Thursday 1 February, 2007

मेरा सपना

लंबे अरसे से एक निर्वासित सी जिंदगी जी रहा हूं। सपना है कि अपने जैसों के लिए रामचरित मानस जैसी कोई रचना लिख सकूं।

4 comments:

Avinash Das said...

आपकी उस रचना का हमें इंतज़ार रहेगा... लेकिन मुझे लगता है कि हर महान रचना का रास्ता अभिव्यक्ति की सामान्य गलियों से होकर ही गुज़रता है...

अनिल रघुराज said...

कला के तीन क्षणों से गुजरना एक सुदीर्घ प्रक्रिया है। मुक्तिबोध के शब्दों में संवेदनात्मक ज्ञान, ज्ञानात्मक संवेदन और भाषा के अभ्यास से ही सार्थक अभिव्यक्ति तक पहुंचा जा सकता है।

प्यार की बात said...

सहसा पानी की एक बूँद के लिए

प्यार की कहानियाँ said...

Nice Love Story Shared by You. प्यार की कहानियाँ