Wednesday 26 March, 2008

कैसी कर्जमाफी कि मरते ही जा रहे हैं किसान?

जो देखना चाहते थे, उनके लिए तो किसानों के लिए 60,000 करोड़ रुपए की कर्ज-माफी की घोषणा का सच बजट के दिन ही सामने आ गया था। उसी दिन साफ हो गया था कि खुदकुशी कर रहे विदर्भ के किसानों का रुदन इससे थमने वाला नहीं है। अब इसका प्रमाण भी मिलने लगा है। इसी हफ्ते रविवार से मंगलवार तक के तीन दिनों में ही विदर्भ के 14 किसानों ने आत्महत्या की है। इसके साथ 29 फरवरी को बजट के आने के बाद से विदर्भ में खुदकुशी करनेवाले किसानों की संख्या 61 पर पहुंच गई है।

अकोला ज़िले के बाभुलगांव के रहनेवाले 48 साल के श्रीकृष्ण कलम्ब ने इसलिए खुदकुशी कर ली क्योंकि उन्होंने कृषक को-ऑपरेटिव सोसायटी से 37,000 रुपए का कर्ज ले रखा था, लेकिन पांच एकड़ से ज़रा-सी ज्यादा ज़मीन होने के कारण वे कर्जमाफी के हकदार नहीं थे। उनकी पांच बेटियां है, जिनमें से दो की शादी के लायक हो चुकी है। कलम्ब ने अपने सुसाइट नोट में अचानक लिए गए इस फैसले की तुलना पिछले हफ्ते की बेमौसम बरसात से की है जिससे पूरे विदर्भ में फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है। उन्होंने अपनी आत्महत्या को भगवान का चढ़ावा बताया है।

वरधा जिले के सेलु-मुरपद गांव के किसान सुधारक पोटे ने सोमवार को फांसी लगा ली। उन्होंने भी भारी कर्ज ले रखा था। लेकिन 16 एकड़ के काश्तकार होने के कारण उन्हें सरकारी दरियादिली का लाभ नहीं मिलनेवाला था। अकोला ज़िले के हिंगना-बावापुर गांव के शंकर तायडे और जमथा के विजय आक्रे ने रविवार को अपनी जान ले ली। हालांकि उनके पास क्रमश: ढाई और चार एकड़ ज़मीन थी। इसलिए वो कर्जमाफी के हकदार थे। लेकिन उन्होंने बैंकों या को-ऑपरेटिव सोसायटी से नहीं, साहूकारों से कर्ज ले रखा था। इनके अलावा रविवार और सोमवार को विदर्भ के दस और किसानों से खुदकुशी की है। विदर्भ के इलाके में इस साल जनवरी में 80, फरवरी में 86 और मार्च में अब तक लगभग 60 किसान खुदकुशी कर चुके हैं।

गौरतलब है कि पूरे विदर्भ का इलाका वर्षा-आधारित यानी असिंचित है। सोनिया गांधी तक कह चुकी हैं कि इस तरह के असिंचित इलाकों में पूरी कर्जमाफी के लिए जोत की सीमा 5 एकड़ से बढ़ाई जाएगी। लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है। ऊपर से महाराष्ट्र सरकार के नए साल के बजट ने विदर्भ के कपास किसानों को काफी निराश किया है। विदर्भ जन आंदोलन समिति के अध्यक्ष किशोर तिवारी का कहना है कि सोनिया गांधी के अलावा और कांग्रेस व एनसीपी ने भी 2004 में अपने चुनाव घोषणापत्र में कपास के लिए 2700 रुपए प्रति क्विंटल का गारंटी मूल्य देने का वादा किया था, लेकिन नए साल का बजट पेश करते हुए राज्य के वित्त मंत्री जयंत पाटिल ने इस बारे में एक शब्द भी नहीं बोला है। सरकार के वादे और इरादे का यह फासला सच्चाई को सामने लाने के लिए काफी है।

अंत में बस एक बात और। बजट के तीन-चार दिन बाद तक पारंपरिक मीडिया कर्ज माफी के पैकेज पर तालियां बजा रहा था। लेकिन ब्लॉग पर बजट के दिन ही इसका खोखलापन उजागर कर दिया था। साथ ही विदर्भ के किसानों की खुदकुशी की खबर पहले ब्लॉग पर आई, उसके एक दिन बाद मीडिया में। इससे ब्लॉगिंग की अहमियत अपने-आप साबित हो जाती है।
फोटो सौजन्य: crazyc78

11 comments:

राजेश कुमार said...

किसानों के लिए कर्ज माफी की घोषणा कर सरकार ने काफी बाहवाही लूटी पर उसे अमली जामा पहनाने का काम सरकार ने नहीं किया। इसी का दुष्परिणाम है कि किसान लगातार आत्महत्या कर रहें। बजट के बाद से 61 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। अनिल जी आपने जो आंकड़े पेश किया है वह सचमुच आंखें खोल देने वाली है। सरकार को इस ओर तुरंत ध्यान देना चाहिये।

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

गजब बात करते हैं. यह तो सोनिया भौजी से लेकर राहुल बाबू तक सारे लोग जानते हैं की कर्जमाफी से किसानों का मरना रुकने वाला नहीं है. उनको आत्महत्या से रोकने का उनका कोई इरादा भी नहीं है. वह तो बस यह चाहते हैं की चुनाव तक किसान लोग आत्महत्या न करें. तब तक इससे कुछ लोग रुक जाएं. बाद में मरें न! ये तो अच्छी ही बात है. आख़िर देश की जनसंख्या इतनी बढी हुई है, कैसे होगा इसका जुगाड़?

Gyan Dutt Pandey said...

सरकार कर्ज माफी को वाहावाही का औजार बना रही है।
पर किसान का भला न कर्जमाफी से हो रहा है न आपके इस सत्य उद्घाटन से कि आत्महत्यायें जारी हैं।
मेरे पास तो समाधान नहीं है, आपके पास है?

अनिल रघुराज said...

ज्ञान जी, समाधान तो लोकतंत्र में लोक को शामिल करके ही निकलता। सरकार अगर निर्णय-प्रक्रिया में किसानों के नुमाइंदों को शामिल करे तो समाधान निकल आएगा। लेकिन सरकार तो सुनती ही नहीं। जैसे जिस संगठन के ब्लॉग का लिंक मैंने दिया है, विदर्भ में बारे में सरकार उसकी बातें सुनने तक की जहमत नहीं उठाती।

vikas pandey said...

समाधान तो किसी के पास नही है.पर इसका मतलब ये नही की हम चर्चा ही ना करे.इस मुद्दे पर हम अपनी संवेदनशीलता खो चुके हैं.इस बात से अंदाज़ा लगा सकते है की किसानों की आत्महत्या की खबरें अब हमे विचलित नही करती. किसानों की हत्या की खबरें सत्य उद्घाटन भर नही हैं.

Pankaj Oudhia said...

चलिये क़र्जग्रस्त किसानो के लिये करे एस.एम.एस.

http://kisanokeliye.blogspot.com/2008/02/blog-post_23.html

इसे भी अपने लेख के साथ जोड लीजियेगा।

बोधिसत्व said...

किसी ने कहा कि है कियह सब माया है...सरकारों का दिखावा....

Arun Arora said...

दादा ये राहुल विंसी/गांधी की यात्रा के लिये और कुछ चम्पुओ के लिये थी,शायद कुछ पत्रकार किसान भी इससे तर गये हो पर किसानो के लिये नही थी.आप भी कहा इसे गम्भीरता से ले रहे हो..;)

mamta said...

आपने सही कहा की कर्ज माफ़ी सिर्फ़ वाह-वाही लूटना भर है।

संजय शर्मा said...

ये हमेशा विदर्भ के किसान ही क्यों खुदकशी करता है ,कर्ज की सुविधा कर्ज माफ़ी की सुविधा सबसे ज्यादा इसी क्षेत्र मे है शायेद , हमे लगता है की पुरा विदर्भ किसान बना हुआ है और जब तब ख़ुद को कसता रहता है . मुझे
तो लगता है समूचा क्षेत्र किसी मानसिक बीमारी से ग्रस्त है . सरकार डंडा लेकर खड़ी थोड़े न रहेगी . बाढ़ , सूखा,
कर्ज ,दहेज़ ,महंगी शिक्षा के भार से सम्पूर्ण भारत का किसान त्रस्त है पस्त है , क्यों नही पुरा देश एक साथ
मरता है ? खुदकशी के कई और कारण होते है ,और खुदकशी किसान के आलावा अन्य भी करते है .बस फर्क केवल इतना है कि विदर्भ मे हर मौत ,हर हत्या , को खुदकशी का नाम दे दिया जाता है . मानसिकता जबतक बदलेगी नही तब तक सरकार को बदल कर भी परिणाम ढाक के तीन पात ही होंगे .

नीलोत्पल said...

Karj maafi se kisanon ki atmahatya ko jod kar dekhna galat hoga. Meri samajh se krishi ke dhanche mein moolbhoot parivartan ki jaroorat hai. Atmahatyaen jyadatar wahin hoti hain jahan kisan cotton ki kheti per jyada jor dene lagte hain. Nissandeh cotton ki kheti ya doosare cash crop ki kheti kisanon ke liye faidemand hai lekin usmein jokhim bhi bahut hai. Lekin aisi kheti prayah small aur marginal kisanon ke liye uchit nahin hoti kyonki unke paas jokhim prabandhan ke paryapt sadhaan nahin hote. Kisanon dwara sahi takniki ke bagair loan le kar aisi kheti karna hi unko atmahatya jaise gambheer kadmon ki or le jata hai.
Achha hota agar aapke lekh mein is pahalu per bhi thodi baaten hotin. Jahan tak Govt ki jimmedari ki baat hai - woh to aap pichhale 60 yrs se dekh hi rahe hain. Ascharya yeh hai iske baad bhi hum Govt se hi apeksha kar rahe hain.