तो, न्यूक्लियर कचरा कहीं भी फेंक दिया जाएगा?
भारत के साथ हुए सेफगार्ड्स करार के मसौदे पर अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी का गवर्निंग बोर्ड पहली अगस्त को विचार करेगा। इससे पहले शुक्रवार, 18 जुलाई 2008 को भारत व अमेरिका समेत 35 देशों के प्रतिनिधियों से बने इस गवर्निंग बोर्ड को भारत की तरफ से ब्रीफ किया जाएगा ताकि मसौदे पर उठे संदेहों को मिटाया जा सके। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को करार के मसौदे की दो बातों पर ऐतराज है। एक, इसमें कहा गया है कि “India may take corrective measures to ensure uninterrupted operation of its civilian nuclear reactors in the event of disruption of foreign fuel supplies.” लेकिन ये corrective measures क्या होंगे? दो, मसौदे के अंत में वो सूची खाली छोड़ दी गई है जिसमें उन रिएक्टरों का ब्यौरा दिया जाना था जो आईएईए की निगरानी में आएंगे। दुनिया की परमाणु अप्रसार लॉबी को लगता है कि भारत इन दोनों ही नुक्तों का बेजा इस्तेमाल कर सकता है।
देश के भीतर भी विपक्ष इस मुद्दे पर लेफ्ट-राइट कर रहा है। लेफ्ट यूपीए सरकार को ही गिराने पर आमादा है। उसका कहना है कि कांग्रेस का हाथ आम आदमी नहीं, बल्कि अमेरिका के साथ है। मनमोहन सिंह एक मजे हुए नौकरशाह की तरफ अपने नए आका (बुश) के इशारों पर नाच रहे हैं। लेफ्ट की तरह ही बीजेपी ने भी कहा है कि संसद में विश्वास मत जीते बगैर यूपीए सरकार की तरफ से आईएईए सदस्यों के सामने सेफगार्ड्स करार के मसौदे को पेश करना देश के साथ विश्वासघात है। मसौदे पर बीजेपी को खास ऐतराज यह है कि इसमें भारत को परमाणु शक्तिसंपन्न देश (Nuclear Weapons State) नहीं माना गया है। अगर भारत को अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन की तरफ परमाणु शक्तिसंपन्न देश मान लिया जाता तो हमारे तमाम परमाणु संयंत्र आईएईए की निगरानी से बाहर हो जाते।
बीजेपी का कहना है कि सेफगार्ड्स करार के मसौदे में भारत के साथ परमाणु शक्तिविहीन देश (Non-Nuclear Weapon State) जैसा सुलूक किया गया है। इसके चलते भारत के 22 परमाणु संयंत्रों से 14 संयंत्रों के साथ ही टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) जैसे कुल 35 परमाणु सुविधाएं आईएईए की निगरानी में आ जाएंगी। जबकि पांच परमाणु शक्तिसंपन्न देशों के पास करीब 400 परमाणु संयंत्र हैं जिनमें से केवल पांच की निगरानी की जा सकती है। इस तरह मनमोहन सिंह ने भारत के सम्मान को धूल चटा दी है। 21-22 जुलाई को संसद में इस मसले पर पक्ष-विपक्ष टकराएंगे।
लेकिन करार के एक बेहद खतरनाक नुक्ते पर अभी तक किसी ने ध्यान नहीं दिया है। मसौदे के पैराग्राफ 23 बी और सी में कहा गया है कि भारत के अनुरोध पर ऐसी परमाणु सामग्रियों को सेफगार्ड्स के बाहर रखा गया जाएगा जिनकी मात्रा 10 metric tons in total of natural uranium and depleted uranium with an enrichment above 0.005 (0.5 %) और 20 metric tons of depleted uranium with an enrichment of 0.005 (0.5 %) or below से ज्यादा न हो। दूसरे शब्दों में 0.5 फीसदी से ज्यादा सघनता वाले 10,000 किलो यूरेनियम और 0.5 फीसदी से कम सघनता वाले 20,000 किलो यूरेनियम को किसी तरह की निगरानी से बाहर रखा जाएगा। साथ ही मसौदे के पैराग्राफ 26 में कहा गया है कि ऐसी परमाणु सामग्रियों को अगर for the purpose of processing, reprocessing, testing, research or development, within India or to any other Member State or to an international organization ले जाया जाता है तो इन पर सेफगार्ड्स लागू नहीं होंगे।
0.5 फीसदी यूरेनियम सघनता पर ध्यान दीजिए। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में इस्तेमाल किए गए जाने यूरेनियम-235 में यूरेनियम की सघनता 3 से 5 फीसदी होती है। इसके बाद बचे न्यूक्लियर कचरे में यह सघनता घटकर 0.5 फीसदी के आसपास रह जाती होगी। अमेरिका अपने परमाणु संयंत्रों से निकलनेवाले ऐसे न्यूक्लियर कचरे को ठिकाने लगाने के लिए अरसे से परेशान चल रहा है। अमेरिका के एक राष्ट्रवादी थिंकटैंक हेरिटेज फाउंडेशन के मुताबिक इस समय अमेरिका के सौ से ज्यादा संयंत्रों में करीब 58,000 टन न्यूक्लियर कचरा जमा हुआ है और इसके 104 व्यावसायिक न्यूक्लियर रिएक्टर हर साल 2000 टन कचरा निकालते हैं। अमेरिका ने ऐसे कचरे को ठिकाने लगाने के लिए Yucca Mountain नाम का एक पहाड़ी इलाका चुन रखा है। लेकिन इसकी क्षमता कुछ सालों में चुक जाएगी।
मुझे नहीं पता कि भारत-अमेरिका परमाणु संधि के संदर्भ में आईएईए के साथ हुए करार में 0.5 फीसदी के ऊपर-नीचे सघनता वाले 30,000 किलो यूरेनियम को निगरानी से बाहर रखने और भारत के भीतर कहीं भी ले जाने की छूट देने के पीछे का निहितार्थ क्या है। लेकिन खुदा-न-खास्ता परमाणु ईंघन के नाम पर अमेरिका का न्यूक्लियर कचरा अगर भारत के बंदरगाहों पर उतर गया तो उसे आसानी से कहीं भी डंप किया जा सकता है क्योंकि उस पर कोई सेफगार्ड लागू नहीं होगा। शायद यह मेरे शक्की दिमाग की उपज हो। लेकिन अगर इसमें 0.5 फीसदी भी सच है तो हर भारतवासी को इस पर चौकन्ना हो जाना चाहिए।
देश के भीतर भी विपक्ष इस मुद्दे पर लेफ्ट-राइट कर रहा है। लेफ्ट यूपीए सरकार को ही गिराने पर आमादा है। उसका कहना है कि कांग्रेस का हाथ आम आदमी नहीं, बल्कि अमेरिका के साथ है। मनमोहन सिंह एक मजे हुए नौकरशाह की तरफ अपने नए आका (बुश) के इशारों पर नाच रहे हैं। लेफ्ट की तरह ही बीजेपी ने भी कहा है कि संसद में विश्वास मत जीते बगैर यूपीए सरकार की तरफ से आईएईए सदस्यों के सामने सेफगार्ड्स करार के मसौदे को पेश करना देश के साथ विश्वासघात है। मसौदे पर बीजेपी को खास ऐतराज यह है कि इसमें भारत को परमाणु शक्तिसंपन्न देश (Nuclear Weapons State) नहीं माना गया है। अगर भारत को अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन की तरफ परमाणु शक्तिसंपन्न देश मान लिया जाता तो हमारे तमाम परमाणु संयंत्र आईएईए की निगरानी से बाहर हो जाते।
बीजेपी का कहना है कि सेफगार्ड्स करार के मसौदे में भारत के साथ परमाणु शक्तिविहीन देश (Non-Nuclear Weapon State) जैसा सुलूक किया गया है। इसके चलते भारत के 22 परमाणु संयंत्रों से 14 संयंत्रों के साथ ही टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) जैसे कुल 35 परमाणु सुविधाएं आईएईए की निगरानी में आ जाएंगी। जबकि पांच परमाणु शक्तिसंपन्न देशों के पास करीब 400 परमाणु संयंत्र हैं जिनमें से केवल पांच की निगरानी की जा सकती है। इस तरह मनमोहन सिंह ने भारत के सम्मान को धूल चटा दी है। 21-22 जुलाई को संसद में इस मसले पर पक्ष-विपक्ष टकराएंगे।
लेकिन करार के एक बेहद खतरनाक नुक्ते पर अभी तक किसी ने ध्यान नहीं दिया है। मसौदे के पैराग्राफ 23 बी और सी में कहा गया है कि भारत के अनुरोध पर ऐसी परमाणु सामग्रियों को सेफगार्ड्स के बाहर रखा गया जाएगा जिनकी मात्रा 10 metric tons in total of natural uranium and depleted uranium with an enrichment above 0.005 (0.5 %) और 20 metric tons of depleted uranium with an enrichment of 0.005 (0.5 %) or below से ज्यादा न हो। दूसरे शब्दों में 0.5 फीसदी से ज्यादा सघनता वाले 10,000 किलो यूरेनियम और 0.5 फीसदी से कम सघनता वाले 20,000 किलो यूरेनियम को किसी तरह की निगरानी से बाहर रखा जाएगा। साथ ही मसौदे के पैराग्राफ 26 में कहा गया है कि ऐसी परमाणु सामग्रियों को अगर for the purpose of processing, reprocessing, testing, research or development, within India or to any other Member State or to an international organization ले जाया जाता है तो इन पर सेफगार्ड्स लागू नहीं होंगे।
0.5 फीसदी यूरेनियम सघनता पर ध्यान दीजिए। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में इस्तेमाल किए गए जाने यूरेनियम-235 में यूरेनियम की सघनता 3 से 5 फीसदी होती है। इसके बाद बचे न्यूक्लियर कचरे में यह सघनता घटकर 0.5 फीसदी के आसपास रह जाती होगी। अमेरिका अपने परमाणु संयंत्रों से निकलनेवाले ऐसे न्यूक्लियर कचरे को ठिकाने लगाने के लिए अरसे से परेशान चल रहा है। अमेरिका के एक राष्ट्रवादी थिंकटैंक हेरिटेज फाउंडेशन के मुताबिक इस समय अमेरिका के सौ से ज्यादा संयंत्रों में करीब 58,000 टन न्यूक्लियर कचरा जमा हुआ है और इसके 104 व्यावसायिक न्यूक्लियर रिएक्टर हर साल 2000 टन कचरा निकालते हैं। अमेरिका ने ऐसे कचरे को ठिकाने लगाने के लिए Yucca Mountain नाम का एक पहाड़ी इलाका चुन रखा है। लेकिन इसकी क्षमता कुछ सालों में चुक जाएगी।
मुझे नहीं पता कि भारत-अमेरिका परमाणु संधि के संदर्भ में आईएईए के साथ हुए करार में 0.5 फीसदी के ऊपर-नीचे सघनता वाले 30,000 किलो यूरेनियम को निगरानी से बाहर रखने और भारत के भीतर कहीं भी ले जाने की छूट देने के पीछे का निहितार्थ क्या है। लेकिन खुदा-न-खास्ता परमाणु ईंघन के नाम पर अमेरिका का न्यूक्लियर कचरा अगर भारत के बंदरगाहों पर उतर गया तो उसे आसानी से कहीं भी डंप किया जा सकता है क्योंकि उस पर कोई सेफगार्ड लागू नहीं होगा। शायद यह मेरे शक्की दिमाग की उपज हो। लेकिन अगर इसमें 0.5 फीसदी भी सच है तो हर भारतवासी को इस पर चौकन्ना हो जाना चाहिए।
Comments
इसके अलावा अमेरिका भारत को डंपिंग ग्राउंड बनाने की पूरी तैयारी कर ली है। इसलिये हमें सावधान हो जाना चाहिये।
09231845289