संघी ऊपर से नीचे तक इतने फ्रॉड क्यों हैं?
यह संघ की संस्कृति की ही बलिहारी है, नहीं तो मुरली मनोहर जोशी जैसे ‘जानेमाने चिंतक, दार्शनिक, शिक्षाविद’ भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री को संघ के मुखपत्र ऑरगैनाइजर में सच्चर समिति के खंडन-मंडन के लिए दिल्ली के स्थापित वैचारिक संगठन सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) का झूठा नाम लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती। जब सीपीआर ने उसके नाम पर उद्धृत की गई बातों का खंडन कर दिया तो जोशी जी कह रहे हैं कि उन्होंने गलती से सीपीआर का नाम ले लिया।
उनको सफाई देनी पड़ी कि लेख में उद्धृत की गई बातें चेन्नई के सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज़ की हैं। लेकिन पूर्व मानव संसाधन मंत्री जोशी जी यह सच अब भी छिपा ले गए कि सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज़ नाम की यह संस्था राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ से जुड़ी है और इसके संस्थापकों में एस गरुमूर्ति, बलबीर पुंज और गोविंदाचार्य शामिल है। खास बात यह भी है कि इस रिपोर्ट के रचयिता जे के बजाज है जिनकी विशेषज्ञता समाजशास्त्र में न होकर ‘थ्योरेटिकल फिजिक्स’ में है। वैसे मुरली मनोहर जोशी भी खुद फिजिक्स के प्रोफेसर रहे हैं। इसलिए बजाज के समाजशास्त्रीय ‘ज्ञान’ पर ज्यादा ऐतराज शायद नहीं किया जा सकता।
इससे पहले पिछले साल भी बीजेपी और संघ का एक फ्रॉड रामसेतु को लेकर सामने आया था। आपको याद होगा कि संघ ने सालों पहले दावा किया था कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के पास ऐसी तस्वीरें हैं जिनसे साबित होता है कि रामसेतु मानव-निर्मित है और इसे करीब 17.50 लाख साल पहले बनाया गया था। राम का राज त्रेता युग में करीब 17 लाख साल पहले हुआ था। इसलिए नासा की इस खोज से साबित होता है कि रामसेतु का निर्माण लंका पर चढ़ाई करते वक्त राम की सेना ने ही किया था। लेकिन इसका पता चलते ही नासा के अधिकारी मार्क हेस ने साफ कर दिया कि, “Remote sensing images or photographs from orbit cannot provide direct information about the origin or age of a chain of islands, and certainly cannot determine whether humans were involved in producing any of the patterns seen.”
नासा के खंडन की गर्द अभी थम भी नहीं पाई थी कि खुलासा हो गया कि जिस ‘अंतरिक्ष वैज्ञानिक’ पुनीश तनेजा के ‘शोध’ के आधार पर संघ ने रामसेतु का सारा तामझाम खड़ा किया था, वह खुद एक फ्रॉड है। इसरो से जुड़े होने के नाम पर सरसंघचालक सुदर्शन जिस तनेजा का गुणगान करते थे, संघ ने जिसे अपना प्रचारक बना दिया था, उसका दूर-दूर तक इसरो से कोई संबंध नहीं था। पता चला कि तनेजा ने अपना विजिटिंग कार्ड तक फर्जी बनवाया था। मीडिया में थुक्का-फजीहत हुई तो संघ को तनेजा से किनारा करना पड़ा।
वैसे मुरली मनोहर जोशी ने ऑरगैनाइज़र के लेख में कुछ सनसनीखेज़ बातें कही हैं। जैसे, आज़ादी के पहले 1940 के दशक में मुस्लिम लीग ने जो 14 सूत्रीय मांगपत्र पेश किया था, उसकी बहुत सारी बातें हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा राष्ट्रीय विकास परिषद में अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए पेश किए गए 15 सूत्रीय कार्यक्रम से मेल खाती हैं। जिस तरह जिन्ना अपनी मांगें बढ़ाते-बढ़ाते अलग राष्ट्र पाकिस्तान के निर्माण तक ले गए, वैसे ही प्रधानमंत्री का कार्यक्रम देश को एक और विभाजन तक पहुंचा सकता है।
लेकिन जोशी जी मुस्लिम-विरोध के अपने शाश्वत एजेंड़े का ढोल पीटते-पीटते कहीं जगह पोले नज़र आए हैं। एक जगह वे कहते हैं कि देश के 29.10 करोड़ गरीबों में 23 करोड़ हिंदू हैं, जबकि केवल 5.10 करोड़ मुसलमान हैं। लेकिन इसके साथ ही वे यह भी बताते हैं कि आबादी में हिस्से के आधार पर 27.7 फीसदी हिंदू गरीब हैं, जबकि मुसलमानों में यह अनुपात 36.6 फीसदी है। जोशी जी, सच्चर समिति ने भी तो ऐसी ही बातें कही हैं। आखिर में आपसे यही गुजाइश है जैसा खुद आपके लेख का शीर्षक कहता है कि: Don't plan on fake assumptions. Learn from history and work for national growth with unity…
उनको सफाई देनी पड़ी कि लेख में उद्धृत की गई बातें चेन्नई के सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज़ की हैं। लेकिन पूर्व मानव संसाधन मंत्री जोशी जी यह सच अब भी छिपा ले गए कि सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज़ नाम की यह संस्था राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ से जुड़ी है और इसके संस्थापकों में एस गरुमूर्ति, बलबीर पुंज और गोविंदाचार्य शामिल है। खास बात यह भी है कि इस रिपोर्ट के रचयिता जे के बजाज है जिनकी विशेषज्ञता समाजशास्त्र में न होकर ‘थ्योरेटिकल फिजिक्स’ में है। वैसे मुरली मनोहर जोशी भी खुद फिजिक्स के प्रोफेसर रहे हैं। इसलिए बजाज के समाजशास्त्रीय ‘ज्ञान’ पर ज्यादा ऐतराज शायद नहीं किया जा सकता।
इससे पहले पिछले साल भी बीजेपी और संघ का एक फ्रॉड रामसेतु को लेकर सामने आया था। आपको याद होगा कि संघ ने सालों पहले दावा किया था कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के पास ऐसी तस्वीरें हैं जिनसे साबित होता है कि रामसेतु मानव-निर्मित है और इसे करीब 17.50 लाख साल पहले बनाया गया था। राम का राज त्रेता युग में करीब 17 लाख साल पहले हुआ था। इसलिए नासा की इस खोज से साबित होता है कि रामसेतु का निर्माण लंका पर चढ़ाई करते वक्त राम की सेना ने ही किया था। लेकिन इसका पता चलते ही नासा के अधिकारी मार्क हेस ने साफ कर दिया कि, “Remote sensing images or photographs from orbit cannot provide direct information about the origin or age of a chain of islands, and certainly cannot determine whether humans were involved in producing any of the patterns seen.”
नासा के खंडन की गर्द अभी थम भी नहीं पाई थी कि खुलासा हो गया कि जिस ‘अंतरिक्ष वैज्ञानिक’ पुनीश तनेजा के ‘शोध’ के आधार पर संघ ने रामसेतु का सारा तामझाम खड़ा किया था, वह खुद एक फ्रॉड है। इसरो से जुड़े होने के नाम पर सरसंघचालक सुदर्शन जिस तनेजा का गुणगान करते थे, संघ ने जिसे अपना प्रचारक बना दिया था, उसका दूर-दूर तक इसरो से कोई संबंध नहीं था। पता चला कि तनेजा ने अपना विजिटिंग कार्ड तक फर्जी बनवाया था। मीडिया में थुक्का-फजीहत हुई तो संघ को तनेजा से किनारा करना पड़ा।
वैसे मुरली मनोहर जोशी ने ऑरगैनाइज़र के लेख में कुछ सनसनीखेज़ बातें कही हैं। जैसे, आज़ादी के पहले 1940 के दशक में मुस्लिम लीग ने जो 14 सूत्रीय मांगपत्र पेश किया था, उसकी बहुत सारी बातें हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा राष्ट्रीय विकास परिषद में अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए पेश किए गए 15 सूत्रीय कार्यक्रम से मेल खाती हैं। जिस तरह जिन्ना अपनी मांगें बढ़ाते-बढ़ाते अलग राष्ट्र पाकिस्तान के निर्माण तक ले गए, वैसे ही प्रधानमंत्री का कार्यक्रम देश को एक और विभाजन तक पहुंचा सकता है।
लेकिन जोशी जी मुस्लिम-विरोध के अपने शाश्वत एजेंड़े का ढोल पीटते-पीटते कहीं जगह पोले नज़र आए हैं। एक जगह वे कहते हैं कि देश के 29.10 करोड़ गरीबों में 23 करोड़ हिंदू हैं, जबकि केवल 5.10 करोड़ मुसलमान हैं। लेकिन इसके साथ ही वे यह भी बताते हैं कि आबादी में हिस्से के आधार पर 27.7 फीसदी हिंदू गरीब हैं, जबकि मुसलमानों में यह अनुपात 36.6 फीसदी है। जोशी जी, सच्चर समिति ने भी तो ऐसी ही बातें कही हैं। आखिर में आपसे यही गुजाइश है जैसा खुद आपके लेख का शीर्षक कहता है कि: Don't plan on fake assumptions. Learn from history and work for national growth with unity…
Comments
संघ को जनना इतना आसान नही है, किसी भी अज्ञानी के लिये रामायण, गीता या भारत का संविधान मात्र कागज की किताब ही होगी। संघ पर अरोप लगाने से पहले संघ को जानने के लिये संद्य से जुडना जरूरी है नही तो संघ के विरोध में काफी लिखा गया है और आपने भी दिखा है।
सुन्दर लेख पर मेहनत करने के लिये बधाई स्वीकार करें।
आपसे यही कहूंगा...
हंस के बोला करो, बुलाया करो, आपका घर है आया-जाया करो।
इसलिए संदर्भ की गलती अनिल जी की नहीं इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर की है. अनिल जी आपने तो सिर्फ लिंक दे दिया है.