरस्कार विजेता जर्मन लेखक हेरमान हेस्से के उपन्यास Unterm Rad की लाइनें)
2. समय जब अल्हड़ होता है, शरीर की एक-एक कोशिका ज्वालामुखी
जिंदगी जब काटे नहीं कटती
नींद के पहले और बाद, किसी का ख्याल जब हटाए नहीं हटता
बातें जब कभी खत्म नहीं होतीं
जेहन में जब मीठा-मीठा डर होता है
अपना वजूद ही जब किसी के अंग-अंग में घुल जाता है
किसी के प्रभामंडल की आंच में मन जब शीतल-शीतल हो जाता है
दिल जब किसी की आहट, किसी की आवाज़, किसी की पलकों के उठने से
अज्ञात, अव्यक्त, अकल्पनीय धड़कन बन जाता है, तब...
तब, अल डोरोडो में भी कांदीद को चैन नहीं मिलता
कुनेगुन ही सबसे बड़ा सच होती है
तब फलसफे भी सुकून नहीं देते
Hang up Philosophy! Unless Philosophy can make a Juliat (शेक्सपियर)
तब थम जाता है प्रवाह, बन जाती है भंवर तुम्हारा परिक्रमा
क्षण नित्य हो जाता है
सापेक्ष-निरपेक्ष, विज्ञान और तर्क के सारे नियम
तुम्हारे कदमों में झुक गए होते हैं...
(प्रसन्न चौधरी की एक लंबी कविता का अंश)
Comments
यह एक ऐसी अनुभूति है जो हर रंग, देश, तबके, धर्म के व्यक्ति को कभी न कभी होती है, बिना किसी भेद भाव के !
घुघूती बासूती