ये राजनीति है राजा! यहां तर्क का क्या तुक

सुप्रीम कोर्ट को दूसरा ऐतराज इस बात पर था कि केंद्रीय शिक्षण संस्थान (दाखिले में आरक्षण) कानून में ओबीसी की क्रीमी लेयर को आरक्षण के दायरे से बाहर नहीं किया गया है। इस तरह उसमें जाति को ही सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन का आधार माना गया है जो संविधान के खिलाफ है। साल 1992 में ही इंदिरा साहनी बनाम संघ सरकार के मुकदमे में स्पष्ट किया जा चुका है कि क्रीमी लेयर को आरक्षण से बाहर रखा जाना चाहिए। उस वक्त नौ जजों की बेंच ने अपने फैसले में कहा था, 'इनको हटाने से ही किसी वर्ग की सही स्थिति बनती है और ऐसा करने से ही सचमुच के पिछड़ों को फायदा मिलेगा।' लेकिन सरकार का कहना है कि क्रीमी लेयर को बाहर निकाल देने से इस कानून का मकसद ही खत्म हो जाएगा। आखिर ये मकसद है क्या?
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च शिक्षा में आरक्षण के कानून पर रोक लगाते हुए जाहिर कर दिया था कि उसे केंद्र सरकार की नीयत पर ही संदेह है। उसे नहीं लगता कि सरकार इस कानून के जरिए सचमुच के पिछड़ों को फायदा पहुंचाना चाहती है। कहीं न कहीं वो भी मानता है कि शिक्षा में आरक्षण का ये सारा खेल राजनीति का है। शायद इसीलिए वाम लेकर मध्य और दक्षिण तक कोई भी राजनीतिक पार्टी इस कानून का विरोध नहीं कर रही। मध्यवर्गीय सवर्ण ही इसकी मुखालफत कर रहे हैं और उनकी आवाज ही सुप्रीम कोर्ट के ऐतराज में आवाज पा रही है।
केंद्र सरकार की नीयत को समझने के लिए पहले 1931 की जनगणना की ही थाह ली जाए। इस जनगणना में अंग्रेजों ने हिंदुस्तानियों के बारे में क्या-क्या पता लगाया था, जरा इस पर गौर फरमा कर थोड़ा हंस लिया जाए।
- उन्होंने पता लगाया था कि हिंदुस्तानियों की नाक की ऊंचाई और मोटाई में क्या अनुपात है। पतली और नुकीली नाक वो है जिसकी मोटाई ऊंचाई से 70 फीसदी कम हो, मोटी नाक वो है जिसमें ये अनुपात 85 फीसदी से ज्यादा हो और औसत नाक वह है जिसकी मोटाई ऊंचाई से 70 से 85 फीसदी के बीच हो। (वाकई कमाल की बात है। कैसे की होगी अंग्रेजों ने हिंदुस्तानी नाक की नापजोख)
- अंग्रेजों ने ये भी पता लगाया कि अब हिंदुस्तानी पहले से बेहतर कपड़े पहनने लगे हैं। वो कलाई घड़ियां और फाउंटेन पेन रखने लगे हैं। ज्यादा लोग जूते पहनने लगे हैं। जेवरात के मामलों में औरते ज्यादा नफीस होने लगी हैं।
- हिंदुस्तानी अंधविश्वासी होते हैं। फरवरी 1930 में दिल्ली के पास एक गढ्ढ़े से गैस निकलकर जलने लगी तो भारी तादाद में लोग वहां एकट्ठा होकर देवी की पूजा करने लगे। उनका दावा था कि छोटी माता (चेचक की देवी) ने उन पर ये कृपा दिखाई है। बाद में पता चला कि ये माता असल में 70 फीसदी मीथेन, 20 फीसदी कार्बन डाई ऑक्साइड और 10 फीसदी मृत गैसों का मिश्रण हैं।
(अगली किश्त आगे)
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