माई री, मैं कासे कहूं री अपने जिया की...

अक्सर ऐसा होता है कि मन की बातें मन ही में रह जाती हैं। दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आता जिनसे उन्हें बांटा जा सके। ऐसी ही मानसिकता को बयां करता एक गीत अरसे से मन में गूंजता रहा है। दस्तक फिल्म का ये गीत मुझे बहुत अच्छा लगता है, आपको भी यकीनन अच्छा लगता होगा क्योंकि ये है ही बहुत अच्छा। तो सुनिए, लता मंगेशकर का गाया ये गाना...

Comments

अब कहाँ हैं ऐसे गीत?
यह गीत हमें भी बहुत पसन्द है. एक अंजाने दर्द में भागता भटकता मन चैन नहीं पाता...सच कहते हैं आप...मन की बातें हम कहाँ किसी से बाँट पाते हैं.. !!!
PD said…
नहीं सुन पाया.. मेरे ऑफिस में हम विडियो नहीं देख सकते हैं.. रात में घर जाकर देखूंगा.. वैसे ये गीत मुझे भी खूब पसंद है..
sundar gaane ko sunane ke liye aabhar.
आभा said…
bahut bahut shukriya
Abhishek Ojha said…
ये गाना मुझे बहुत पसंद है... मदन मोहन की आवाज़ वाला भी.
Udan Tashtari said…
Aahh!! mera pasand ka geet. Bahut Aabhaar mitra.
sanjay patel said…
जो लोग कहते हैं कि मदन मोहन ग़ज़ल के अलावा कुछ और अच्छा रच नहीं पाए उनके लिये यह गीत एक निर्विवाद उत्तर है कि सुनिये जनाब मदन जी का रचा एक बेहतरीन गीत भी सुन लीजिये..इस गीत के संगीत बनने की कथा सजीव सारथी के संगीतमय चिट्ठे पर इसी सप्ताहांत लिखूंगा.
Unknown said…
सही में शाश्वत है - और आजकल बड़ी ज़रूरत भी है - बुक मार्क कर लिया - मनीष

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