कहीं एक मासूम नाज़ुक-सी लड़की...
बात इलाहाबाद के दिनों की है। पढ़ने में, देखने में, सुनने में... सब में अच्छे थे तो लड़कियों को ठेंगे पर रखते थे। लेकिन युवावस्था में साथी की तलाश किसे नहीं होती। मुझे भी थी। तो मैंने भी कहीं से मोहम्मद रफी का ये गाना सुना कि कहीं एक मासूम नाज़ुक-सी लड़की, बहुत खूबसूरत मगर सांवली-सी... बस क्या था संगिनी का सपना ऐसी ही छवि के इर्दगिर्द बुनता गया। दिक्कत बस इतनी रही कि इलाहाबाद में रहते हुए न तो ऐसी कोई लड़की मिली और मिली भी तो भायी नहीं। तो चलिए शनिवार का दिन है, थोड़ी फुरसत का दिन। आप भी सुन लीजिए वो मनोहारी गीत... वीडियो पर मत जाइएगा जो मुझे भी खास जमा नहीं...
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और जांनिसार अख्तर ने लिखा है । संगीतकार हैं खैयाम । फिल्म खास नहीं थी ये तो तय है । पर इसके सभी गाने अनमोल हैं और रेडियोवाणी पर मैंने इन गानों पर एक सीरिज़ की थी । ये गाने वहां उपलब्ध हैं । कहते हैं कि जावेद अख्तर ने अपने पिता की इसी रचना से प्रेरित होकर 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा'गाना लिखा था ।
vaakaee jin ladkiyon me ye saaree kamiyaa hongee, unhi ko rakhate honge!
What about the girls who were better than you? ha. ha.., vo aap jaiso ko Thenge pe rakhatee hongee!!! :)
Anyway thanks for the song.