गिद्धों-भेड़ियों से भरा है समाज, बच्चों को बचा लो
आरुषी पर लिखते हुए मैंने साफ कहा था कि “असली कहानी हमारे समाज में बच्चों के साथ होनेवाले सेक्सुअल एब्यूज़ और उसको लेकर मां-बाप के अंधेपन की कहानी है।” लेकिन ज्यादातर लोगों ने इस पर गौर नहीं किया। उन्हें लगा जैसे मैं आरुषी के चरित्र पर कोई लांछन लगा रहा हूं। किसी ने विनम्रता से कहा कि यह पोस्ट अच्छी नहीं लगी तो किसी ने कहा यह ‘निष्कर्ष’ निकालना सही नहीं। तो, मेरा यही कहना है कि आरुषी के मामले में मैंने कोई निष्कर्ष नहीं निकाला है। यह कयास ही था। लेकिन इस कयास के तीन आधार थे। एक, डॉ. तलवार अपने बेटी का कमरा बाहर से लॉक करके चाभी अपने तकिए के नीचे क्यों रखते थे? दो, आरुषी और हेमराज दोनों का कत्ल एक साथ क्यों किया? और तीन, आरुषी का उद्वेलित मानस जो उसकी कॉपी के कुछ वाक्य प्रयोगों से झलकता है।
इसके बावजूद यह विशुद्ध कयास और अनुमान ही था। कल को यह सही भी निकले तब भी मैं कहीं से भी आरुषी को दोषी नहीं मानता। अरे, कोई बच्ची कैसे गलत हो सकती है जब उसे ठीक-ठीक यह भी नहीं पता कि वह क्या कर रही है? लेकिन इस कयास ने एक ऐसे पहलू को सामने लाने का मौका दिया है, जिसे हम नजरअंदाज़ करते रहे हैं और कर रहे हैं। अपने घरों में तो हम इससे आंखें मूंदे ही रहते हैं, बाहर भी इस पर ठंडे और खुले दिमाग से सोचने को तैयार नहीं हैं। यह पहलू है हमारे समाज में बच्चों के साथ हो रहा sexual abuse... बोधि ने अगर लिखा कि दूबे उनकी इज्जत लूटना चाहता था तो झूठ नहीं लिखा। सोचिए, अगर बच्चों का ये हाल है तो बच्चियों के साथ क्या होता होगा?
इसके बावजूद यह विशुद्ध कयास और अनुमान ही था। कल को यह सही भी निकले तब भी मैं कहीं से भी आरुषी को दोषी नहीं मानता। अरे, कोई बच्ची कैसे गलत हो सकती है जब उसे ठीक-ठीक यह भी नहीं पता कि वह क्या कर रही है? लेकिन इस कयास ने एक ऐसे पहलू को सामने लाने का मौका दिया है, जिसे हम नजरअंदाज़ करते रहे हैं और कर रहे हैं। अपने घरों में तो हम इससे आंखें मूंदे ही रहते हैं, बाहर भी इस पर ठंडे और खुले दिमाग से सोचने को तैयार नहीं हैं। यह पहलू है हमारे समाज में बच्चों के साथ हो रहा sexual abuse... बोधि ने अगर लिखा कि दूबे उनकी इज्जत लूटना चाहता था तो झूठ नहीं लिखा। सोचिए, अगर बच्चों का ये हाल है तो बच्चियों के साथ क्या होता होगा?
साल भर पहले हुए एक अध्ययन के मुताबिक भारत के 53 फीसदी बच्चे sexual abuse का शिकार हो रहे हैं। लेकिन यह रिपोर्ट आई और चली गई। नोएडा में बच्चों के साथ वीभत्स यौन दुराचार से जुड़ा निठारी कांड हुआ और चला गया। नोएडा में ही 14 साल की बच्ची आरुषी की हत्या पर हंगामा हुआ और चंद दिनों में ही चर्चा थमने लगी। मेरा सवाल यही कि हम किस नैतिकता के नाम पर इस पहलू से आंखें मूंद लेना चाहते हैं? बच्चों के साथ sexual abuse का होना हमारे समाज का घिनौना सच है, इसे हम नकार नहीं सकते हैं। आरुषी प्रकरण से यह मुद्दा सामने आया है जिसका विश्लेषण, जिस पर चर्चा और जिससे बचने के उपायों की तलाश बहुत ज़रूरी है। और ये उपाय किसी सरकार को नहीं, खुद हमें करना पड़ेगा।
क्या देश के 53 फीसदी बच्चों के साथ sexual abuse का होना कोई छोटी बात है? हर दो में से एक बच्चे के बचपन की हत्या कोई मामूली बात है? मैं खुद ऐसे मामले जानता हूं जिसमें 14 साल की बच्ची घरवालों द्वारा मार दी गई इसलिए कि वह गर्भ से थी। Honour Killing के नाम पर, परिवार की इज्जत बचाने के नाम पर। लेकिन उसी के परिवार के लोगों ने उस पड़ोसी, चाचा, ताऊ, डॉक्टर, अंकल, भतीजे या गांव के ‘भाई’ के खिलाफ कुछ नहीं किया जिसने उसे गर्भवती बनाया था। ये मामला छोटे शहर से सटे एक गांव का है, लेकिन बड़े शहर भी ऐसे वाकयों से कतई अछूते नहीं हो सकते। और, यह सब आज की टीवी संस्कृति, Nuclear Family या कामकाजी मां-बाप वाली सभ्यता की देन नहीं हैं क्योंकि ऐसे किस्से संयुक्त परिवारों में ही ज्यादा होते हैं।
मेरा तो सवाल है कि आप में से ऐसी कितनी महिलाएं हैं जो दावा कर सकती हैं कि खुद उनके साथ या उनकी सहेलियों, भतीजियों के साथ ऐसा कोई न कोई (छोटा ही सही, वैसे यह छोटा है क्या) वाकया नहीं हुआ जिनमें डॉक्टर, अंकल, चाचा, मामा वगैरह शामिल न रहे हों। एक बात और। मैं नहीं समझ पाता कि कुंठा से भरे हमारे समाज में कोई मां-बाप कैसे अपनी लड़की को किसी पुरुष नौकर के साथ अकेले छोड़कर जा सकता है, चाहे वह कितना ही बूढ़ा और ईमानदार क्यों न हो। डॉ. तलवार दंपती आरुषी के साथ ऐसा ही करते रहे थे, जो मेरी समझ से सरासर गलत था।
क्या देश के 53 फीसदी बच्चों के साथ sexual abuse का होना कोई छोटी बात है? हर दो में से एक बच्चे के बचपन की हत्या कोई मामूली बात है? मैं खुद ऐसे मामले जानता हूं जिसमें 14 साल की बच्ची घरवालों द्वारा मार दी गई इसलिए कि वह गर्भ से थी। Honour Killing के नाम पर, परिवार की इज्जत बचाने के नाम पर। लेकिन उसी के परिवार के लोगों ने उस पड़ोसी, चाचा, ताऊ, डॉक्टर, अंकल, भतीजे या गांव के ‘भाई’ के खिलाफ कुछ नहीं किया जिसने उसे गर्भवती बनाया था। ये मामला छोटे शहर से सटे एक गांव का है, लेकिन बड़े शहर भी ऐसे वाकयों से कतई अछूते नहीं हो सकते। और, यह सब आज की टीवी संस्कृति, Nuclear Family या कामकाजी मां-बाप वाली सभ्यता की देन नहीं हैं क्योंकि ऐसे किस्से संयुक्त परिवारों में ही ज्यादा होते हैं।
मेरा तो सवाल है कि आप में से ऐसी कितनी महिलाएं हैं जो दावा कर सकती हैं कि खुद उनके साथ या उनकी सहेलियों, भतीजियों के साथ ऐसा कोई न कोई (छोटा ही सही, वैसे यह छोटा है क्या) वाकया नहीं हुआ जिनमें डॉक्टर, अंकल, चाचा, मामा वगैरह शामिल न रहे हों। एक बात और। मैं नहीं समझ पाता कि कुंठा से भरे हमारे समाज में कोई मां-बाप कैसे अपनी लड़की को किसी पुरुष नौकर के साथ अकेले छोड़कर जा सकता है, चाहे वह कितना ही बूढ़ा और ईमानदार क्यों न हो। डॉ. तलवार दंपती आरुषी के साथ ऐसा ही करते रहे थे, जो मेरी समझ से सरासर गलत था।
Comments
मै ब्लॉग जगत को भी मीडिया मानता हूँ .हम हर मुद्दे पर ठीक उतना ही टाइम देते है जितना की मीडिया .
सेक्सुऑलिटी को समाज को नये अर्थों में जाने कैसे और कब लेगा।
हमको भी अपना स्टैण्ड स्पष्ट नहीं। इसी लिये यह नॉन कमिटल सी टिप्पणी है यह।
kyon esa hota haen ?? aap iskae baarey mae kuch vistaar kaery ? hota haen sab jantey haen per kyon hota iskii jwaabdaari kisiki haen aur kabtak hota rahega ??
और अपने इस लेख के माध्यम से कई यक्ष प्रश्न भी समाज के सामने खडे किए हैं.
और हम सब मिलकर इन प्रश्नों का अगर उत्तर खोज लें तों शायद समस्या ही हल हो जाय.
हाँ ज्ञान भइया कि बात से कुछ हद तक सहमत हूँ.
दरकिनार कर दिए जाते हों,
वहाँ उनके सम्मान और अस्तित्व का ये संघर्ष
सोचने को मज़बूर करता है कि
आख़िर हम बचपन छीनकर,
कल के लिए कैसा भविष्य रचना चाहते हैं ?
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कैसी दुनिया छोड़ेंगे हम कल के बच्चों की खातिर ?
डा.चंद्रकुमार जैन
आम आदमी का दंगाई बन जाना, अपराधी बन जाना, जानवर बन जाना, वाकई मेरी समझ से बहुत दूर है। जीवन की सुन्दरता पर से, आम आदमी पर से, मेरा भरोसा हर ऎसी घटना के बाद कुछ कम हो जाता है।
पिंकी वीरानी की किताब "bitter chocolate" मे पहले भी इस बारे मे पढा था. ये किताब खासतौर पर child abuse से जुडे मुद्दों की सर्वत्र उप्प्स्थिती दर्शाती है और उसके तात्कालिक व दूरगामी परिणामों पर भी बहस को उठाती है. इसके साथ ही ये support system की, कानूनों की, और जों expert हेल्प, इंडिया मे मौजूद है, उन resourses की जानकारी भी देती है.
अब ये सडान्ध इस कदर बढ चुकी है, कि व्यक्तिगत स्तर् पर हल नही निकल सकता. कहा और कब तक मा-बाप बच्चो के पीछे जायेगे. और कितनी जगह, और किस उमर तक ये भी तय नही है. और कई बार मा-बाप साथ भी हो तो गुंडई की इतनी हद हो चुकी है, कि वो भी नही सम्भाल सकते.
ये घटना तो व्ययस्क को के साथ भी हो रही है. बम्बई की नये साल वाली घ्टना मे उन औरतो के साथ भाई और पति थे, पर वो भी एक उन्मादी भीड के आगे क्या कर पाये?
मुझे लगता है, कि सेक्स और हिंसा की सामाजिक स्वीक्रिती, और कानून के ठीक तरीके से लागू न होना ही , गुन्डो को, अपराधियो को, हिंसा, बलात्कार, योन शोषण की खुली छूट देता है, और देता रहेगा, तब तक जब तक् कोई बडे पैमाने पर समाजिक अन्दोलन, और समाजिक चरित्र नही बदलेगा. जब तक व्यक्तिगत स्तर पर और परिवार के स्तर पर इन वारदातो को हम बर्दास्त करते रहेंगे, और ऐसे अपराधियो को जब तक कोई सामाजिक कीमत नही चुकानी पडती.
अक्सर हम अपराध की कीमत, अपराधी से नही, पीडीत से वसूलने वाला समाज है.
या फिर शिकार ही शिकार होने से मना कर दे और तन कर खड़ा हो जाए।
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घी में हाथ दोनों हैं मगर
घी तप रहा है आग में
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उल्टा तीर: तीर वही जो घायल कर दे...
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