जाने क्या होगा रामा रे, जाने क्या होगा मौला रे
कमाल की बात है कि तीन दिन पहले विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने जिसे बेहद गोपनीय दस्तावेज बताया था, कहा था कि यह privileged confidential document है, उसे अब जगजाहिर कर दिया गया है। कांग्रेस के प्रवक्ता वीरप्पा मोइली अब इस दस्तावेज को de-restricted बता रहे हैं और भारत सरकार के निर्देश पर परमाणु ऊर्जा विभाग ने इसे सार्वजनिक कर दिया है, वो भी तीन दिन पहले 7 जुलाई 2008 की तारीख में। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने भी इस दस्तावेज को सार्वजनिक कर दिया है हालांकि 9 जुलाई 2008 की तारीख में।
इन दोनों की प्रस्तुतियों में अंतर ये है कि हमारे परमाणु ऊर्जा विभाग का दस्तावेज 25 पेज का है, जबकि आईएईए का दस्तावेज 27 पेज का है। आईएईए के दस्वावेज के शुरुआती चार पन्नों में कानून की उलझी भाषा में एजेंसी का दृष्टिकोण रखा गया है और बाकी 23 पन्नों में भारतीय परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा जारी दस्तावेज को ड्राफ्ट के बतौर रख दिया है। दोनों में समानता ये है कि दस्तावेज के अंत में भारत सरकार और आईएईए में हुई सहमति के तहत भारत की जिन परमाणु सुविधाओं को सेफगार्ड्स के तहत रखा गया है, वह सूची खाली छोड़ दी गई है। सवाल उठता है कि जिस दस्तावेज पर आईएईए का गवर्निंग बोर्ड चर्चा करनेवाला है, उसमें इतनी अहम जानकारी खाली क्यों छोड़ दी गई है?
मतलब साफ है कि सार्वजनिक किया गया दस्तावेज अधूरा है। लेकिन मीडिया की तरफ से कहलवाया जा रहा है कि भारत अपने 14 नागरिक परमाणु रिएक्टरों को चरणबद्ध तरीके से निगरानी के लिए पेश करेगा। जबकि दस्तावेज में इस बाबत बस इतनी बात कही गई है कि, “Upon entry into force of this Agreement, and a determination by India that all conditions conducive to the accomplishment of the objective of this Agreement are in place, India shall file with the Agency a Declaration, based on its sovereign decision to place voluntarily its civilian nuclear facilities under Agency safeguards in a phased manner.”
जाहिर है कि मीडिया 'कौआ कान ले गया’ के अंदाज़ में बात कर रहा है। वो वही लिख रहा है जो उसे परमाणु लॉबी की तरफ से ब्रीफ किया जा रहा है। मेरे जैसे आम आदमी के लिए 25-27 पन्नों के दस्तावेज की बारीकियों को समझना नामुमकिन है। आप समझ सकते हों तो दस्तावेज से जुड़े दोनों ही लिंक मैंने दे दिए हैं। अच्छी बात ये है कि भारतीय और अमेरिकी विशेषज्ञ ज़रूर इसकी नुक्ताचीनी में जुट गए हैं। शायद इनकी बातों से हमें इस दस्तावेज के नुक्तों को समझने में मदद मिल जाए।
देश के दो शीर्ष वैज्ञानिकों, परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व चेयरमैन पी के अयंगर और परमाणु ऊर्जा नियंत्रक बोर्ड के पूर्व चेयरमैन ए गोपालकृष्णन ने इसे राष्ट्रीय हितों के प्रति पूर्वाग्रह से भरा बताया है और कहा है कि इसमें परमाणु ईंधन की आपूर्ति पर कोई आश्वासन नहीं दिया गया है। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के पूर्व डायरेक्टर ए एन प्रसाद का कहना है कि दस्तावेज तो ठीक है, लेकि इसमें कुछ भी India-specific नहीं है।
दूसरी तरफ अमेरिका में कहा जा रहा है कि भारत ने कुछ ज्यादा ही छूट ले ली है। अमेरिका के आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन के सदस्य डेरिल किमबॉल का कहना है कि दस्तावेज के मुताबिक, “India may take corrective measures to ensure uninterrupted operation of its civilian nuclear reactors in the event of disruption of foreign fuel supplies." अब परमाणु ईंधन की सप्लाई में तो तभी बाधा आएगी जब भारत परमाणु अस्त्रों का परीक्षण करेगा। किमबॉल ने आशंका जताई है कि भारत इस नुक्ते का इस्तेमाल अपने परमाणु जखीरे को बढ़ाने में कर सकता है। गौरतलब है भारत दुनिया के उन तीन देशों में शुमार है, जिन्होंने अभी तक परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत नहीं किए हैं। एनपीटी पर दस्तखत न करनेवाले बाकी दो देश हैं पाकिस्तान और इस्राइल।
इन दोनों की प्रस्तुतियों में अंतर ये है कि हमारे परमाणु ऊर्जा विभाग का दस्तावेज 25 पेज का है, जबकि आईएईए का दस्तावेज 27 पेज का है। आईएईए के दस्वावेज के शुरुआती चार पन्नों में कानून की उलझी भाषा में एजेंसी का दृष्टिकोण रखा गया है और बाकी 23 पन्नों में भारतीय परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा जारी दस्तावेज को ड्राफ्ट के बतौर रख दिया है। दोनों में समानता ये है कि दस्तावेज के अंत में भारत सरकार और आईएईए में हुई सहमति के तहत भारत की जिन परमाणु सुविधाओं को सेफगार्ड्स के तहत रखा गया है, वह सूची खाली छोड़ दी गई है। सवाल उठता है कि जिस दस्तावेज पर आईएईए का गवर्निंग बोर्ड चर्चा करनेवाला है, उसमें इतनी अहम जानकारी खाली क्यों छोड़ दी गई है?
मतलब साफ है कि सार्वजनिक किया गया दस्तावेज अधूरा है। लेकिन मीडिया की तरफ से कहलवाया जा रहा है कि भारत अपने 14 नागरिक परमाणु रिएक्टरों को चरणबद्ध तरीके से निगरानी के लिए पेश करेगा। जबकि दस्तावेज में इस बाबत बस इतनी बात कही गई है कि, “Upon entry into force of this Agreement, and a determination by India that all conditions conducive to the accomplishment of the objective of this Agreement are in place, India shall file with the Agency a Declaration, based on its sovereign decision to place voluntarily its civilian nuclear facilities under Agency safeguards in a phased manner.”
दस्तावेज के अंत में भारत सरकार और आईएईए में हुई सहमति के तहत भारत की जिन परमाणु सुविधाओं को सेफगार्ड्स के तहत रखा गया है, वह सूची खाली छोड़ दी गई है। सवाल उठता है कि जिस दस्तावेज पर आईएईए का गवर्निंग बोर्ड चर्चा करनेवाला है, उसमें इतनी अहम जानकारी खाली क्यों छोड़ दी गई है?
जाहिर है कि मीडिया 'कौआ कान ले गया’ के अंदाज़ में बात कर रहा है। वो वही लिख रहा है जो उसे परमाणु लॉबी की तरफ से ब्रीफ किया जा रहा है। मेरे जैसे आम आदमी के लिए 25-27 पन्नों के दस्तावेज की बारीकियों को समझना नामुमकिन है। आप समझ सकते हों तो दस्तावेज से जुड़े दोनों ही लिंक मैंने दे दिए हैं। अच्छी बात ये है कि भारतीय और अमेरिकी विशेषज्ञ ज़रूर इसकी नुक्ताचीनी में जुट गए हैं। शायद इनकी बातों से हमें इस दस्तावेज के नुक्तों को समझने में मदद मिल जाए।
देश के दो शीर्ष वैज्ञानिकों, परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व चेयरमैन पी के अयंगर और परमाणु ऊर्जा नियंत्रक बोर्ड के पूर्व चेयरमैन ए गोपालकृष्णन ने इसे राष्ट्रीय हितों के प्रति पूर्वाग्रह से भरा बताया है और कहा है कि इसमें परमाणु ईंधन की आपूर्ति पर कोई आश्वासन नहीं दिया गया है। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के पूर्व डायरेक्टर ए एन प्रसाद का कहना है कि दस्तावेज तो ठीक है, लेकि इसमें कुछ भी India-specific नहीं है।
दूसरी तरफ अमेरिका में कहा जा रहा है कि भारत ने कुछ ज्यादा ही छूट ले ली है। अमेरिका के आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन के सदस्य डेरिल किमबॉल का कहना है कि दस्तावेज के मुताबिक, “India may take corrective measures to ensure uninterrupted operation of its civilian nuclear reactors in the event of disruption of foreign fuel supplies." अब परमाणु ईंधन की सप्लाई में तो तभी बाधा आएगी जब भारत परमाणु अस्त्रों का परीक्षण करेगा। किमबॉल ने आशंका जताई है कि भारत इस नुक्ते का इस्तेमाल अपने परमाणु जखीरे को बढ़ाने में कर सकता है। गौरतलब है भारत दुनिया के उन तीन देशों में शुमार है, जिन्होंने अभी तक परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत नहीं किए हैं। एनपीटी पर दस्तखत न करनेवाले बाकी दो देश हैं पाकिस्तान और इस्राइल।
Comments
विचार विश्लेषण व श्रम के पत्रकारिता से धीरे धीरे छीज जाने का ही असर है हम समझने में कतई विवश हैं कि करार के सही मायने हैं क्या।
पारदर्शी विश्लेषण.
अक्सर पढता हूँ आपको.
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डा.चन्द्रकुमार जैन
मैं खुद को पहले वर्ग में रखता हूं :)
इस सीरीज़ को सहेज रहा हूं।