भाइयों के फोटो बहनों के साथ क्यों चले जाते हैं?
कल आभा जी ने अपनी एक पुरानी कविता पोस्ट की थी – भाई की फोटो। कविता क्या थी दिल को छू लेनेवाला एक किस्सा था। मुझे समझ में नहीं आता कि हमारे यहां (पूर्वी उत्तर प्रदेश में) ये किस्सा घर का घर का क्यों है? मेरी भी छुटपन की फोटो बहन अपने साथ ले गई थी। मां बराबर खोजती रही। कोनों-अतरों से लेकर पुराने बक्सों की परतों तक। कहीं नहीं मिली। फिर मैं एक बार दीदी के यहां गया तो उसका एलबम देखने लगा। उसमें वो फोटो मिल गई। फिर क्या था? मैंने दीदी के एलबम से वो फोटो उड़ा ली। कई महीने बाद दीदी का फोन आया कि अनिल तुम अपने बचपन वाली फोटो तो नहीं ले गए हो? मैंने सच कबूल कर लिया। लेकिन तब तक मैं पुरानी फोटो की चार बड़ी प्रतियां बनवा चुका था। एक मां-बाप को भेजी, एक भाई को और एक दीदी को। दीदी से उड़ाई गई वही फोटो चस्पा कर रहा हूं।{बीच में कुर्सी पर हम हैं मिठ्ठू मियां, मेरे दाएं हाथ पर नीचे बैठे हैं बड़े भाई जो बॉटनी के प्रोफेसर हैं और बायीं तरफ हैं बड़ी दीदी जो अभी बड़ी डॉक्टर हैं}
सोचता हूं, ऐसा क्यों होता है कि खास घटना आम हो जाती है, एक का अनुभव बहुतों का अनुभव बन जाता है। एक अंतराल के बाद भंवरें क्यों खुद को दोहराती रहती हैं। शायद यही वह सामान्यीकरण है, जो लेखकों के एकालाप को सबके दिल की बात बना देता है। आभा जी की पोस्ट पर टिप्पणी तो नहीं कर पाया। लेकिन इतना बता दूं कि वे कई दिनों से घर में जो फोटो खोज रही थीं, वो मिल गई है। एक भाई सालों पहले उसे अपनी दीदी के पास से उड़ा ले गया था।
सोचता हूं, ऐसा क्यों होता है कि खास घटना आम हो जाती है, एक का अनुभव बहुतों का अनुभव बन जाता है। एक अंतराल के बाद भंवरें क्यों खुद को दोहराती रहती हैं। शायद यही वह सामान्यीकरण है, जो लेखकों के एकालाप को सबके दिल की बात बना देता है। आभा जी की पोस्ट पर टिप्पणी तो नहीं कर पाया। लेकिन इतना बता दूं कि वे कई दिनों से घर में जो फोटो खोज रही थीं, वो मिल गई है। एक भाई सालों पहले उसे अपनी दीदी के पास से उड़ा ले गया था।
Comments
सुन्दर.......
आप बड़े प्यारे दिख रहें है.
मैं भी घर जाकर खोजता हूँ शायद कोई तस्वीर और एक पोस्ट का समान मिल जाय.
राखी के बँधन को निभाना "
जैसे गीतोँ की असली दुआ,
सिर्फ भाई और बहन ही समझते हैँ -
यही रीश्ते ,
हमेशा ऐसे ही कायम रहेँ !
आमीन -
-लावण्या