गुजरात के एक मुस्लिम पुलिसवाले का मृत्यु-पूर्व बयान

‘उन सभी के घर जाना और मेरी तरफ से उनके घरवालों से माफी मांग लेना’
कुछ साल पहले की बात है। गुजरात का एक मुस्लिम पुलिस अफसर कैंसर से पीड़ित अपने साथी दूसरे मुस्लिम पुलिस अफसर को देखने गया। उस अफसर की हालत बिगड़ चुकी थी। वो दो-चार दिन का ही मेहमान था। उसने इस पुलिस अफसर के पास आते ही उसका हाथ पकड़ लिया। मिन्नत करते हुए उससे बोला, “मेरे पास बहुत कम वक्त बचा है। मैंने ज़िंदगी में बहुत गलत काम किए हैं। हमने कुछ बेगुनाहों को आतंकवादी बताकर मारा है। तुम उनके घरवालों से ज़रूर मिलना और मेरी तरफ से उनसे माफी मांग लेना।” कैंसर से पीड़ित वह पुलिस अफसर चंद दिनों में मर गया। लेकिन उसकी बातें उसके साथी पुलिस अफसर के मन को मथती रहीं।

ये आज टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर का पहला पैराग्राफ है। इसके बाद खबर में बताया गया है कि गुजरात पुलिस के उन तमाम मुस्लिम अफसरों का आज यही हाल है जो पिछले छह साल से चलाए जा रहे आतंकवाद-विरोधी ऑपरेशन में शामिल रहे हैं। इस ऑपरेशन के तहत फर्जी मुठभेड़ों में न जाने कितने बेगुनाहों को मौत के घाट उतारा गया और न जाने कितनों को परेशान किया गया। इसी का नतीजा है कि पहले मुस्लिम आबादी अपने अफसरों पर भरोसा करके उन्हें अपराधियों और आतंकवादियों की सारी संदिग्ध गतिविधियों की जानकारी दे देती थी। लेकिन अब उसने अपनी जुबान सिल ली है।

बीते शनिवार को अहमदाबाद में जो धमाके हुए हैं, उनमें माना जाता है कि 50 से ज्यादा स्थानीय लोगों ने आतंकवादियों को ठौर-ठिकाना मुहैया कराया था। लेकिन पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगने पाई। धमाकों के तीन-चार दिन बाद भी पुलिस के हाथ कोई सुराग नहीं आया है। इसकी वजह मुस्लिम समुदाय के बीच पुलिसवालों के प्रति छाया गहरा अविश्वास है।

एक वरिष्ठ पुलिस अफसर का कहना है कि, “पुलिस के पास पहले निचले स्तर पर खबरियों का अच्छा नेटवर्क था जो अंडरवर्ल्ड और आतंकवादियों की गतिविधियों का खुलासा करने में भरपूर मदद करता था। वह भरोसा अब पूरी तरफ टूट चुका है और यहां तक कि अब मुस्लिम पुलिस अफसरों को भी कोई कुछ जानकारी नहीं देता।”

ये सिलसिला एक हिस्ट्रीशीटर गैंगस्टर के विवादास्पद एनकाउंटर से शुरू हुआ था। क्राइम ब्रांच ने एक मुस्लिम हेड कांस्टेबल को गैंगस्टर के पिता के पास भेजा यह समझाने के लिए कि अगर वो अपने बेटे को पकड़वा दे तो उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। हेड कांस्टेबल ने उस बुजुर्ग से कहा कि, “मैं पांचों वक्त नमाज पढ़नेवाला मुसलमान हूं। आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं।” बाप ने बेटे को पुलिस के हवाले कर दिया। लेकिन तीन दिन बाद क्राइम ब्रांच से घोषित किया कि उस गैंगस्टर को मार डाला गया है। वह एक आतंकवादी था जो नरेंद्र मोदी को मारने की साजिश रच रहा था।

क्राइम ब्रांच से अपराधियों और आतंकवाद से निपटने की केंद्रीय एजेंसी का काम लिया गया। 2002 के दंगों के बाद से इसने आठ एनकाउंटरों में 14 लोगों को मारा है। उक्त पुलिस अफसर का कहना है कि मुस्लिम पुलिसकर्मी पहले खबरियों और पुलिस के बीच की मजबूत कड़ी हुआ करते थे। लेकिन आतंकवाद के खिलाफ युद्ध के नाम पर की गई ज्यादतियों के बाद यह कड़ी टूट गई। अपने ही कौम के पुलिसवालों से मुस्लिम समुदाय का भरोसा उठ गया। आज खुफिया तंत्र का पूरी तरफ नाकाम हो जाना इसी भरोसे के टूट जाने का सीधा नतीजा है।
खबर का स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया

Comments

सबसे जोरदार खबरियों का तंत्र "बनजारा" का था जो अभी कैद में है. कहते है हाल में उसकी कमी खल रही है. मजे की बात है वह हिन्दु है.


गुजरात की बात तो चलो मान लें मगर दुसरी जगह क्या हुआ? जैसे राजस्थान या कर्णाटक मुसलिम फ्रेण्डली समाजवादी राज्य उत्तरप्रदेश वगेरे में?
आपसे सहमत हूँ.
इस भरोसे का खत्म हो जाना ही नित्य नै समस्यों को जनम दे रहा है और आतंकवाद के खिलाफ लडाई को कमजोर कर रहा है
Shiv said…
"इसी का नतीजा है कि पहले मुस्लिम आबादी अपने अफसरों पर भरोसा करके उन्हें अपराधियों और आतंकवादियों की सारी संदिग्ध गतिविधियों की जानकारी दे देती थी। लेकिन अब उसने अपनी जुबान सिल ली है।"

"बीते शनिवार को अहमदाबाद में जो धमाके हुए हैं, उनमें माना जाता है कि 50 से ज्यादा स्थानीय लोगों ने आतंकवादियों को ठौर-ठिकाना मुहैया कराया था। लेकिन पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगने पाई।"

"ये सिलसिला एक हिस्ट्रीशीटर गैंगस्टर के विवादास्पद एनकाउंटर से शुरू हुआ था। क्राइम ब्रांच ने एक मुस्लिम हेड कांस्टेबल को गैंगस्टर के पिता के पास भेजा यह समझाने के लिए कि अगर वो अपने बेटे को पकड़वा दे तो उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। हेड कांस्टेबल ने उस बुजुर्ग से कहा कि, “मैं पांचों वक्त नमाज पढ़नेवाला मुसलमान हूं। आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं।” बाप ने बेटे को पुलिस के हवाले कर दिया। लेकिन तीन दिन बाद क्राइम ब्रांच से घोषित किया कि उस गैंगस्टर को मार डाला गया है। वह एक आतंकवादी था जो नरेंद्र मोदी को मारने की साजिश रच रहा था।"

धन्य है टाईम्स ऑफ़ इंडिया. एक गैंगस्टर के मारे जाने के विरोध का अच्छा तरीका निकाला गया है. मतलब यह है कि वहां के लोग मान रहे हैं कि उनके बीच से ही लोग आतंकवादियों से मिले हुए हैं.

इसी बात पर एक बात याद आई. दोन ब्रैडमैन के मरने के बाद आस्ट्रेलियन मीडिया में एक ख़बर छपी. एक टेस्ट टीम और वनडे टीम में खिलाड़ियों का नाम डालकर बताया गया कि ये टीम दोन ब्रैडमैन साहब ने बनाई थी. महीनों तक इन दोनों टीम में शामिल किए गए खिलाड़ियों को लेकर खूब बहस हुई. बहस इस बात की कि किसे टीम में रखना चाहिए था और किसे नहीं. अगर किसी को रखा तो क्यों रखा?

इस बात की सफाई देने के लिए दोन ब्रैडमैन जिन्दा नहीं थे. किसे पता कि वो दोनों टीम उन्ही ने बनाई थी या किसी और ने. या फिर मीडिया को मुद्दा चाहिए था बहस करवाने का.

सर, वो पुलिस आफिसर मर चुका है. उस पुलिस आफिसर का नाम तक नहीं बताया गया है. एक तरफ़ तो टाईम्स ऑफ़ इंडिया जैसा न्यूज पेपर यह लिखता फिरता है कि गुजरात में मुस्लिम पुलिस अफसरों को अलग-थलग रख दिया गया था. वही टाईम्स ऑफ़ इंडिया आज लिख रहा है कि मुस्लिम पुलिस अफसरों को इतनी तवज्जो दी गई कि उन्हें ऐसी खुफिया आपरेशन में शामिल किया गया जो नरेन्द्र मोदी के कहने पर चलते थे. कौन सी बात सही है? आप तो ख़ुद मीडिया से जुड़े हैं. आप ही सोचकर बताईये.
बिना सिर पैर का भी बढिया लिख लेते हैं आप .
पूरी तरह से असहमत,
चलिए कम से कम टाईम्स ऑफ़ इंडिया के और आप के लिखने से ये तो पता चला की अब आप लोग निर्विवाद रूप से मानते है की ये काम किसका है.
गुजरात में बम फोड़ा जाता है तो ईमेल में लिखते है की गुजरात का बदला, तो फ़िर बाकी देश में किस चीज़ का बदला लिया जा रहा है?
दुनिया के हर कोने में सिर्फ़ इनको ही सताया जाता है, और यह बेचारे बम फोड़ के लोगो को अपनी बात सुना रहे है?
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई अपने देश में वर्षों से तबाही मचाते आ रहा है। उसे रोकने के लिये हमलोग हर संभव कोशिश भी कर रहें हैं लेकिन नरेन्द्र मोदी जैसे लोग आंतकवाद के नाम पर निर्दोषों की हत्या कर आईएसआई का ही हाथ मजबूत कर रहे हैं। दंगे में अपने परिवार को खो चुके कुछ लोगों को आईएसआई आसानी से अपने पाले में कर षडयंत्र में शामिल कर लेता है। आज यही कारण है कि गुजरात में 49 लोगों की हत्या करने वाले हत्यारों का सुराग सरकार को नहीं मिल पा रहा है। खुले आम चुनौती दी जा रही है। ऐसा न हो कि अपनी पीठ थपथपाने के लिये किसी निर्दोष को फिर मार कर एक और घटना को अंजाम देने के लिये भूमिका बना दें।
Unknown said…
काफ़ी लोग पहले ही इस लेख की मलामत कर चुके हैं, अब और क्या लिखूं? रही बात "टाइम्स" की, तो उनका पूरा ग्रुप भाजपा-मोदी विरोध के बुखार से ग्रस्त है, शायद उन्हें भी कोई पद्म पुरस्कार चाहिये होगा, ठीक राजदीप की तरह…
थ्री चीयर्स फॉर संजय शर्मा जी!
मरने से पहले उस पुलिस वाले ओफ़िसर ने अपना व्यान किसी वकील को या किसी आदालत मे क्यो नही दिया, ???
इन विद्वानो के बीच हम क्या बोलें? ...बस ये दिख रहा है कि ‘जितने मुँह उतनी बातें’।
drdhabhai said…
भाई कम से कम गुजरात मैं तो हर मुसलमान को दो चार बम फोङने की इजाजत मिलनी ही चाहिये,क्या एक धर्म निरपेक्ष लोकतंत्र मै अल्पसंख्यकों को इतना भी हक नहीं मिलना चाहिये....क्यों इंडियन जी सही कहा न.....
Smart Indian said…
तो अब आतंकवादियों का भरोसा गुजरात पुलिस पर से उठ गया है ...ठीक?
Asha Joglekar said…
On whose side are You ?
जिस पुलिस वाले को इतनी महत्वपूर्ण सी बात बताई गई क्या उसका नाम-पता अखबार में नहीं छपा...
खबर खबर है। मैंने तो बस टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर का हिंदी अनुवाद पेश किया था। मैं किसी की तरफ नहीं हूं, न्याय के पक्ष मं हूं। हर तरह के आतंकवाद के खिलाफ हूं चाहे वो किसी संगठन से आए या किसी सरकार की तरफ से।
आप में से अधिकांश लोगों की टिप्पणी से यही लगा कि जिन्ना की राजनीति अब भी सफल है। दो राष्ट्रों की सोच का विषैला बीज अब बटवृक्ष बन गया है। कितना जहर भरा है, कितना पूर्वाग्रह भरा है कि मोदी की जिन्ना राजनीति पर हम मुदित हैं। इस सोच से किसी पार्टी या पंथ का तो भला हो सकता है, राष्ट्र का कतई नहीं। आप लोग संभव हो तो आंख मूंदकर थोड़ा मनन करें। अपने आराध्य को याद करें। शायद इससे दिमाग में छाये अंधेरे को दूर करने में थोड़ी मदद मिल जाए।
anil yadav said…
मुस्लिम लीग से टिकट की संभावना पक्की कर रहें हैं क्या ....अगर बौद्धिक पेचिश करने का इतना ही शौक है तो ठीक ठाक किया करें.............
मैंने टाइम्‍स की यह खबर पहले नहीं पढी थी, अब देखी।


साथ ही देखा कि कमलेश्‍वर के कितने पाकिस्‍तान की तर्ज पर ब्‍लॉगजगत में बँटवारा बिल्‍कुल साफ हो चुका है। पाकिस्‍तान तैयार हो गए हैं।

सिर्फ आशा ही की जा सकती है कि विवेक के लिए गुंजाइश बनेगी। मुझे लगता है कि टाइम्‍स की इस खबर में अगर सच्‍चाई है तो ये हश्‍ा हश कर देने की चीज नहीं है। गुजरात के धमाके अगर हर व्‍यक्ति के मन में ये विश्‍वास पैदा कर पा रह हैं कि 'मुसलमान मात्र' होना आतंकवादी होना है तब तो भले ही ध‍माके न हों, बम पहले ही पकड़ लिए जाएं तब भी आतंकवादी सफल हो जाएंगे।


मुझे कतई नहीं लगता कि आपकी बात बेसिर पैर की है।
indian said…
achaa lgaa aap ki dayri padker

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