Thursday 15 March, 2007

इस बार के लिए बस इतना ही!

वह अजीब बातें कहता और सोचता था। जैसे, नदी के साथ बहते हुए समुंदर तक पहुंचा जाए तो कैसा रहेगा। एक दिन क्यारी में टमाटर के पौधे को देखकर बोला कि इस तरह टमाटर खाने का क्या मजा है, अरे! बीज के साथ मिट्टी में घुसकर पौधे से होते हुए टमाटर का स्वाद लिया जाए, तब कोई बात है। अभी कल ही की तो बात है। उसने कहा था, ''मैं कल्पना करता हूं उस दिन की, जब मेरे देश की सारी सांस्कृतिक ऊर्जा, सारी सृजनात्मक शक्तियां एक ही दिशा में चलेंगी। मैं उनके अनुनाद से उपजने वाली ऊर्जा की कल्पना करके ही पुलकित हो जाता हूं।''
वह हर चीज की संगति देखता, उसका तालमेल देखता। उसके कमरे की हर चीज करीने से लगी रहती। अगर वह अपने कपड़े फेंकता या कागज और किताबें बिखेरता तो उस अव्यवस्था में भी एक क्रमबद्धता फिट कर देता। फेंकी हुई एक चीज को जरा-सा इधर किया, दूसरी चीज को उठाकर हल्का-सा बगल में कर दिया...और बन गया एक क्रम, एक नई आकृति।
क्रमबद्धता, संगति, अनुनाद। वह कहता, हर चीज जब एक क्रम में आ जाती है, एक लय में ढल जाती है तो उसकी दृश्यता, श्रव्यता में एक अनुनाद उत्पन्न हो जाता है। इस अनुनाद को देखा नहीं, महसूस किया जा सकता है। ऐसे अनुनाद से उपजी ऊर्जा ही हमें जिंदगी को हर पल-क्षण आगे बढ़ाने, बढ़ाते चले जाने की ताकत देती है।
उस पर सोचने का ये तरीका इतना हावी था कि वह बातों की भी क्रमबद्धता देखता, उनकी संगति देखता, उनकी सिमेट्री देखता, ले आउट देखता। उसका तर्क था कि प्रकृति में हर चीज में सिमेट्री है, तितली के पंख, फूलों की पंखुड़ियां, यहां तक कि लंगड़े-लूले इंसान के शरीर में भी एक तरह की सिमेट्री, एक तरह का संतुलन आ जाता है। फिर बात और विचार तो द्रव्य का ही दूसरा रूप हैं, इसलिए इनमें भी सिमेट्री जरूरी है। अगर वो चार लोगों के बीच बात कर रहा होता और उसे अपनी कोई बात कहनी होती तो उसे तभी कहता, जब औरों द्वारा कही गई पिछली बातों से उसका तारतम्य बैठता। पहले तो वह कोशिश करता, इंतजार करता कि खोया हुआ संदर्भ उतनी ही सघनता से दुबारा वापस आ जाए। लेकिन अगर ऐसा नहीं हो पाता, अगर किसी कारणवश वह खास क्रम में अपनी बात को नहीं कह पाता तो वह उसे छोड़ ही देता, अपनी बात को पी जाता, बातों-विचारों के अनंत आकाश में उसे बुढ़िया के बाल (सेमल के पेड़ से निकलनेवाला सफेद रेशों का गोल फूल) की तरह उड़ते-उड़ते ओझल हो जाने, गायब हो जाने के लिए छोड़ देता।
और...कितनी अजीब बात है कि आज वह खुद बुढ़िया के बाल की तरह हमारी आंखों से ओझल हो चुका है। नदी से निकालकर उसकी लाश जलाई जा चुकी है। कमरे का सारा सामान उसके घरवाले आकर ले जा चुके हैं। जब कमरे का ताला खोला गया (हां, तोड़ा नहीं, खोला गया। उसने एक चिट लगाकर बता दिया था कि चाबी मकान के बाहर दाहिनी तरफ भूरे पत्थर के नीचे रखी है) तब वहां कुछ भी अव्यवस्थित नहीं था। अगरबत्ती की खुशबू आ रही थी। कुछ देवी-देवताओं सहित एक खूबसूरत अनाम, कम चर्चित मॉडल की तस्वीरें, लगता था सुबह ही सुबह साफ की गई थीं। मरने की वजह बताने के लिए उसके कोई सुसाइड नोट नहीं छोड़ा था। हां, एक बड़े सफेद पन्ने पर मोटे अक्षरों में जरूर लिख छोड़ा था, 'अलविदा, इस बार के लिए बस इतना ही' ....
उसके कई दोस्तों को सदमा लगा, उसकी मौत से ज्यादा इस बात से कि इतना करीब होने के बावजूद मरने से ठीक पहले उसने कोई इल्तिजा, किसी गिला-शिकवा की बात तो छोड़ दीजिए, उनका जिक्र तक करना जरूरी नहीं समझा। हां, जब उसकी किताबें उठाई जा रही थीं तब उनमें से एक पन्ना जरूर उड़कर गिर गया था, जिस पर हल्की सी निगाह डालकर मैंने उठाकर अपनी जेब में रख लिया था।
वह एक खत की फोटोकॉपी था जिसे उसने अपनी उस पुरानी दोस्त को लिखा था, जो उससे बीस साल पहले बिछुड़ चुकी थी। उस खत में लिखा था :
प्यारी नीलांजना, मैं ठीक 17 दिसंबर 1986 के उस क्षण से शुरू करना चाहता हूं, जब हम बिछुड़े थे। अगर तुम हां कर दो तो मैं समय के रथ में जुते घोड़ों को अयालों से पकड़कर ठीक अपनी जुदाई के पल पर लाकर खडा कर दूंगा, जब स्टेशन की घड़ी 6:35 बजा रही थी, क्षितिज पर डूबे हुए सूरज की लाली बची हुई थी, ब्रह्मपुत्र एक्सप्रेस सीटी देने के बाद धीरे-धीरे आगे सरक रही थी। मैं ट्रेन की खिड़की से भरी आंखों से तुम्हें निहार रहा था और तुम पीछे मुड़कर सीढ़ियां चढ़ने लगी थीं। नीलू, अब भी कुछ टूटा, बिगड़ा या बिखरा नहीं है। ये सच है कि आज मैं वो नहीं हूं जो पहले था। आज मैं एक बेहद डरा हुआ, भयभीत इंसान हूं। हमेशा सुकून के लिए कोई कोना तलाशता हूं। लेकिन मैं तुम्हें यकीन दिलाना चाहता हूं कि मैं बीते बीस सालों के सारे निशान मिटा सकता हूं। मुझे इन बीस सालों में ओढ़े गए बंधनों को झटकने में जरा-सा भी वक्त नहीं लगेगा। बस, तुम मेरे ऊपर भरोसा रखो और हां कर दो। मुझे मालूम है कि तुम मेरी बेगानगी के लिए आज तक मुझे माफ नहीं कर पाई हो। लेकिन ये भी तो सच है कि तुम मुझे याद भी करती हो, नहीं तो शादी क्यों नहीं कर लेती। बस, एक मौके की दरख्वास्त है हुजूर से....
इस पन्ने के पीछे एक और खत की फोटोकॉपी थी जिसे नीलांजना ने भेजा था। इसमें अंग्रेजी में लिखा था...
Passing through the realities of life and human nature, I am well. Hope you will realize this fact of life. Wishing you a happy & properous life. Nilanjana.
गौर फरमाइये, नीलांजना ने खत के आखिर में तुम्हारी या yours लिखने तक की जरूरत नहीं समझी। वह दुनिया से कूच कर चुका है और नीलांचना अभी एक कॉलेज में लेक्चरर है। अपने मां-बाप, भाई बहन सभी से उसने रिश्ते तोड़ लिए हैं। फिलहाल एक धार्मिक मिशन से जुड़ी हुई है। कॉलेज से मुक्त होने पर मिशन के बच्चों को पढ़ाने का काम करती है।

1 comment:

मसिजीवी said...

बात है भई।।