दिखे नोट करोड़ के, मगर अदृश्य हैं करोड़ों की पुर्जियां

इस खेल की तरफ इशारा किया था इकनॉमिक टाइम्स ने ठीक विश्वास मत के दिन 22 जुलाई को अपने अंग्रेज़ी अखबार के पहले पेज़ पर छपी एक खबर में, जिसका शीर्षक था - Suitcase to chit: Cos, parties get smarter, Discover Ingenious Ways For Kickbacks... इसमें बताया गया है कि अब नरसिंह राव के ज़माने के झारखंड मुक्ति मोर्चा मामले की तरह बैक खाते में पैसे नहीं जमा कराए जाते, न ही नोटों से भरे सूटकेस सांसदों को पहुंचाए जाते हैं। बल्कि अब सारा लेन-देन उन पुर्जियों के जरिए होता है जिन्हें पहले हुंडी कहा जाता था और जिसे जारी करते हैं नोटों के गैरकानूनी ज़माखोर। नोटों के इन सौदागरों का धंधा बड़ा जमा-जमाया है। करोड़ों नहीं, अरबों का लेन-देन करते हैं ये। देश के थोक बाज़ारों में इनका समानांतर जाल फैला हुआ है। बिल्डरों से लेकर व्यापारियों तक को फाइनेंस की दिक्कत होती है तो करोड़ों का कैश हासिल करने के लिए वे नोटों के इन्हीं सौदागरों का सहारा लेते हैं। तमाम ट्रेडिंग हाउस या ज्वैलरी शॉप्स परदे के पीछे कैश का ये धंधा करती हैं।
ये एक तरह का हवाला है। जिसे पैसे दिए जाने होते हैं उसे एक चिट दे दी जाती है जो अघोषित चेक जैसी होती है। इस पुर्जी को लेनेवाला जब चाहे तब अपनी सुविधा के हिसाब से भुना सकता है। इकनॉमिक टाइम्स की खबर से यही संकेत मिलता है कि इस बार के विश्वास मत में जिन सांसदों को खरीदा गया होगा, उन्हें इसी तरह की पुर्जियां दी गई होंगी। इससे सालों बाद भी वो अपने 25-35 करोड़ रुपए हासिल कर सकते हैं। वैसे ज़रूरत तो उन्हें दस महीने बाद ही लोकसभा चुनावों में पड़नेवाली है। पुर्जियों पर नोट देने का ये धंधा है तो गैरकानूनी, लेकिन यह पूरी तरह भरोसे पर चलता है। आपको पुर्जी मिल गई तो समझो कि अब कोई हेराफेरी नहीं हो सकती।
चेक बाउंस हो सकता है, छह महीने में उसकी मियाद खत्म हो सकती है। लेकिन ये पुर्जियां कभी भी बाउंस नहीं होतीं। हमारे रिजर्व बैंक को भी इन हुंडियों की जानकारी है। गुलाम भारत में इनका खूब चलन था। लेकिन अब भी हमारे व्यापारिक लेनदेन में इनकी काफी अहमियत है। महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में नोट लाने ले जानेवाले आंगड़ियों की लंबी परंपरा रही है। लेकिन आज नोटों के जमाखोरी में लगे व्यापारियों और दलालों का तरीका इनसे काफी अलग है। ये अपना कमीशन लेते हैं जिसकी दर एक फीसदी से लेकर 5-6 फीसदी होती है।
ये लोग कंपनियों और राजनीतिक पार्टियों के बीच सेतु का काम करते हैं। यहां तक कि अंडरवर्ल्ड तक इनकी सेवाएं लेता है। बीजेपी से निष्कासित सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह और सपा महासचिव अमर सिंह तो बस इस धंधे की कड़ियों के बाहरी छोर हैं। कांग्रेस से लेकर बीजेपी और समाजवादी पार्टी तक इन्हीं सौदागरों के माध्यम से अपने चंदे का इंतज़ाम करती है। बल्कि सच कहा जाए तो नोटों के जमाखोर नेताओं की काली कमाई और धंधे के वाहक भर होते हैं। आपको याद होगा कि पिछले साल मार्च में पुणे के एक घोड़ा व्यापारी हसन अली को पकड़ा गया था, जिसके पास से आयकर विभाग को 35,000 करोड़ रुपए के खातों के दस्तावेज मिले थे। उस समय हल्ला मचा था कि आयकर विभाग को हसन अली के कंप्यूटर से कई बड़े राजनेताओं के नाम मिले हैं। लेकिन सारा मामला दबा दिया गया।
एक आयकर अधिकारी के मुताबिक नोटों के ये सौदागर 25-50 करोड़ रुपए तो ऐसे दे देते हैं कि इस हाथ की खबर उस हाथ को भी नहीं होती। ये लोग आमतौर पर हर दिन कम से कम 500 करोड़ रुपए का लेन-देन करते हैं। आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि 20 और 21 जुलाई की रात में कितनी आसानी से इन लोगों ने हमारे 20-25 सांसदों तक अपनी ‘सेवाएं’ पहुंचाई होंगी।
Comments
पर सच क्या है ,? एक ओर इतनी महगाई की लोगों का पेट भरना मुश्किल है और यह नेता जो यह साबित कर रहे हैं जैसे वो किसी और दुनिया के हो जो जनता की भावनाओं से जैसे चाहे खेल सकते हैं इस दभ्भ के साथ की उनका कोई कुछ बिगाड़ नही सकता .