आरुशी का आज जन्मदिन है, मरी कहां ज़िंदा है वह
नौ दिन पहले जो आरुषी मार दी गई, आज उसका जन्मदिन है। 24 मई, 1994 को जन्मी आरुषी आज होती तो पूरे 14 साल की हो गई होती। मां-बाप की इकलौती संतान थी। नाना-नानी की इकलौती नतिनी थी। सबकी प्यारी थी, राजदुलारी थी। लेकिन बाप ने अपनी ही राजदुलारी की हत्या कर दी। क्यों कर दी? पुलिस की थ्योरी है कि आरुषी के पिता डॉ. राजेश तलवार के अपने ही साथ काम करनेवाली डॉ. अनीता दुर्रानी से अवैध संबंध थे। आरुषी इसको लेकर अपने पिता से नाराज़ रहती है और ऐतराज़ भी जताती थी। यहां तक कि वह घर के नौकर के साथ इसको लेकर बात किया करती थी।
ध्यान दें, घर में कुल चार सदस्य थे। बाप राजेश तलवार, मां नूपुर तलवार, बेटी आरुषी और नौकर हेमराज। इनमें दो सदस्य आरुषी और हेमराज मर चुके हैं तो वे पुलिस को बता नहीं सकते कि उनके बीच क्या बातें हुआ करती थीं। और, आरुषी बाप के अवैध रिश्तों के बारे में हेमराज से की गई बात अपने मां या बाप को नहीं बता सकती थी। बाकी बचे दो लोगों में से मां नूपुर तलवार ने चुप्पी साध रखी है और बाप राजेश तलवार अपने को निर्दोष बता रहा है तो वह पुलिस को हत्या का ‘मोटिव’ नहीं बता सकता। फिर पुलिस को कैसे पता चला कि आरुषी और हेमराज आपस में राजेश तलवार के अवैध रिश्तों की बात किया करते थे?
हकीकत यह है कि राजेश तलवार, उनकी पत्नी नूपुर तलवार, अनीता दुर्रानी और उनके पति प्रफुल्ल दुर्रानी चारों के चारों दांतों के डॉक्टर हैं और कई अस्पतालों और क्लीनिक्स में एक साथ जाते थे। इनके बीच प्रोफेशनल रिश्ते हैं। अगर अनीता दुर्रानी और राजेश तलवार के बीच अवैध रिश्ते होते तो सबसे पहले इस पर नूपुर तलवार और प्रफुल्ल दुर्रानी को ऐतराज होता और उनका प्रोफेशनल रिश्ता कब का टूट चुका होता। पुलिस को भी शायद अपनी दलील के हल्का होने का अंदेशा था। तभी तो उसने अपनी थ्योरी के साथ एक सब-थ्योरी नत्थी कर दी। वो यह कि 14 साल की आरुषी और 47 साल के हेमराज के बीच जिस्मानी ताल्लुकात बन चुके थे। 15 मई को जब तलवार दंपत्ति रात करीब 11.30 बजे घर लौटे तो हेमराज और आरुषी को आपत्तिजनक हालत में देखा। इस पर बौखलाए डॉ. राजेश तलवार ने पहले हेमराज को छत पर ले जाकर मारा। फिर नीचे उतरकर ह्विस्की पी और तब आरुषी के कमरे में जाकर उसकी हत्या कर दी।
सवाल फिर उठता है कि पुलिस को इतनी ब्यौरेवार जानकारी किसने दी, खुद को झूठ-मूठ फंसाये जाने की बात कहनेवाले डॉ. राजेश तलवार ने या उनकी पत्नी नूपुर तलवार ने क्योंकि बाकी जो दो गवाह थे, वे मर चुके हैं और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आंख और कान इतने खुले नहीं होते। खैर, पुलिस की थ्योरी में जो भी पेंच हों, उन्हें फिलहाल के लिए किनारे छोड़कर यकीन कर लेते हैं कि अपनी प्यारी इकलौती बेटी का कत्ल डॉ. राजेश तलवार ने ही किया है। क्यों किया – इस सवाल का उत्तर भी शुरू से बड़ा साफ है। लेकिन न जाने क्यों पुलिस से लेकर मीडिया तक इस पर गौर ही नहीं कर रहे। मीडिया का समझदार तबका भी इसे ‘बीमार समाज का अपराध बता रहा है, जिसे आरुषि जैसी असुरक्षित लड़कियां झेलती हैं।’ लेकिन साफ बात नहीं कर रहा।
आपको यूं ही बता दूं कि मीडिया जिसे आरुषी लिख रहा है, वह हिंदी में अपना नाम आरुशी लिखा करती थी। ये बात मुझे उसकी स्कूल-कॉपी के दो पन्नों को देखने से पता चली। यह पन्ने जनवरी 2003 के थे, यानी तब आरुशी की उम्र 9 साल से कम थी। इसमें दाल न गलना मुहावरे का जिस तरह वाक्य प्रयोग आरुशी ने किया था, उसे देखकर मेरा माथा चकरा गया। उसने लिखा था – मंजू के कत्ल के बाद भी उसकी दाल न गली। नौ साल को होने को आई एक बच्ची के दिमाग में क्या घूम रहा था कि वह सीधे से मुहावरे के लिए कत्ल जैसे शब्द का इस्तेमाल कर रही है? इसके लिए किसी बाल-मनोवैज्ञानिक के ज्ञान की ज़रूरत नहीं है, बल्कि सामान्य-सा शहरी भी बता सकता है कि आरुषि का बचपन सामान्य नहीं था। कोई ऐसी बात थी जो उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। वह छटपटा तो रही थी, लेकिन निकल नहीं पा रही थी।
गौर करें। डॉ. राजेश तलवार सोने से पहले आरुशी के कमरे का दरवाज़ा बाहर से बंद कर देते थे और चाभी अपनी तकिया के नीचे रख लेते थे। डॉ. तलवार अपने नौकरों को बराबर बदलते रहते थे या कहें तो किसी नौकर तो अपने यहां ज्यादा टिकने नहीं देते थे। आरुषी के बालमन की हालत और इन दो तथ्यों को मिलाकर देखें तो इस बात का पर्याप्त इशारा मिल जाता है कि आरुषी 8-9 साल की उम्र में ही घर के किसी न किसी पुरुष नौकर के सेक्सुअल एब्यूज़ का शिकार हुई थी। मां-बाप की व्यस्तता, अंतर्मुखी स्वभाव और बाल-सुलभ कुतूहल के चलते आरुशी को बाद में इस ‘एब्यूज़’ की लत लग गई। इससे बचने के लिए डॉ. दंपति घर के नौकर बदलते रहते थे। उन्होंने आरुषी को मारा-पीटा और समझाया भी होगा। उस दिन जब घर पहुंचने उन्होंने आरुशी के बिस्तर पर हेमराज को देखा तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और उन्होंने सर्जिकल चाकू से दोनों का गला रेत दिया।
इस तरह मुझे लगता है कि आरुशी की हत्या के पीछे की असली कहानी हमारे समाज में बच्चों के साथ होनेवाले सेक्सुअल एब्यूज़ और उसको लेकर मां-बाप के अंधेपन की कहानी है। हो सकता है कि राजेश तलवार के अनीता दुर्रानी के साथ नाजायज़ रिश्ते रहे हों, लेकिन उनमें बाधा बनना घर की इकलौती बेटी आरुशी की हत्या की वजह नहीं हो सकती। डॉ. तलवार दंपति अगर वाकई संवेदनशील और समझदार होते तो अपने यहां चौबीस घंटे के पुरुष नौकर के बजाय महिला नौकरानी रखते। साथ ही आरुशी के प्रति निर्मम बनने के बजाय किसी मनोचिकित्सक की मदद लेते। लेकिन क्या कीजिएगा, डॉक्टर दंपति ही नहीं, ज्यादातर मध्यवर्गीय परिवार चाइल्ड एब्यूज़ की समस्या से आंखें मूंदे हुए हैं। इसीलिए मैं कहता हूं कि आरुशी आज भी जिंदा है और वह कहीं न कहीं अपना चौदहवां जन्मदिन भी मना रही होगी। जिस्म अलग होगा, लेकिन अंदर की बेचैनी वही होगी और उससे निकलने की तड़प भी वैसी ही होगी।
ध्यान दें, घर में कुल चार सदस्य थे। बाप राजेश तलवार, मां नूपुर तलवार, बेटी आरुषी और नौकर हेमराज। इनमें दो सदस्य आरुषी और हेमराज मर चुके हैं तो वे पुलिस को बता नहीं सकते कि उनके बीच क्या बातें हुआ करती थीं। और, आरुषी बाप के अवैध रिश्तों के बारे में हेमराज से की गई बात अपने मां या बाप को नहीं बता सकती थी। बाकी बचे दो लोगों में से मां नूपुर तलवार ने चुप्पी साध रखी है और बाप राजेश तलवार अपने को निर्दोष बता रहा है तो वह पुलिस को हत्या का ‘मोटिव’ नहीं बता सकता। फिर पुलिस को कैसे पता चला कि आरुषी और हेमराज आपस में राजेश तलवार के अवैध रिश्तों की बात किया करते थे?
हकीकत यह है कि राजेश तलवार, उनकी पत्नी नूपुर तलवार, अनीता दुर्रानी और उनके पति प्रफुल्ल दुर्रानी चारों के चारों दांतों के डॉक्टर हैं और कई अस्पतालों और क्लीनिक्स में एक साथ जाते थे। इनके बीच प्रोफेशनल रिश्ते हैं। अगर अनीता दुर्रानी और राजेश तलवार के बीच अवैध रिश्ते होते तो सबसे पहले इस पर नूपुर तलवार और प्रफुल्ल दुर्रानी को ऐतराज होता और उनका प्रोफेशनल रिश्ता कब का टूट चुका होता। पुलिस को भी शायद अपनी दलील के हल्का होने का अंदेशा था। तभी तो उसने अपनी थ्योरी के साथ एक सब-थ्योरी नत्थी कर दी। वो यह कि 14 साल की आरुषी और 47 साल के हेमराज के बीच जिस्मानी ताल्लुकात बन चुके थे। 15 मई को जब तलवार दंपत्ति रात करीब 11.30 बजे घर लौटे तो हेमराज और आरुषी को आपत्तिजनक हालत में देखा। इस पर बौखलाए डॉ. राजेश तलवार ने पहले हेमराज को छत पर ले जाकर मारा। फिर नीचे उतरकर ह्विस्की पी और तब आरुषी के कमरे में जाकर उसकी हत्या कर दी।
सवाल फिर उठता है कि पुलिस को इतनी ब्यौरेवार जानकारी किसने दी, खुद को झूठ-मूठ फंसाये जाने की बात कहनेवाले डॉ. राजेश तलवार ने या उनकी पत्नी नूपुर तलवार ने क्योंकि बाकी जो दो गवाह थे, वे मर चुके हैं और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आंख और कान इतने खुले नहीं होते। खैर, पुलिस की थ्योरी में जो भी पेंच हों, उन्हें फिलहाल के लिए किनारे छोड़कर यकीन कर लेते हैं कि अपनी प्यारी इकलौती बेटी का कत्ल डॉ. राजेश तलवार ने ही किया है। क्यों किया – इस सवाल का उत्तर भी शुरू से बड़ा साफ है। लेकिन न जाने क्यों पुलिस से लेकर मीडिया तक इस पर गौर ही नहीं कर रहे। मीडिया का समझदार तबका भी इसे ‘बीमार समाज का अपराध बता रहा है, जिसे आरुषि जैसी असुरक्षित लड़कियां झेलती हैं।’ लेकिन साफ बात नहीं कर रहा।
आपको यूं ही बता दूं कि मीडिया जिसे आरुषी लिख रहा है, वह हिंदी में अपना नाम आरुशी लिखा करती थी। ये बात मुझे उसकी स्कूल-कॉपी के दो पन्नों को देखने से पता चली। यह पन्ने जनवरी 2003 के थे, यानी तब आरुशी की उम्र 9 साल से कम थी। इसमें दाल न गलना मुहावरे का जिस तरह वाक्य प्रयोग आरुशी ने किया था, उसे देखकर मेरा माथा चकरा गया। उसने लिखा था – मंजू के कत्ल के बाद भी उसकी दाल न गली। नौ साल को होने को आई एक बच्ची के दिमाग में क्या घूम रहा था कि वह सीधे से मुहावरे के लिए कत्ल जैसे शब्द का इस्तेमाल कर रही है? इसके लिए किसी बाल-मनोवैज्ञानिक के ज्ञान की ज़रूरत नहीं है, बल्कि सामान्य-सा शहरी भी बता सकता है कि आरुषि का बचपन सामान्य नहीं था। कोई ऐसी बात थी जो उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। वह छटपटा तो रही थी, लेकिन निकल नहीं पा रही थी।
गौर करें। डॉ. राजेश तलवार सोने से पहले आरुशी के कमरे का दरवाज़ा बाहर से बंद कर देते थे और चाभी अपनी तकिया के नीचे रख लेते थे। डॉ. तलवार अपने नौकरों को बराबर बदलते रहते थे या कहें तो किसी नौकर तो अपने यहां ज्यादा टिकने नहीं देते थे। आरुषी के बालमन की हालत और इन दो तथ्यों को मिलाकर देखें तो इस बात का पर्याप्त इशारा मिल जाता है कि आरुषी 8-9 साल की उम्र में ही घर के किसी न किसी पुरुष नौकर के सेक्सुअल एब्यूज़ का शिकार हुई थी। मां-बाप की व्यस्तता, अंतर्मुखी स्वभाव और बाल-सुलभ कुतूहल के चलते आरुशी को बाद में इस ‘एब्यूज़’ की लत लग गई। इससे बचने के लिए डॉ. दंपति घर के नौकर बदलते रहते थे। उन्होंने आरुषी को मारा-पीटा और समझाया भी होगा। उस दिन जब घर पहुंचने उन्होंने आरुशी के बिस्तर पर हेमराज को देखा तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और उन्होंने सर्जिकल चाकू से दोनों का गला रेत दिया।
इस तरह मुझे लगता है कि आरुशी की हत्या के पीछे की असली कहानी हमारे समाज में बच्चों के साथ होनेवाले सेक्सुअल एब्यूज़ और उसको लेकर मां-बाप के अंधेपन की कहानी है। हो सकता है कि राजेश तलवार के अनीता दुर्रानी के साथ नाजायज़ रिश्ते रहे हों, लेकिन उनमें बाधा बनना घर की इकलौती बेटी आरुशी की हत्या की वजह नहीं हो सकती। डॉ. तलवार दंपति अगर वाकई संवेदनशील और समझदार होते तो अपने यहां चौबीस घंटे के पुरुष नौकर के बजाय महिला नौकरानी रखते। साथ ही आरुशी के प्रति निर्मम बनने के बजाय किसी मनोचिकित्सक की मदद लेते। लेकिन क्या कीजिएगा, डॉक्टर दंपति ही नहीं, ज्यादातर मध्यवर्गीय परिवार चाइल्ड एब्यूज़ की समस्या से आंखें मूंदे हुए हैं। इसीलिए मैं कहता हूं कि आरुशी आज भी जिंदा है और वह कहीं न कहीं अपना चौदहवां जन्मदिन भी मना रही होगी। जिस्म अलग होगा, लेकिन अंदर की बेचैनी वही होगी और उससे निकलने की तड़प भी वैसी ही होगी।
Comments
अनिल जी, क्षमा कीजिएगा! मुझे आप के उक्त निष्कर्ष पर आपत्ति है, इसलिये नहीं कि ऐसा नही कि यह संभव नहीं। मगर बिना सबूत के इस का केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।
इस प्रकरण में अरोड़ा को गिरफ्तार कर पुलिस ने केवल अपनी खाल बचाई है। उस के पास उतने भी सबूत नहीं कि वह सही तरीके से आरोप लगा सके। यहाँ तक कि वह अदालत से आगे पूछताछ और हथियार बरामदगी के लिए एक दिन का पुलिस अभिरक्षा तक हासिल नहीं कर सकी।
मेरा मानना है कि आरुशी को मृत्यु के बाद उस पर बिना सबूत लांछन लगाने का किसी को हक नहीं। हेमराज के साथ उस के संबन्ध की बात अब तक तो काल्पनिक ही है।
हम लोग जो अपने आप को मीडिया-और पुलिस से अलग मानते हैं, उन्हें कुछ तो अलग दिखाई देना चाहिए।
अपने लिखे पर गौर फरमाएं:
"आरुषी के बालमन की हालत और इन दो तथ्यों को मिलाकर देखें तो इस बात का पर्याप्त इशारा मिल जाता है कि आरुषी 8-9 साल की उम्र में ही घर के किसी न किसी पुरुष नौकर के सेक्सुअल एब्यूज़ का शिकार हुई थी। मां-बाप की व्यस्तता, अंतर्मुखी स्वभाव और बाल-सुलभ कुतूहल के चलते आरुशी को बाद में इस ‘एब्यूज़’ की लत लग गई। इससे बचने के लिए डॉ. दंपति घर के नौकर बदलते रहते थे। उन्होंने आरुषी को मारा-पीटा और समझाया भी होगा। उस दिन जब घर पहुंचने उन्होंने आरुशी के बिस्तर पर हेमराज को देखा तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और उन्होंने सर्जिकल चाकू से दोनों का गला रेत दिया।"
for all other discussions there will be ample of opportunities and there can be no more crime we can do against a child by malining her /abusing her afer she is already dead and unable to defend her herself
मीडिया, पुलिस और पब्लिक सभी इस मामले में सिर्फ कयास ही लगा रहे हैं। मीडिया का दबाव नहीं होता तो पुलिस मामले को पर्याप्त गंभीरता से नहीं लेती, और मीडिया के दबाव के कारण पुलिस इस गुत्थी को सुलझाने की हड़बड़ी में गंभीर चूकें कर रही है।
सच क्या है, यह सबसे बेहतर तो आरुशी के मम्मी-पापा ही जानते हैं। जब तक वे अपना गुनाह कबूल नहीं कर लेते और असली वजह का खुलासा नहीं कर देते, तब तक पुलिस पर्याप्त सबूत जुटाकर और परिस्थितियों का तर्कपूर्ण विश्लेषण करके ही सच तक पहुंच सकती है।
हो सकता है कि पुलिस का या आपका अनुमान सही साबित हो, मगर इस हादसे ने पूरे समाज के मिजाज को अजीब विषाद से भर दिया है।
आज पहली बार आपसे सहमत नही हूँ. सच्चाई तो ये है की ना तो मीडिया और ना ही पुलिस के पास कोई ठोस सबूत है. आपका आकलन सही हो सकता है पर उसके आधार पर निष्कर्ष पर पहुचना ठीक नही होगा.
साथ-साथ आपने समाज की एक भयावह सच्चाई की तरफ़ भी अंगुली उठाई है.
रचना जी के मनोभाव समझ सकती हूँ, क्योंकि मैं भी वैसा ही महसूस करती हूँ।
आप का सम्मान करती हूँ, परन्तु क्षमा कीजिये, यह पोस्ट अच्छी नहीं लगी।
घुघूती बासूती
is baat kaa bhee koi saboot nahee hai, ki arishee ke hemraj se is tarah ke sambandh the. Arushi aur hemraj mar chuke hai, maata pitaa ne ye bataayaa nahee hai, so police ne ye kahaaanee kis aadhaar par Gadhee hai? mujhe to ye badaa aasaan upaay lagataa hai ki is tarah kee chapatee kahaanee banaa do.
ek padHaa -likhaa pitaa, 14 saal kee laDakee kee na honor killing karegaa, na maa pitaa kaa sath degee.
People and media should avoid the simple conclusions and not further distress the already unfortunate parents. Rather there should be pressure on police to find the real culprit.
नीरज रोहिल्लाजी की बात से सहमत हूँ, आप भी पुलिस की तरह काल्पनिक कहानी ही लिख रहे हैं।
अगर आप की बात सही भी हो तो हत्या की बात पल्ले नहीं पड़ती।
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उल्टा तीर: तीर वही जो घायल कर दे...
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