क्रिया की प्रतिक्रिया का नतीजा हैं दादा सोमनाथ
लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के पिता एन सी चटर्जी अखिल भारतीय हिंदू महासभा के सदस्य थे। यह वो पार्टी है जिससे जनसंघ और आज की भारतीय जनता पार्टी का जन्म हुआ है। क्या बात है, पिता घनघोर संघी और बेटा घनघोर कम्युनिस्ट!!! सोचिए, सोमनाथ छोटे रहे होंगे तो घर का क्या माहौल रहा होगा। खैर, सोमनाथ ने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज और ब्रिटेन की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है तो पिता के विचारों का साया उन पर ज्यादा नहीं पड़ने पाया। या हो सकता है कि आज अगर वो कम्युनिस्ट हैं तो इसकी मूल वजह पिता के कट्टर हिंदूवादी विचारों की प्रतिक्रिया हो। वैसे, 2003 में सोमनाथ चटर्जी उस संसदीय समिति के सदस्य थे, जिसने संसद के सेंट्रल हॉल में वीर सावरकर की तस्वीर लगाने के प्रस्ताव को हरी झंडी दी थी। सोमनाथ अब इसे अपनी गलती मान चुके हैं, लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि ये उनके अवचेतन पर पड़े पिता के असर का नतीजा था?
राजनीति में आने से पहले सोमनाथ कलकत्ता हाईकोर्ट में वकालत करते थे। 1968 में सीपीएम के सदस्य बने। तब से लगातार वहीं खूंटा गाड़े हुए हैं। 25 जुलाई 1929 को जन्मे सोमनाथ देश की आज़ादी के वक्त 18 साल के हो चुके थे। ज़ाहिर है वे उस वक्त राजनीतिक रूप से काफी सचेत रहे होंगे। लेकिन उनकी राजनीतिक सक्रियता की जानकारी नहीं है। हां, देश की संसदीय राजनीति में उनकी सक्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे 1971 में 5वीं लोकसभा से लेकर मौजूदा 14वीं लोकसभा तक हमेशा बोलपुर (पश्चिम बंगाल) से सीपीएम के टिकट पर लगातार सांसद चुने जाते रहे हैं। कल 22 जुलाई की तारीख बड़ी अहम है क्योंकि मनमोहन सरकार रहे या जाए, लेकिन इस दिन सोमनाथ का नाम देश की संसदीय राजनीति में उस शख्स के रूप में दर्ज कर लिया जाएगा जिसने पार्टी राजनीति से ऊपर उठकर लोकसभा अध्यक्ष के पद की गरिमा को बरकरार रखा। चार दिन बाद दादा सोमनाथ अपना 79वां जन्मदिन शायद इसी आभामंडल के बीच मनाएंगे।
अगर विश्वासमत पर बराबरी की स्थिति रही तो सोमनाथ का मत निर्णायक साबित हो जाएगा और हर हालत में वो विश्वासमत के खिलाफ ही वोट देंगे। आज साफ हो गया है कि सीपीएम क्रांतिकारी बदलाव की नहीं, यथास्थितिवाद की पोषक की पार्टी है। संसदीय लोकतंत्र में उसकी पूरी आस्था है। वो कहीं से किसी संसदीय संस्था को कमज़ोर नहीं करना चाहती। लेकिन पार्टी लाइन का भी अपना अनुशासन होता है। सोमनाथ ने सीपीएम की भावना के अनुरूप लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी की मर्यादा और पार्टी लाइन में सही-सही संतुलन बनाए रखने की कोशिश की है। यही वजह है सीपीएम के दो दिग्गज नेता प्रकाश करात और सीताराम येचुरी उनके खिलाफ कुछ नहीं बोल रहे।
हां, सीपीएम के सामान्य नेता ज़रूर कह रहे हैं कि पार्टी एक परिवार की तरह होती है और परिवार जब संकट में हो तब उसका कोई सदस्य ‘निष्पक्ष’ कैसे रह सकता है। खैर, सीपीएम ने अपने व्हिप से लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को बाहर रखा है। वैसे, यह महज औपचारिकता है क्योंकि वो ऐसा न भी करती तब भी नियमत: यह कुर्सी किसी भी पार्टी के व्हिप से ऊपर है।
एक आखिरी बात। मनमोहन सिंह को सोमनाथ चटर्जी पर बड़ा भरोसा है। इसकी वजह सोमनाथ नहीं, बल्कि उनके पिता एन सी चटर्जी हैं। असल में 1947 में विभाजन के बाद मनमोहन सिंह सपरिवार पाकिस्तान से भागकर भारत आए तो उन्होंने उसी हिंदू कॉलेज से अर्थशास्त्र में पढ़ाई की थी जिसके चेयरमैन एन सी चटर्जी थे। जून 2004 में सोमनाथ को सर्वसम्मति से लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया था तो मनमोहन सिंह ने उनसे कहा था, “अब मेरी रातें चैन से गुजरेंगी... मुझे यकीन है कि आप अच्छे लोकसभा अध्यक्ष साबित होंगे।” यकीनन सोमनाथ अच्छे लोकसभा अध्यक्ष साबित हुए हैं, लेकिन इधर 10-15 दिनों से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की रातों का चैन उड़ा हुआ है। कम से कम आज की रात तो वो नहीं ही सो पाएंगे क्योंकि आज कत्ल की रात है। कल ऐसा भी हो सकता है कि वो प्रधानमंत्री से कार्यकारी प्रधानमंत्री बन जाएं।
सूचनाओं का स्रोत : मिन्ट का एक लेख
राजनीति में आने से पहले सोमनाथ कलकत्ता हाईकोर्ट में वकालत करते थे। 1968 में सीपीएम के सदस्य बने। तब से लगातार वहीं खूंटा गाड़े हुए हैं। 25 जुलाई 1929 को जन्मे सोमनाथ देश की आज़ादी के वक्त 18 साल के हो चुके थे। ज़ाहिर है वे उस वक्त राजनीतिक रूप से काफी सचेत रहे होंगे। लेकिन उनकी राजनीतिक सक्रियता की जानकारी नहीं है। हां, देश की संसदीय राजनीति में उनकी सक्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे 1971 में 5वीं लोकसभा से लेकर मौजूदा 14वीं लोकसभा तक हमेशा बोलपुर (पश्चिम बंगाल) से सीपीएम के टिकट पर लगातार सांसद चुने जाते रहे हैं। कल 22 जुलाई की तारीख बड़ी अहम है क्योंकि मनमोहन सरकार रहे या जाए, लेकिन इस दिन सोमनाथ का नाम देश की संसदीय राजनीति में उस शख्स के रूप में दर्ज कर लिया जाएगा जिसने पार्टी राजनीति से ऊपर उठकर लोकसभा अध्यक्ष के पद की गरिमा को बरकरार रखा। चार दिन बाद दादा सोमनाथ अपना 79वां जन्मदिन शायद इसी आभामंडल के बीच मनाएंगे।
अगर विश्वासमत पर बराबरी की स्थिति रही तो सोमनाथ का मत निर्णायक साबित हो जाएगा और हर हालत में वो विश्वासमत के खिलाफ ही वोट देंगे। आज साफ हो गया है कि सीपीएम क्रांतिकारी बदलाव की नहीं, यथास्थितिवाद की पोषक की पार्टी है। संसदीय लोकतंत्र में उसकी पूरी आस्था है। वो कहीं से किसी संसदीय संस्था को कमज़ोर नहीं करना चाहती। लेकिन पार्टी लाइन का भी अपना अनुशासन होता है। सोमनाथ ने सीपीएम की भावना के अनुरूप लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी की मर्यादा और पार्टी लाइन में सही-सही संतुलन बनाए रखने की कोशिश की है। यही वजह है सीपीएम के दो दिग्गज नेता प्रकाश करात और सीताराम येचुरी उनके खिलाफ कुछ नहीं बोल रहे।
हां, सीपीएम के सामान्य नेता ज़रूर कह रहे हैं कि पार्टी एक परिवार की तरह होती है और परिवार जब संकट में हो तब उसका कोई सदस्य ‘निष्पक्ष’ कैसे रह सकता है। खैर, सीपीएम ने अपने व्हिप से लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को बाहर रखा है। वैसे, यह महज औपचारिकता है क्योंकि वो ऐसा न भी करती तब भी नियमत: यह कुर्सी किसी भी पार्टी के व्हिप से ऊपर है।
एक आखिरी बात। मनमोहन सिंह को सोमनाथ चटर्जी पर बड़ा भरोसा है। इसकी वजह सोमनाथ नहीं, बल्कि उनके पिता एन सी चटर्जी हैं। असल में 1947 में विभाजन के बाद मनमोहन सिंह सपरिवार पाकिस्तान से भागकर भारत आए तो उन्होंने उसी हिंदू कॉलेज से अर्थशास्त्र में पढ़ाई की थी जिसके चेयरमैन एन सी चटर्जी थे। जून 2004 में सोमनाथ को सर्वसम्मति से लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया था तो मनमोहन सिंह ने उनसे कहा था, “अब मेरी रातें चैन से गुजरेंगी... मुझे यकीन है कि आप अच्छे लोकसभा अध्यक्ष साबित होंगे।” यकीनन सोमनाथ अच्छे लोकसभा अध्यक्ष साबित हुए हैं, लेकिन इधर 10-15 दिनों से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की रातों का चैन उड़ा हुआ है। कम से कम आज की रात तो वो नहीं ही सो पाएंगे क्योंकि आज कत्ल की रात है। कल ऐसा भी हो सकता है कि वो प्रधानमंत्री से कार्यकारी प्रधानमंत्री बन जाएं।
सूचनाओं का स्रोत : मिन्ट का एक लेख
Comments
इस लिहाज से लेख समझ में नहीं आया.
फर्क इस बात से पड़ता है कि वह ईमानदारी से इंन्सानियत के हक में है या नहीं। अगर व्यक्ति में मौलिक ईमानदारी हो तो किसी राह पर चल कर भी वह गन्तव्य तक पहुँच जाएगा।