Monday 1 September, 2008

गोवा के मैडगाव, आप तो वेद-पुराणों के ज्ञाता हैं!!!

Madgao जी, मैं नहीं जानता कि आपका असली नाम क्या हैं, आप कौन हैं और करते क्या हैं। लेकिन इतना पता चला है कि आप एक बुजुर्ग हैं, गोवा में रहते हैं और वेद-पुराणों के ज्ञाता हैं। आप जैसे ज्ञानी अगर अपना ब्लॉग बनाकर भारतीय परंपरा से वाकिफ कराते तो मेरा ही नहीं, सबका भला होता। लेकिन लगता है कि आप अपने एकाकीपन में आत्मरति का शिकार हो गए हैं। तभी तो जहां-तहां बेसिरपैर की टिप्पणी करते फिर रहे हैं। आपको पता नहीं है, फिर भी भारतीय संस्कृति और हमारे समय तक हिंदी माध्यम में शिक्षा देनेवाले मेरे आवासीय स्कूल को आप ‘सम्भवत: मिशनरी’ बता रहे हैं।

अनुनाद, संजय बेंगाणी या सिद्धार्थ की तरह मेरी सोच में छूट गए पक्षों को उभारने के बजाय आप मेरा निजी छिद्रान्वेषण कर रहे हैं वो भी नितांत मनगढंत तरीके से। माखनलाल चतुर्वेदी के ज़रिए ‘श्वान के सिर हो चरण तो चाटता है, भौंक ले क्या सिंह को’ जैसे अपशब्द कह रहे हैं। आप जैसे ज्ञानी को यह छिछलापन शोभा नहीं देता। खैर, अभी तो मैं आपकी टिप्पणी नहीं हटा रहा हूं। अनुरोध है कि आप इसे खुद हटा लें। नहीं तो कल मैं इसे हटा दूंगा।

आपका परिचय जानने के बाद आपकी टिप्पणी ने ज्यादा ही आहत किया है। हो सकता हो कि आपने जो कुछ कहा है, सब अक्षरश: सच हो। मैं इतना दंभी नहीं हूं कि अपनी पीठ देखने का दावा कर सकूं। हां, बचपन में मेरी अइया मुझे भोला कहकर बुलाती थीं। उनका साया उठे 25 साल से ज्यादा हो गए हैं। आपकी टिप्पणी ने मुझे अपनी अइया की याद दिला दी और उसी भोले शंकर की शरण में पहुंचा दिया जिसके स्वभाव की झलक वो मुझमें देखती थीं। हो सकता है कि मैं उस चोर की तरह हूं जो शिवलिंग पर चढ़कर मंदिर में टंगा सोने का घंटा उतार रहा था। लेकिन भोले शिव ने उसे भी वरदान दे डाला था। तो हे मैडगाव महोदय, भगवान शिव आप पर भी ऐसी कृपा करें। देखिए और सुनिए शिव की यह वंदना...

3 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

भगवन् जरूर आप की फरियाद सुनें?

Unknown said...

अनिल जी, किसी नें कहा है ‘लेखनी औजार है यदि सृजन करे/लेखनी हथियार है यदि विध्वँस करे’। यह विद्या सम्भवतः हम दोनों को आती है? अन्तर मात्र इतना है कि आप हजारों वर्षों से स्थापित धर्म,दर्शन,संस्कृति एवं सभ्यता के स्थापित प्रतिमानों को,जिनको आस्था का केन्द्र बना करोड़ों लोग अपना जीवन व्यतीत करते हैं,बड़ी मासूमियत से ध्वस्त करनें का पाप करते हैं उसी का प्रतिकार आप के ब्लाग परिचय से प्राप्त सूचना के आधार पर अपनीं टिप्पड़ी में मैनें किया था। इसीलिए निश्चित न होनें की दशा में ‘सम्भवतः’ शब्द का प्रयोग किया गया था। आप को कष्ट हुआ मेरा क्षणिक मन्तव्य पूरा हुआ। जिनकी भावनाऎ आहत हुई है उनके प्रति आप को खेद है या नहीं मै नहीं जानता किन्तु आप को हुए कष्ट के लिए मुझे अवश्य खेद है।ब्लाग बनाना सीख रहा हूँ,शीघ्र ही ब्लाग के साथ प्रकट होनें का प्रयास करुँगा।ब्लाग से टिप्पड़ी हटाना हटानॆं की विद्या अभी नहीं आती अतःयह सद्‌कार्य आप ही को करना पड़ॆगा।शान्तं पापम्‌।

vikas pandey said...

Anil ji,

How have you been? I totally agree with you. I am a spiritual person but not a fanatic.
For me even going to a mandir is like offering bribe to God. Standing in a long queue to get a glimpse of any God doesn’t appeals to me at all. That divine power stays within then why waste so many hours. Even if one gets there after hours he gets 10 seconds to spell out all the wishes and demands. “God if you do this I will offer Rs 500 next time.”

This comment is a response to all your posts on spiritualism.

Thanks,
Vikas