कला के तीन क्षणों से गुजरना एक सुदीर्घ प्रक्रिया है। मुक्तिबोध के शब्दों में संवेदनात्मक ज्ञान, ज्ञानात्मक संवेदन और भाषा के अभ्यास से ही सार्थक अभिव्यक्ति तक पहुंचा जा सकता है।
भाग रही है दुनिया, तेजी से बदल रहा है मेरा भारत। ऐसे में कैसे बदलता है वह इंसान जो परम्परा और आधुनिकता के बीच की कड़ी बनना चाहता है, जिंदगी के हर रंग को देखना चाहता है...
उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर ज़िले के एक छोटे से गांव में पैदा हुआ। सरकारी वजीफे पर नैनीताल के एक आवासीय स्कूल में 12वीं तक पढ़ाई की। फिर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी पहुंचा तो ऐसा ‘ज्ञान’ मिला कि दुखिया दास कबीर है जागै अरु रोवै की हालत में पहुंच गया। सालों बाद भी उसी अवस्था में हूं। मुझे लगता है कि हम एक साथ हजारों जिंदगियां जीते हैं, अलग-अलग अंश में अलग-अलग किरदार। मैं इनमे से हर अंश को अलग शरीर और आत्मा देना चाहता हूं। एक से अनेक होना चाहता हूं।
4 comments:
आपकी उस रचना का हमें इंतज़ार रहेगा... लेकिन मुझे लगता है कि हर महान रचना का रास्ता अभिव्यक्ति की सामान्य गलियों से होकर ही गुज़रता है...
कला के तीन क्षणों से गुजरना एक सुदीर्घ प्रक्रिया है। मुक्तिबोध के शब्दों में संवेदनात्मक ज्ञान, ज्ञानात्मक संवेदन और भाषा के अभ्यास से ही सार्थक अभिव्यक्ति तक पहुंचा जा सकता है।
सहसा पानी की एक बूँद के लिए
Nice Love Story Shared by You. प्यार की कहानियाँ
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