गेस्टापो और स्टाज़ी तक को मात दे रहे हैं मोदी

दो महीने पहले लिखी पोस्ट से आहत हुए अपने एक वरिष्ठ व सहृदय ब्लॉगर मित्र को मैंने ई-मेल पर वचन दिया था कि आगे से नरेंद्र मोदी पर कुछ नहीं लिखूंगा। इसलिए सुबह-सुबह मोदी की नई करतूत की खबर पढ़ लेने के बाद भी बचता रहा कि कोई और इस बारे में लिख दे तो मेरा वचन टूटने से रह जाएगा। लेकिन देर शाम तक किसी ने नहीं लिखा तो मुझे ही कहना पड़ रहा है। यह भयानक खबर किसी की भी मेरुदंड में सिहरन पैदा कर सकती है कि गुजरात में सरकार के मंत्रियों से लेकर पक्ष-विपक्ष के नेताओं और रसूखवाले बिजनेसमैन व पत्रकारों तक की जासूसी की जा रही है। कम से कम राज्य के ऐसे तीन सौ लोगों के टेलिफोन टैप किए जा रहे हैं, जिसका पूरा ब्यौरा हर दिन सुबह-सुबह मोदी के बंगले पर पहुंचा दिया जाता है।

गुजरात में ज़रा-सी भी राजनीतिक अहमियत रखनेवाले शख्स की हर गतिविधि पर मोदी ने पहरा बैठा रखा है। उसकी निजी ज़िंदगी के चप्पे-चप्पे पर मोदी के जासूसों की नज़र है। अभी इस काम को लगभग 400 सरकारी कर्मचारी अंजाम दे रहे है और जल्दी ही 93 और जासूसों की नियुक्ति की जानेवाली है। सारा कुछ राज्य के इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) की निगरानी में हो रहा है।

इस समय आईबी में करीब 40 इंस्पेक्टर, 110 जांच अधिकारी, 75 सहायक जांच अधिकारी, एक असिस्टेंट डिप्टी जनरल, चार आईजी पुलिस, आठ एसपी और 15 डीएसपी काम कर रहे हैं। अब आईबी में 45 जांच अधिकारियों और 48 सहायक जांच अधिकारियों की नियुक्ति होने जा रही है। राज्य में महज 5500 से 9000 रुपए महीने की तनख्वाह जांच अधिकारी और 4000 से 6000 रुपए महीने की तनख्वाह पर सहायक जांच अधिकारी मिल जाते हैं।

वैसे, हर राज्य का शासन राजनीतिक गतिविधियों की खोज-खबर रखता है। छात्र संगठन में सक्रियता के दौरान मैं खुद भी इसका भुग्तभोगी रहा हूं जब आईबी के जासूस कहते थे कि वे कब्र तक भी हमारा पीछा करेंगे। नरेंद्र मोदी भी अपने शासन के छह सालों में लगातार अपने सहयोगियों से लेकर विरोधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की जासूसी कराते रहे हैं। लेकिन इस साल खास बात ये है कि पहले जहां जासूसी का सालाना बजट 17 करोड़ रुपए का हुआ करता था, वहीं इस साल इस मद में 33 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे।

इस तरह बना जासूसी तंत्र विरोधियों के साथ-साथ मंत्रियों से लेकर खुद बीजेपी के नेताओं के पल-पल की खबर नरेंद्र मोदी तक पहुंचाएगा। मुंबई मिरर की खबर के मुताबिक इससे राज्य के तमाम वीआईपी लोगों में सिहरन दौड़ गई है। संदर्भवश आपको बता दूं कि दुनिया का हर तानाशाह इस तरह के गोपनीय तंत्र की मदद लेता रहा है। हिटलर का गेस्टापो, स्टालिन का रेड ऑस्केस्ट्रा और पूर्वी जर्मनी का स्टाज़ी तंत्र इस मायने में बहुत कुख्यात रहा है। मुझे आश्चर्य है तो बस इस बात का कि ये सब डरे हुए तानाशाहों की करतूतें थीं। मोदी तो गुजरात में दो-तिहाई बहुमत से चुने गए नेता हैं। फिर आखिरकार उन्हें कौन-सा डर सता रहा है?

इन्हें भी पढ़ें
चेखव की कहानी – एक क्लर्क की मौत,
ब्रेख्त का नाटक – इनफॉर्मर

Comments

Sandeep Singh said…
बुरा, बुरा ही होता है। पर इस बार भी अंगुली आखिर मोदी पर ही क्यों उठी ? अधिक वक्त नहीं बीता जब अमर सिंह के साथ उत्तर प्रदेश समेत देश की कई और बड़ी राजनैतिक हस्तियां किसी और पर यही आरोप लगा रहीं थीं...हां वो खर्च का आंकड़ा जरूर नहीं जुटा पाई थीं। काश उस वक्त भी...? हालांकि सरकारी तंत्र के बेजा इस्तेमाल की एक और इबारत पसंद आई।
Ghost Buster said…
एक निम्न स्तरीय article (mumbai mirror) को लेकर इतना हल्ला गुल्ला पोस्ट कुछ जंचती नहीं. कमाल के आंकडे पेश किए हैं इस पेपर ने. क्या ये सब CM Office ने जारी किए हैं?
Udan Tashtari said…
एक तो अपनों का डर और उस पर से एकाकीपन..दोनों ही भयाक्रांत करने को काफी हैं.

मगर यह सब हल्ला ज्यादा काम कम वालों की उड़ाई सी बातें लगती हैं..राजनित में यह सब इल्जाम लगना और वो भी मोदी जैसे जन पसंद नेता के उपर-जरा भी आश्चर्य नहीं होता.

थोड़ा इन बातों का स्तयापन होने का इन्तजार करने में कोई बुराई नहीं है निष्कर्ष पर पहूँचने के पहले.
गोल माल हे सब गोल माल हे,सीधे रास्ते की टेडी चाल हे...
अनिल भाई,
राजनीति का पहला उसूल है - "आप स्वयम क्या कर रहे है से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि आप के आस पास क्या हो रहा है". शासक को अपने इर्द गिर्द नज़र रखना आवश्यक होता है.सूचना और दंड शासन के नेत्र और भुजा होते है. क्या आपको नहीं लगता कि स्वतंत्रता के बाद हमारे शासक नेताओं ने यदि खुफिया तंत्र को मजबूत बनाया होता तो ना ही हमें चीन से हारना पड़ता, ना ही हम अपने पड़ोस में एक विरोधी देश का अस्तित्व स्वीकारने को मजबूर होते. कारगिल की घटना खुफिया तंत्र की लापरवाही का ही नतीजा थी. प्रशासन और समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार हमारे सहृदय नेताओं के खुफिया तंत्र को तवज्जो न देने का दुष्परिणाम है जिसे हम आज पानी पी-पी कर कोसते है. खुफिया तंत्र एक राज्य का एक आवश्यक अंग है परन्तु उससे प्राप्त जानकारियों का उपयोग यदि व्यक्तिगत या राजनैतिक द्वेष को निपटाने के लिए किया जाता है तो यह सरासर गलत है तथा राजनैतिक सत्ता का दुरुपयोग है.
Arun Arora said…
क्यो मजाक करते हो ४/५०० आदमियो से चप्पे चप्पे पर नजर..बच्च भी पढ कर हस देगा मेरे भाई अब तो मोदी विरोध की केचुली उतार फ़ेको अगले चुनाव अभी पाच साल दूर है पत्रकार भाई..:)
अपने लिये सुरक्षा का इंतजाम करना गलत नहीं लेकिन बहुत ज्याद से भी आगे जाकर सुरक्षा का इंतजाम करना एक सवाल जरुर खड़ा करता है। सभी जानते हैं कि नरेन्द्र मोदी का सिंहासन लाशों की ढेर पर खड़ा हुआ है। इसके अलावा दो तिहाई से अधिक भाजपा के वरिष्ट नेता मोदी के खिलाफ हैं जो चुनाव के दौरान खुलकर देखने को मिले। हरेन् पांडया भी भाजपा के कदावर नेता थे लेकिन उनकी हत्या हो गई। शायद यही डर के कारण मोदी जी एक ऐतिहासिक जासूसी का जाल फैला चुके हैं। अत्यधिक सुऱक्षा के कारण होते है दूसरे से डर अब मोदी जी को किससे खतरा है यह जांच का विषय हो सकता है।या कोई नई मंशा तो जैसा कुछ साल पहले हो चुका हो जिसमें जमकर कत्लेआम हुये।

Popular posts from this blog

मोदी, भाजपा व संघ को भारत से इतनी दुश्मनी क्यों?

चेला झोली भरके लाना, हो चेला...

घोषणाएं लुभाती हैं, सच रुलाता है