Saturday 22 March, 2008

रंगों के त्यौहार पर थोड़ा रंगभेद हो जाए तो!!!

चमड़ी पर लगा रंग धुल जाता है, लेकिन चमड़ी का रंग कभी नहीं धुलता। अमेरिका में लोकतंत्र की स्थापना को दो सौ साल से ज्यादा हो गए हैं। लेकिन आज भी वहां गोरों और कालों के विभेद की बात हो रही है। राष्ट्रपति चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी के काले उम्मीदवार बराक ओबामा के भाषण का एक अंश पेश कर रहा हूं जो उन्होंने चंद दिनों पहले फिलाडेल्फिया में दिया था। मुझे तो इससे अमेरिकी राजनीति को समझने में मदद मिली है और मैं पहले से ज्यादा ओबामा का समर्थक बन गया हूं। शायद आपके साथ भी ऐसा ही कुछ हो...

एक तरफ कहा जा रहा है कि मेरी उम्मीदवारी एफरमेटिव एक्शन जैसा कुछ है, जो बड़ी सस्ती किस्म की जातिगत मेलमिलाप की उदारवादी इच्छा पर आधारित है; दूसरी तरफ मेरे पूर्व धर्मगुरु रीव जेरेमियाह राइट ऐसे भड़काऊ बयान दे रहे हैं जिससे जातिगत फासले न केवल बढ़ सकते हैं, बल्कि हमारे राष्ट्र की महानता और अच्छाई दोनों ही गर्त में जा सकती हैं। गोरे और काले इससे समान रूप से आहत हुए हैं। लेकिन मैं उनको (पूर्व धर्मगुरु) छोड़ नहीं कर सकता जैसे मैं काले समुदाय को नहीं छोड़ सकता। मैं उनका परित्याग नहीं कर सकता जैसे मैं अपनी गोरी दादी को नहीं छोड़ सकता – वह महिला जिसने मेरा लालन-पालन किया, वह महिला जिसने बार-बार मेरे लिए कुर्बानी दी, वह महिला जो मुझे इस दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करती है, लेकिन वह महिला जिसने एक बार काले लोगों से अपने डर का इकरार किया था जो गली में उस पर छींटाकशी करते थे और जिसने कई बार ऐसी रंगभेदी या जाति से जुड़ी रूढिवादी बातें भी कही थीं, जिनसे मैं झल्ला जाता था। ये सारे लोग मेरा हिस्सा हैं। और वे हिस्सा हैं अमेरिका के, वह देश जिसे मैं प्यार करता हूं।

आज हम एक ऐसी राजनीति अपना सकते हैं जो विभाजन को, लड़ाई को और निंदा को बढ़ावा देती है। हम चाहें तो रीव राइट के प्रवचन हर चैनल पर हर दिन दिखा सकते हैं। उस पर तब तक बातें कर सकते हैं, जब तक चुनाव पूरे नहीं हो जाते। इसे चुनाव प्रचार का इकलौता सवाल बना सकते हैं कि अमेरिकी जनता ये मानती है कि नहीं कि राइट की बेहद आक्रामक बातों से मेरा इत्तेफाक है या नहीं। हम हिलेरी (क्लिंटन) के समर्थकों की छिटपुट बातों का हवाला देकर कह सकते हैं कि वह जाति का कार्ड खेल रही है। हम अटकलें लगा सकते हैं कि सारे के सारे गोरे लोग इस आम चुनाव में जॉन मैक्कैन (रिपब्लिकन उम्मीदवार) की नीतियों की परवाह किए बगैर उनके साथ जाएंगे या नहीं। हम ऐसा कर सकते हैं।

लेकिन अगर हम ऐसा करते हैं तो मै आपको बता सकता हूं कि अगले चुनाव में हम फिर इसी तरह के किसी और निरर्थक मुद्दे की चर्चा कर रहे होंगे। ऐसे अनर्गल मुद्दों का सिलसिला चुनाव-दर-चुनाव चलता जाएगा और कुछ नहीं बदलेगा। हम चाहें तो ऐसा कर सकते हैं। या, इसी वक्त, इस चुनाव में हम एक साथ एक आवाज़ में कह सकते हैं, “अबकी बार नहीं।” इस बार हम ढहते स्कूलों की चर्चा करना चाहते हैं जो भविष्य छीन रहे हैं काले बच्चों का, गोरे बच्चों का, एशियाई बच्चों का और हिस्पानिक (लैटिन अमेरिकी मूल के) बच्चों का और मूल अमेरिकी (रेड इंडियन) बच्चों का। इस बार हम उस खब्तीपने को खारिज करना चाहते हैं जो कहता है कि ये बच्चे पढ़ नहीं सकते; और वो बच्चे जो हम जैसा नहीं दिखते, वे किसी और की समस्या हैं। अमेरिका के बच्चे कोई वो बच्चे नहीं हैं। वे हमारे बच्चे हैं और हम उन्हें 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था में पीछे नहीं रहने देंगे।

इस बार हम बात करना चाहते हैं कि अस्पतालों के इमरजेंसी वार्ड में किस तरह लाइन से गोरे, काले और हिस्पानिक लोग भरे रहते हैं जिनके पास हेल्थकेयर की सुविधा नहीं है; जिनके पास वाशिंग्टन की सत्ता पर असर डालने के लिए किसी लॉबी की ताकत नहीं है। लेकिन हम साथ आ जाएं तो उनकी आवाज़ बन सकते हैं। इस बार हम बंद पड़ी उन मिलों की बात करना चाहते हैं जिसने कभी हर जाति के पुरुषों और महिलाओं को खूबसूरत ज़िंदगी दी थी। हम उन बिकाऊ घरों की बात करना चाहते हैं जो हर जाति, धर्म और हर किस्म के पेशे के अमेरिकियों का आशियाना हुआ करते थे। इस बार हम इस हकीकत के बारे में बात करना चाहते हैं कि असली समस्या यह नहीं है कि वह शख्स जो आप जैसा नहीं दिखता, आपका काम छीन सकता है। असली समस्या यह है कि जिस कॉरपोरेशन में आप काम करते हैं, वह महज मुनाफे के लिए इसे विदेश ले जाना चाहता है।

इस बार हम हर रंग व जाति के पुरुषों और महिलाओं के बारे में बात करना चाहते हैं जो एक ही गौरवपूर्ण झंडे के नीचे साथ-साथ जीते हैं, साथ-साथ लड़ते हैं, साथ-साथ खून बहाते हैं। हम बात करना चाहते हैं कि उन लोगों को ऐसे युद्ध से कैसे वापस घर लाया जाए जो कभी लड़ा ही नहीं जाना चाहिए था। हम बात करना चाहते हैं कि हम उनकी और उनके परिवारों की देखभाल करके और उनका अर्जित देय उनको अदा करके कैसे अपनी देशभक्ति जतला सकते हैं।...
(दोनों ही तस्वीरों में ओबामा अपनी मां के साथ हैं। एक में बालक, दूसरे में किशोर)

6 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

आप को होली की बहुत-बहुत बधाई।

Gyan Dutt Pandey said...

ओबामा का रंग और हिलेरी का जेण्डर गड्ड-मड्ड होंगे तो फायदा रिपब्लिकन को हो सकता है।

vikas pandey said...

इस बार अमेरिकी चुनाव बिल्कुल अलग मुद्दों पर हो रहे है. यक़ीनन ओबामा आगे हैं और शायद उम्मीदवारी उन्हे मिल भी जाए. पर republican party को ओबामा-क्लिंटन की रस्साकशी से फ़ायदा होगा इसमे शक है. John McCainn दोनो हो democratic उम्मीदवारों से कम लोकप्रिय हैं. आप की बात से सहमत हूँ, ओबामा को ही जितना चाहिए.

राज भाटिय़ा said...

अनिल जी देखॊ ऊट किस करवट बेठता हे, लेकिन ओबामा की जीत मे शक हे,ओबामा ओर महिला दोनो ही इन गोरो के लिये परेशानी का का कारण हे, यह गोरे महिला को ही चुने गे, बाकी देखो, कारण गोरो के दिमाग मे एक कीडा हे जो कभी नही निकल सकता,

Udan Tashtari said...

अभी वक्त है..आगे आगे देखिये..होता है क्या..आपको होली बहुत-बहुत मुबारक.

सुनीता शानू said...

रघुराज जी होली बहुत-बहुत मुबारक हो आपको..