सो जाओ, चालू है बिजली दिखाकर देश का सौदा
कांग्रेस का नारा है – एटॉमिक डील होने दो, देशवासियों को चैन की नींद सोने दो। उसका कहना है कि डील के बाद इतनी परमाणु बिजली बनने लगेगी कि कहीं कोई कटौती नहीं होगी, किसी की नींद नहीं खराब होगी। वैसे, हमारे परमाणु ऊर्जा विभाग के मुताबिक (Tables पर क्लिक करें, Table 10 देखें) साल 2002 में देश के कुल बिजली उत्पादन में परमाणु बिजली का हिस्सा 3.01 फीसदी था, जिसके 2022 में 10, 2032 में 13, 2042 में 18 और 2052 में 26 फीसदी हो जाने का अनुमान है। लेकिन सोनिया के सपूत राहुल गांधी अमेठी में जाकर बताते हैं कि यह कहना गलत है कि हमारी बिजली ज़रूरतों का 3 फीसदी हिस्सा ही परमाणु ऊर्जा से पूरा होता है। अगर ये (भारत-अमेरिका) डील हो गई तो हमारी 70 फीसदी ज़रूरतें परमाणु बिजली से पूरी हो सकती हैं। राहुल कहते हैं कि देश का ठीक ढंग से सोचनेवाला हर व्यक्ति डील के पक्ष में है। इनमें बीजेपी से लेकर दूसरी पार्टियों के युवा राजनेता शामिल हैं।
अब या तो हम सभी गलत तरीके से सोचने के आदी हो गए हैं या हमारे परमाणु ऊर्जा विभाग में सारे के सारे गधे बैठे हुए हैं या राहुल गांधी ने अतिशयोक्ति में मध्यकाल के दरबारी कवियों को भी दस कोस पीछे छोड़ दिया है। लालू प्रसाद यादव तो झूठ की डुगडुगी बजाने में राहुल के भी ताऊ निकले। उनका कहना है कि बुनियादी सवाल रोटी का है और न्यूक्लियर डील इस सवाल को हल कर देगी क्योंकि इससे मिलेगी बिजली जिससे लोग हीटर पर रोटी पका सकेंगे। लालूजी आप धन्य हैं, आपको धिक्कार है। आपने दूसरी आज़ादी के एक जननेता के पतन की तलहटी तय कर दी है।
कौन नहीं चाहता कि देश को साफ-सुथरी बिजली मिले, गांव-गांव रोशनी से जगमगाएं, शहरों में एक सेकंड को भी बिजली न जाए। लेकिन ज़मीनी हकीकत को छिपाकर बिजली के नाम पर सारे देश को अंधेरे में रखा जाए, इसे बरदाश्त नहीं किया जा सकता। जिस अमेरिका को खुश करने के लिए यूपीए सरकार की तरफ से ये कवायत हो रही है, उसी के ऊर्जा विभाग की Energy Information Agency (EIA) के मुताबिक साल 2030 में भारत की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता 3,98,000 मेगावाट होगी, जिसमें से 20,000 मेगावाट परमाणु बिजली से आएंगे। यानी कुल बिजली क्षमता का महज पांच फीसदी। इतने पर हायतौबा नहीं मचाई जा सकती तो राहुल 70 फीसदी परमाणु बिजली का शिगूफा छोड़ रहे हैं।
भारतीय अनुमानों की बात करें तो योजना आयोग के बिजली पर बने वर्किंग ग्रुप के मुताबिक 11वीं योजना (2007-12) और 12वीं योजना (2012-17) के दौरान 15,690 मेगावाट अतिरिक्त परमाणु बिजली बनाने के संयंत्र लग जाएंगे। इसमें मौजूदा क्षमता को जोड़ दें तो 2017 तक देश में कुल लगभग 20,000 मेगावाट परमाणु बिजली पैदा होने लगेगी। यानी, हमारा योजना आयोग अमेरिकी एजेंसी से ज्यादा आशावान है क्योंकि वह 13 साल पहले अमेरिकी अनुमान को हासिल कर लेगा। फिर भी ये मात्रा हमारी कुल बिजली क्षमता की 6.7 फीसदी ही होगी। वैसे, अंतरराष्ट्रीय तुलना में यह कोई कम बड़ी उपलब्धि नहीं है क्योंकि दुनिया के सबसे तेज़ी से बढ़ते देश चीन तक में कुल बिजली उत्पादन में परमाणु बिजली का हिस्सा साल 2005 में 1.6 फीसदी था, जिसके साल 2030 तक 3.2 फीसदी ही होने का अनुमान है।
फिर मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के फोटो लगाकर क्यों बड़े-बड़े विज्ञापन छपवाए जा रहे हैं कि परमाणु बिजली हासिल करने से अगर हम चूक गए तो देश का बेड़ा गरक हो जाएगा? सच्चाई यह है कि साल 2030 तक में हम अपनी 43 फीसदी बिजली ज़रूरत कोयला आधारित संयंत्रों से पूरी करेंगे। इसके बाद प्राकृतिक गैस आधारित संयंत्रों का योगदान होगा। योजना आयोग का वर्किंग ग्रुप भी प्राकृतिक गैस आधारित संयंत्रों की महत्ता को स्वीकार करता है। लेकिन दिक्कत ये है कि देश में प्राकृतिक गैस का कुल भंडार 49 बीसीएम (अरब घनमीटर) ही है, जबकि 2012 तक इसकी मांग करीब 114 बीसीएम हो जाएगी। ऐसे में अगर देश को रौशन रखना है तो हमें यूरेनियम के बजाय प्राकृतिक गैस के आयात के ज्यादा पुख्ता इंतज़ाम करने होंगे। ईरान-भारत गैस पाइपलाइन परियोजना भारत की बिजली के लिए लाइफलाइन बन सकती है।
लेकिन हो क्या रहा है? इस गैस पाइपलाइन परियोजना पर खाली जुबानी जमाखर्च हो रहा है। ईरान से लंबे रिश्ते का हवाला तो दिया जा रहा है, लेकिन बुश की लॉबी में शामिल होने के लिए इस परियोजना के प्रति यूपीए सरकार कोई उत्साह नहीं दिखा रही। और, कहीं अमेरिका ने इस्राइल से ईरान पर हमला करवा दिया तो कोई शक नहीं कि यूपीए सरकार इस लाइफलाइन का गला ही घोंट देगी।
अब या तो हम सभी गलत तरीके से सोचने के आदी हो गए हैं या हमारे परमाणु ऊर्जा विभाग में सारे के सारे गधे बैठे हुए हैं या राहुल गांधी ने अतिशयोक्ति में मध्यकाल के दरबारी कवियों को भी दस कोस पीछे छोड़ दिया है। लालू प्रसाद यादव तो झूठ की डुगडुगी बजाने में राहुल के भी ताऊ निकले। उनका कहना है कि बुनियादी सवाल रोटी का है और न्यूक्लियर डील इस सवाल को हल कर देगी क्योंकि इससे मिलेगी बिजली जिससे लोग हीटर पर रोटी पका सकेंगे। लालूजी आप धन्य हैं, आपको धिक्कार है। आपने दूसरी आज़ादी के एक जननेता के पतन की तलहटी तय कर दी है।
कौन नहीं चाहता कि देश को साफ-सुथरी बिजली मिले, गांव-गांव रोशनी से जगमगाएं, शहरों में एक सेकंड को भी बिजली न जाए। लेकिन ज़मीनी हकीकत को छिपाकर बिजली के नाम पर सारे देश को अंधेरे में रखा जाए, इसे बरदाश्त नहीं किया जा सकता। जिस अमेरिका को खुश करने के लिए यूपीए सरकार की तरफ से ये कवायत हो रही है, उसी के ऊर्जा विभाग की Energy Information Agency (EIA) के मुताबिक साल 2030 में भारत की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता 3,98,000 मेगावाट होगी, जिसमें से 20,000 मेगावाट परमाणु बिजली से आएंगे। यानी कुल बिजली क्षमता का महज पांच फीसदी। इतने पर हायतौबा नहीं मचाई जा सकती तो राहुल 70 फीसदी परमाणु बिजली का शिगूफा छोड़ रहे हैं।
भारतीय अनुमानों की बात करें तो योजना आयोग के बिजली पर बने वर्किंग ग्रुप के मुताबिक 11वीं योजना (2007-12) और 12वीं योजना (2012-17) के दौरान 15,690 मेगावाट अतिरिक्त परमाणु बिजली बनाने के संयंत्र लग जाएंगे। इसमें मौजूदा क्षमता को जोड़ दें तो 2017 तक देश में कुल लगभग 20,000 मेगावाट परमाणु बिजली पैदा होने लगेगी। यानी, हमारा योजना आयोग अमेरिकी एजेंसी से ज्यादा आशावान है क्योंकि वह 13 साल पहले अमेरिकी अनुमान को हासिल कर लेगा। फिर भी ये मात्रा हमारी कुल बिजली क्षमता की 6.7 फीसदी ही होगी। वैसे, अंतरराष्ट्रीय तुलना में यह कोई कम बड़ी उपलब्धि नहीं है क्योंकि दुनिया के सबसे तेज़ी से बढ़ते देश चीन तक में कुल बिजली उत्पादन में परमाणु बिजली का हिस्सा साल 2005 में 1.6 फीसदी था, जिसके साल 2030 तक 3.2 फीसदी ही होने का अनुमान है।
फिर मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के फोटो लगाकर क्यों बड़े-बड़े विज्ञापन छपवाए जा रहे हैं कि परमाणु बिजली हासिल करने से अगर हम चूक गए तो देश का बेड़ा गरक हो जाएगा? सच्चाई यह है कि साल 2030 तक में हम अपनी 43 फीसदी बिजली ज़रूरत कोयला आधारित संयंत्रों से पूरी करेंगे। इसके बाद प्राकृतिक गैस आधारित संयंत्रों का योगदान होगा। योजना आयोग का वर्किंग ग्रुप भी प्राकृतिक गैस आधारित संयंत्रों की महत्ता को स्वीकार करता है। लेकिन दिक्कत ये है कि देश में प्राकृतिक गैस का कुल भंडार 49 बीसीएम (अरब घनमीटर) ही है, जबकि 2012 तक इसकी मांग करीब 114 बीसीएम हो जाएगी। ऐसे में अगर देश को रौशन रखना है तो हमें यूरेनियम के बजाय प्राकृतिक गैस के आयात के ज्यादा पुख्ता इंतज़ाम करने होंगे। ईरान-भारत गैस पाइपलाइन परियोजना भारत की बिजली के लिए लाइफलाइन बन सकती है।
लेकिन हो क्या रहा है? इस गैस पाइपलाइन परियोजना पर खाली जुबानी जमाखर्च हो रहा है। ईरान से लंबे रिश्ते का हवाला तो दिया जा रहा है, लेकिन बुश की लॉबी में शामिल होने के लिए इस परियोजना के प्रति यूपीए सरकार कोई उत्साह नहीं दिखा रही। और, कहीं अमेरिका ने इस्राइल से ईरान पर हमला करवा दिया तो कोई शक नहीं कि यूपीए सरकार इस लाइफलाइन का गला ही घोंट देगी।
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इस बार के देखिये राजनीति मजबूरी लालू-मुलायम जैसे नेताओं की जो पहले अमेरिका से सामरिक रिश्ते बनाने के घोर विरोधी रहे है वे आज अमेरिकी नेतृत्व वाली परमाणु करार के पक्ष में जी जान से लगे हैं वहीं भाजपा नेता को देखिये जो हर हाल में अमेरिकी पंसद और परमाणु करार के पक्षधर है लेकिन वे विश्वास मत में खिलाफ वोट करेंगे क्योंकि उन्हें लगता है कि सरकार गिरने पर चुनाव होंगे जिसमें उन्हे लाभ होगा।