Tuesday 19 February, 2008

गर्भ में जाकर छिप जाऊं या किताब बन जाऊं तो!!!

डर किसी मासूम दिल को बचने की क्या-क्या जगहें सुझा देता है! हिंदी के क्रांतिकारी कवि गोरख पांडे के बारे में सुना था कि परत-दर-परत जमते गए तनाव के बाद जब वे विश्रांति की अवस्था में पहुंच गए थे, तब वे महिलाओं की एक सेना बना लेने की बात करते थे जिसमें इंदिरा गांधी से लेकर चीन के कुख्यात गैंग ऑफ फोर में शामिल माओत्से तुंग की पत्नी जियांग क्विंग भी शामिल थीं। गोरख कहते थे कि जब उनके 'दुश्मन' (वाम बुद्धिजीवी) उन पर हमला करने आते थे तो उनकी ये महिलाएं उन्हें अपने गर्भ में छिपा लेती थीं। गर्भ की ऊष्मा और सुरक्षा की कल्पना करके मैं हमेशा सिहर उठता हूं। लगता है समय की धारा में उलटा बहते हुए आप दोबारा मां के गर्भ में जाकर सारी दुनिया से सुरक्षित हो गए। अब कोई आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

ऐसी ही एक और अनोखी बाल कल्पना के बारे में मैंने चंद दिनों पहले जाना है। अंतरराष्ट्रीय ख्याति वाले इसराइली लेखक अमोस ओज़ (Amos Oz) ने बीते शनिवार को इंडियन एक्सप्रेस में छपे (न्यूज़वीक से साभार) एक इंटरव्यू में कहा है: मैं तब एक आतंकित छोटा बच्चा था। 1940 के दशक के शुरुआती साल थे। यूरोप में यहूदियों के जनसंहार के बारे में अफवाहें जेरूसलम आती रहती थीं। हर तरफ यही आशंका तैर रही थी कि जेरूसलम के यहूदियों के साथ भी यही होनेवाला है। मैंने सोचा कि बड़ा होकर इंसान बनने के बजाय किताब बनना ज्यादा सुरक्षित रहेगा क्योंकि किताब के रूप में कम से कम मेरी एक प्रति दूर किसी देश की किसी लाइब्रेरी में सुरक्षित तो रहेगी।

अमोस ओज़ इस समय 69 साल के हैं। नियमित रूप से लिखे जानेवाले लेखों के अलावा उन्होंने अपनी मातृभाषा हीब्रू में 25 किताबें लिखी हैं, जिनमें से 17 उपन्यास हैं। पिछले साल छपा उनका ताज़ा उपन्यास है - Rhyming Life and Death। उनकी रचनाओं का अनुवाद दुनिया की तकरीबन 30 भाषाओं में हो चुका है। उनकी सबसे चर्चित रचना है साल 2003 में छपी उनकी आत्मकथा A Tale of Love and Darkness। इसमें उन्होंने अपनी तीन पीढियों की त्रासद यात्रा का ब्यौरा दिया है।

जब वे महज 12 साल के थे, तब उनकी मां फानिया ने आत्महत्या कर ली। मां की उम्र उस समय 38 साल थी। वो अपने-आप में डूबी चुप-चुप रहनेवाली महिला थीं। ओज़ बताते हैं कि शब्दों से उनको जबरदस्त लगाव था और वो उन्हें चमत्कारों से लेकर दानवों की कहानिय़ां सुनाया करती थीं। ओज़ को लगता है कि उनकी मां चाहती थीं कि वे बड़े होकर वो सारी बातें सामने लाएं जो वे नहीं कह सकीं। और इस तरह ओज़ ऐसे ‘शब्द शिशु’ बन गए जो ‘बड़ा होकर किताब’ बनना चाहता था।

न्यूज़वीक के इंटरव्यू में ओज़ से पूछा गया कि क्या वे कभी अपनी मां की आवाज़ सुनते हैं तो उनका जवाब था: हां, कभी-कभी। मैं अक्सर मृत लोगों की आवाज़ें सुनता हूं। मेरे लिए मरे हुए लोगों की बड़ी अहमियत है। ... जब मैंने A Tale of Love and Darkness लिखी तो एक तरीके से मैंने मृत लोगों को अपने घर कॉफी के लिए आमंत्रित किया। मैंने उनसे कहा – बैठिए। कॉफी पीते हैं और कुछ बात करते हैं। जब आप ज़िंदा थे तो हमने ज्यादा बातें नहीं की थीं। हमने राजनीति के बारे में बात की, ताज़ा घटनाक्रमों के बारे में बात की, लेकिन उन चीज़ों के बारे में बात नहीं की जो मायने रखती है.. बात करते हैं, क़ॉफी पीते हैं। फिर आप चले जाना। आप यहां मेरे साथ मेरे घर में रहने के लिए नहीं आ रहे। लेकिन कभी-कभार कॉफी का एक कप मेरे साथ पीने के लिए आप आएंगे तो मुझे अच्छा लगेगा।

अमोस ओज़ कहते हैं कि उनकी राय में मृत लोगों के सम्मान का यही सही तरीका है। मुझे उनकी यह अदा बहुत पसंद आई। वैसे तो ओज़ अंध-राष्ट्रवादी हैं। उन्होंने जुलाई 2006 में लेबनॉन पर किए गए इसराइली हमले का समर्थन किया था। लेकिन फिलिस्तीन-इसराइल संघर्ष पर उनकी दो-टूक राय है, "यह न तो धर्म की लड़ाई है, न संस्कृति या परंपरा की। यह रीयल एस्टेट का झगड़ा है। यह ज्यादा आपसी समझ या समझदारी से हल नहीं होगा। इसके लिए दोनों पक्षों को कुछ कष्टप्रद समझौते करने होंगे।"

12 comments:

चंद्रभूषण said...

कितनी सुंदर पोस्ट! ऐसी ही चीजों के लिए आपकी बाट जोहता रहता हूं।

azdak said...

अमोस मस्‍त लेखक हैं. उदासी और सूनेपन के उखड़े बीहड़ लैंडस्‍केप्‍स. मन उन्‍हीं दुनियाओं में टहलता, धीमे-धीमे गुज़रते दिन की तरह खुद को गुनता. पढ़ने और उस संगीत में रमने के लिए बड़े धीरज की ज़रूरत होती है. जो औरों ने तो खोया है, आप भी अपनी नौकरी में भूल आये हैं. और इसके बाजू में स्‍मायली नहीं लगाऊंगा.

ghughutibasuti said...

अमोस की अभी तक कोई पुस्तक नहीं पढ़ी । अगली बार किसी बड़े शहर गई तो इनकी पुस्तकें भी सूची में रहेंगी । लेख अच्छा लगा ।
ऐसे ही यदि हम जिन लेखकों को पसन्द करते हैं या जिन्हें पढ़ रहे हैं उनके बारे में जानकारी देते रहेंगे तो लाभप्रद रहेगा । मैं निर्मल वर्मा की लम्बी कहानियाँ समाप्त कर आज Paulo Coelho की The Zahir पढ़ रही हूँ व कुछ अंश तो इतने अच्छे लगे कि आलसी ना होती तो यहाँ quote कर देती ।
घुघूती बासूती

Priyankar said...

दिन बना दिया आपने . शुक्रिया !

मनीषा पांडे said...

बहुत-बहुत सुंदर पोस्‍ट। बहुत अच्‍छा लगा पढकर। ऐसी चीजों का इंतजार रहता है।

Gyan Dutt Pandey said...

उत्कृष्ट!

VIMAL VERMA said...

अनिलभाई,वाकई नायाब पोस्ट,आपकी वजह से जाना अमोस को,बहुत बहुत शुक्रिया

काकेश said...

अच्छा लगा अमोस को जानना.

Tarun said...

bara achha laga amos ke baare me kajkar, jaldi hi library me ye book dekhta hoon.

Unknown said...

आपका आलेख पढ़नें के बाद लेखक की आवाज़ एक बार पुन:यहाँ सुनी http://www.npr.org/programs/atc/transcripts/2004/dec/041205.amos.html

Pratyaksha said...

बहुत बढ़िया । इन्हें तो पढ़ना ही पड़ेगा ।

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर, शानदार!