जन्मदिन एक है तो क्या भगत सिंह बन जाओगे?
सरकार को भले ही न पता हो कि शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का जन्मदिन 27 सितंबर है या 28 सितंबर, लेकिन मेरे बाबूजी को यकीन है 28 सितंबर ही भगत सिंह का असली जन्मदिन है। मुझे इसका पता तब चला जब वे सालों तक बार-बार मुझे यही उलाहना देते रहे कि जन्मदिन एक है तो क्या भगत सिंह बन जाओगे। जी हां, संयोग से मेरा भी जन्म आज के दिन यानी 28 सितंबर को हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीएससी करने के दौरान देश-दुनिया की हवा लगी तो मन में धुन सवार हो गई कि कुछ ऐसा करना है जिससे पर्वत-सी बढ़ गई पीर पिघल सके। संगी-साथियों ने ज्ञान कराया कि गोरे अंग्रेज़ चले गए, मगर उनकी जगह आ गए हैं काले अंग्रेज़। भगत सिंह का सपना अब भी अधूरा है। फिर तो इरादा कर लिया कि सिस्टम का पुरजा नहीं बनना है, कुछ अलग करना है।
अम्मा को बताया, समझाया। अम्मा मान गईं। लेकिन जो बाबूजी हमेशा कहावत सुनाते थे कि लीक-लीक कायर चलैं, लीकहि चलैं कपूत, अव, लीक छोड़ि तीनों चलैं शायर सिंह सपूत... जो बाबूजी मुझे ऐसा ही सपूत बनाना चाहते थे, वही बाबूजी मेरे इरादों का पता चलते ही भड़क गए। बोले तो करना क्या है? मैंने कहा – फकीरी कर लूंगा। बोले तो घर-परिवार कैसे चलाओगे? मैंने कहा, जब मैं सबके लिए काम करूंगा तो सभी मुझे अपना लेंगे, मैं सबके परिवार का हिस्सा बन जाऊंगा। मैंने भगत सिंह का किस्सा सुनाया, उनकी बातें बताईं तो बाबूजी ने कहा कि वो तब की बात थी। आज देश आज़ाद हो चुका है और भगत सिंह बनने की कोई ज़रूरत नहीं है। बाबूजी तब ऐसा बोल रहे थे जब आम घरों की तरह मेरे भी घर की दीवार पर भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और सुभाषचंद्र बोस जैसे राष्ट्रभक्तों की तस्वीरों वाला कैलेंडर लटका रहता था।
मुझे समझ में आ गया कि बाबूजी भी उसी आम भारतीय सोच के वाहक हैं जिसमें हर कोई चाहता है कि भगत सिंह अगर हों तो उसके घर में नहीं, पड़ोसी के घर में हों। खैर, अरसा बीत चुका है। मुझे नहीं पता कि बाबूजी सही थे या मेरा युवा जुनून। मुझे अफसोस है तो बस इस बात का कि मैं भरसक कोशिश करने के बावजूद भगत सिंह की बताई राह पर जीवन-पर्यंत नहीं चल सका। आठ-दस साल चलने के बाद भ्रमों के जाल से टकरा कर मोहभंग का शिकार हो गया। फकीरी छोड़कर गृहस्थ बन गया।
लेकिन आज भी मन में कसक उठती है और लगता है कि काश! कहीं से ऐसी ज्योति दिख जाती कि डंके की चोट पर कहा जा सकता – यूरेका, यूरेका... यही है हम सबकी मुक्ति का रास्ता, जन-जन की मुक्ति का मार्ग, इसी राह पर चलकर हम शहीदों के सपनों को साकार कर सकते हैं, अपने प्यारे भारतवर्ष को स्वावलंबी और दुनिया का महानतम देश बना सकते हैं। अपने हर जन्मदिन पर मुझे ये बातें परेशान कर देती हैं क्योंकि बरबस मुझे याद आ जाता है कि आज महान शहीद भगत सिंह का भी जन्मदिन है और वे स्वर्ग में कहीं बैठे अधूरे कामों को याद कर रहे होंगे। बाबूजी ने तो अब कुछ कहना बंद कर दिया है। जब से नौकरी पकड़ी है, बीवी-बच्चों को संभाला है, उन्हें लगता है कि ‘बालक’ का दिमाग अब ठिकाने आ गया है। लेकिन उन्हें नहीं पता कि मेरे दिमाग का केमिकल लोचा अभी तक गया नहीं है।
अम्मा को बताया, समझाया। अम्मा मान गईं। लेकिन जो बाबूजी हमेशा कहावत सुनाते थे कि लीक-लीक कायर चलैं, लीकहि चलैं कपूत, अव, लीक छोड़ि तीनों चलैं शायर सिंह सपूत... जो बाबूजी मुझे ऐसा ही सपूत बनाना चाहते थे, वही बाबूजी मेरे इरादों का पता चलते ही भड़क गए। बोले तो करना क्या है? मैंने कहा – फकीरी कर लूंगा। बोले तो घर-परिवार कैसे चलाओगे? मैंने कहा, जब मैं सबके लिए काम करूंगा तो सभी मुझे अपना लेंगे, मैं सबके परिवार का हिस्सा बन जाऊंगा। मैंने भगत सिंह का किस्सा सुनाया, उनकी बातें बताईं तो बाबूजी ने कहा कि वो तब की बात थी। आज देश आज़ाद हो चुका है और भगत सिंह बनने की कोई ज़रूरत नहीं है। बाबूजी तब ऐसा बोल रहे थे जब आम घरों की तरह मेरे भी घर की दीवार पर भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और सुभाषचंद्र बोस जैसे राष्ट्रभक्तों की तस्वीरों वाला कैलेंडर लटका रहता था।
मुझे समझ में आ गया कि बाबूजी भी उसी आम भारतीय सोच के वाहक हैं जिसमें हर कोई चाहता है कि भगत सिंह अगर हों तो उसके घर में नहीं, पड़ोसी के घर में हों। खैर, अरसा बीत चुका है। मुझे नहीं पता कि बाबूजी सही थे या मेरा युवा जुनून। मुझे अफसोस है तो बस इस बात का कि मैं भरसक कोशिश करने के बावजूद भगत सिंह की बताई राह पर जीवन-पर्यंत नहीं चल सका। आठ-दस साल चलने के बाद भ्रमों के जाल से टकरा कर मोहभंग का शिकार हो गया। फकीरी छोड़कर गृहस्थ बन गया।
लेकिन आज भी मन में कसक उठती है और लगता है कि काश! कहीं से ऐसी ज्योति दिख जाती कि डंके की चोट पर कहा जा सकता – यूरेका, यूरेका... यही है हम सबकी मुक्ति का रास्ता, जन-जन की मुक्ति का मार्ग, इसी राह पर चलकर हम शहीदों के सपनों को साकार कर सकते हैं, अपने प्यारे भारतवर्ष को स्वावलंबी और दुनिया का महानतम देश बना सकते हैं। अपने हर जन्मदिन पर मुझे ये बातें परेशान कर देती हैं क्योंकि बरबस मुझे याद आ जाता है कि आज महान शहीद भगत सिंह का भी जन्मदिन है और वे स्वर्ग में कहीं बैठे अधूरे कामों को याद कर रहे होंगे। बाबूजी ने तो अब कुछ कहना बंद कर दिया है। जब से नौकरी पकड़ी है, बीवी-बच्चों को संभाला है, उन्हें लगता है कि ‘बालक’ का दिमाग अब ठिकाने आ गया है। लेकिन उन्हें नहीं पता कि मेरे दिमाग का केमिकल लोचा अभी तक गया नहीं है।
Comments
Raj Guru ,Sukhdev,Bhagat Singh
We shall fight,We shall win
भाई अनिल को सालगिरह मुबारक
अफ़लातून
आपने पिताजी कि याद दिला दी, सो मैं चला उन्हें फोन करने..
आपको जन्मदिन कि बधाईयां..
वैसे मेरा मानना है कि भगत सिंह के सपनों को पूरा करने के लिए उनकी तरह फाँसी पर झूल जाना अथवा फकीर बन जाना ही एक मात्र रास्ता नहीं है। उनका आजादी का सपना एक हद तक पूरा हो चुका है। हम अपनी सरकार चुन पा रहे हैं। जिस संसद में उन्हें बम फेंकना पड़ा था उसकी दीवारों पर उन्हें आदर पूर्वक स्थापित करके हम गौरवान्वित होते हैं।
उनके अधूरे काम कौन से हैं, यह जरूर सोचना चाहिए।
आज की जरूरत राष्ट्र निर्माण और विकास की है। यह क्रान्ति नहीं बल्कि सही दिशा में उठे सधे हुए कदमों से, शैक्षिक-वैज्ञानिक प्रगति और जन जागृति फैलाने से आएगी। आज होमी जे. भाभा, ए.पी.जे.कलाम, महामना मालवीय, राधाकृष्णन, जमशेद जी टाटा, विश्वेश्वरैया, बल्लभ भाई पटेल, अमर्त्य सेन, जैसे युगद्रष्टा राष्ट्र-निर्माताओं की आवश्यकता है।
आप मीडिया में हैं। अर्थतंत्र के अच्छे जानकार हैं। इसके सदुपयोग से भी राष्ट्रनिर्माण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं।
आपकी भावनाओं का सम्मान करते हैं हम, लेकिन जिन रास्तो की ओर बढ़ने की ओर आपका संकेत है और जिनसे आपके बाबूजी ने मना किया था; उधर का रास्ता देश के लिए समस्याएं ही पैदा कर रहा है। सुनहरा मध्यमार्ग ही सर्वोत्तम है। सहज है।
आपको जन्मदिन मुबारक हो।
- आनंद
लबे दरिया मुझे डर-डर के, मर जाना नहीं आता।
मेरे पास भगत सिंह का एक पोस्टर है, जिसके नीचे लिखा है, कभी मुश्किल के वक़्त में ये शब्द हिम्मत देते हैं, आपको जन्मदिन मुबारक।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी बहुत बढ़िया बात कह रहे हैं.
aaj hi apka blog pahli baar dekha aur bahut achha laga...
जन्म दिन मुबारक
आप जो हो वही बने रहो. तो क्या कम है. लगता है आप अपने को आंक ही नहीं पाते हैं. इसीलिए कभी-कभी मानस के रूप में तो कभी कुछ और रुपों में अपने मन की बातें कहते रहते हैं. यह भटकाव कुछ ठीक नही लगता.
थोड़ा टिकने की आदत तो डालें कहते हैं नुक्ते के हेरफेर से क्या से क्या हो जाता है. भगत सिंह के बाबूजी ने उन्हें
भगत सिंह नहीं बनाया था. आप जिस भूमिका में हैं उसी को सफलतापूर्वक निभा लें तो क्या कम है.
एसपी सिंह
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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥
शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। हार्दिक शुभकामना!
(हिन्दुस्तानी एकेडेमी)
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Aap amar ujala - karobar ke liye kam karate the kya.
Yes, revert me
Shankar Marathe
shankar.pop@gmail.com