उत्तर भारत के छह राज्यों की जमा औरों के हवाले
बिहार, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और हिमाचल की आधी से लेकर दो-तिहाई तक जमाराशि बैंक दे रहे हैं पहले से आगे बढ़े राज्यों को
उत्तराखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ के आर्थिक पिछड़ेपन की और जो भी वजहें हों, लेकिन उनमें से एक प्रमुख वजह यह है कि इन राज्यों में आनेवाली जमाराशि का आधे से लेकर दो-तिहाई से ज्यादा हिस्सा यहां निवेश नहीं हो रहा है। बैंक इन राज्यों से मिलनेवाली राशि के अनुपात में यहां ऋण नहीं दे रहे हैं। रिजर्व बैंक द्वारा जारी चालू वित्त वर्ष 2008-09 की सितंबर में समाप्त तिमाही के आंकड़ों के मुताबिक पूरे देश का औसत ऋण-जमा अनुपात 74.93 फीसदी है। लेकिन उत्तर भारत के इस छह राज्यों का ऋण-जमा अनुपात 50 फीसदी से नीचे है। यह अनुपात देश के सभी बैंकों द्वारा हासिल जमा और बांटे गए ऋण के आधार पर निकाला जाता है। इससे पता चलता है कि बैंक किसी राज्य या जिले के लोगों से हासिल की गई जमाराशि का कितना हिस्सा उस राज्य या जिले में औद्योगिक गतिविधियों के लिए कर्ज के रूप में दे रहे हैं।
देश में तमिलनाडु और चंडीगढ़ ही ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर बैंक कुल मिली जमाराशि से ज्यादा कर्ज दे रहे हैं। तमिलनाडु में ऋण-जमा अनुपात 113.6 फीसदी और चंडीगढ़ में 107.4 फीसदी है। यह अनुपात आंध्र प्रदेश में 95.02 फीसदी और महाराष्ट्र में 97.88 फीसदी है। यानी, इन राज्यों में आनेवाली जमा कमोवेश उनके उद्योग या व्यापार क्षेत्र को मिल जाती है। राजस्थान में यह अनुपात 80.51 फीसदी और कर्णाटक में 78.10 फीसदी है। बाकी सभी प्रमुख राज्यों में यह अनुपात 70 फीसदी से कम है।
उत्तर पूर्वी क्षेत्र में पडऩेवाले सात राज्यों की हालत अच्छी नहीं है। फिर भी इस क्षेत्र का औसत ऋण-जमा अनुपात 49.71 फीसदी है। लेकिन उत्तराखंड में कैसे औद्योगिक विकास हो सकता है, जब वहां का ऋण-जमा अनुपात महज 25.78 फीसदी है। इस मामले में उत्तराखंड के ठीक ऊपर आता है बिहार, जहां का ऋण-जमा अनुपात 27.57 फीसदी है। प्राकृतिक संसाधनों में समृद्ध झारखंड की स्थिति भी खास अच्छी नहीं है। वहां से आनेवाली जमाराशि का 34.65 फीसदी हिस्सा बैंक राज्य की औद्योगिक या व्यापारिक गतिविधियों को ऋण के रूप में दे रहे हैं।
देश में सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश से सितंबर 2008 में खत्म तिमाही में बैंकों को 2.33 लाख करोड़ रुपए जमाराशि के रूप में हासिल हुए, लेकिन 96,596 करोड़ रुपए के ऋण वितरण के साथ वहां का ऋण-जमा अनुपात 41.40 फीसदी है। हिमाचल प्रदेश का ऋण-जमा अनुपात 40.73 फीसदी और छत्तीसगढ़ का ऋण-जमा अनुुपात 47.66 फीसदी है। देश के गरीब माने जानेवाले राज्य उड़ीसा तक की स्थिति इन सभी राज्यों से बेहतर है क्योंकि वहां का ऋण-जमा अनुपात 51.29 फीसदी है।
उत्तर भारत के उक्त छह राज्यों में से अगर छत्तीसगढ़ को छोड़ दें तो बाकी पांच राज्यों में ऋण-जमा अनुपात की हालत पिछले दो वित्त वर्षों में कमोबेश ऐसी ही रही है। उत्तराखंड का ऋण-जमा अनुपात वित्त वर्ष 2006-07 में 26.98 और वित्त वर्ष 2007-08 में 26.64 फीसदी रहा है। इन्हीं दो सालों के दौरान बिहार में यह अनुपात 30.14 व 29.69, झारखंड में 33.95 व 35.15, हिमाचल प्रदेश में 41.52 व 43.63 और उत्तर प्रदेश में 45.14 व 44.92 फीसदी रहा है। छत्तीसगढ़ में जरूर यह अनुपात वित्त वर्ष 2006-07 में 53.01 फीसदी और वित्त वर्ष 2007-08 में 52.28 फीसदी रहा है।
चालू साल 2008-09 की सितंबर में समाप्त तिमाही के आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश, हरियाणा और पंजाब से लेकर गुजरात और पश्चिम बंगाल बेहतर स्थिति में हैं। राजनीतिक रूप से दो ध्रुवों पर खड़े गुजरात और पश्चिम बंगाल में ऋण-जमा अनुपात लगभग बराबर है। गुजरात में यह 62.30 फीसदी और पश्चिम बंगाल में 60.52 फीसदी है। केरल का ऋण-जमा अनुपात 65.28 और पंजाब का ऋण-जमा अनुपात 67.15 फीसदी है। मध्य प्रदेश में ऋण-जमा अनुपात 56.05 फीसदी और हरियाणा में 58.05 फीसदी रहा है।
अगर हम बैंकों द्वारा हासिल जमाराशि और ऋण-वितरण की क्षेत्रवार स्थिति पर नजर डालें तो एक क्षेत्रीय असंतुलन साफ नजर आता है। पिछले दो वित्त वर्षों में उत्तरी क्षेत्र का बैंकों की कुल जमा में हिस्सा 23 फीसदी के आसपास है, जबकि वितरित ऋण में इसका हिस्सा 21 फीसदी है। मध्य भारत का कुल जमा में योगदान लगभग 11.5 फीसदी है, जबकि उन्हें बैंकों के ऋण का सात फीसदी हिस्सा ही मिल पा रहा है। पूर्वी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की हालत इससे जुदा नहीं है। लेकिन देश के पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्र अपनी जमा से अधिक हिस्सा ऋण के बतौर हासिल कर रहे हैं। पश्चिमी क्षेत्र का बैंकों की कुल जमा में योगदान 31 फीसदी के आसपास है, जबकि वे बैंकों के ऋण का तकरीबन 37 फीसदी हिस्सा हासिल कर रहे हैं। दक्षिणी राज्यों का जमा में योगदान लगभग 22 फीसदी है, जबकि बैंकों से मिले ऋण में उनका हिस्सा करीब 26 फीसदी है।
लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था पर नजर रखनेवाली प्रमुख संस्था सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी) के प्रबंध निदेशक व सीईओ महेश व्यास का कहना है कि इसमें क्षेत्रीय असंतुलन जैसी कोई बात नहीं है। बचत का आना एक बात है, लेकिन बैंकों तो उन्हीं राज्यों या इलाकों में ऋण देंगे, जहां निवेश के बेहतर अवसर हैं। बैंकों का यह रुख एकदम स्वाभाविक है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के प्रमुख अर्थशास्त्री डी के जोशी का भी मानना है कि हमेशा से ऐसा ही होता आया है और जमाराशि के रूप में आया पैसा वहीं निवेश होगा जहां बेहतर सुविधाएं हैं। तमिलनाडु में ज्यादा ऋण वितरण के बारे में उनका कहना था कि यह तेजी से प्रगति कर रहा राज्य है। इसलिए वहां जमा से अधिक निवेश हो रहा है।
फोटोशॉप छवि सौजन्य: DesignFlute
उत्तराखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ के आर्थिक पिछड़ेपन की और जो भी वजहें हों, लेकिन उनमें से एक प्रमुख वजह यह है कि इन राज्यों में आनेवाली जमाराशि का आधे से लेकर दो-तिहाई से ज्यादा हिस्सा यहां निवेश नहीं हो रहा है। बैंक इन राज्यों से मिलनेवाली राशि के अनुपात में यहां ऋण नहीं दे रहे हैं। रिजर्व बैंक द्वारा जारी चालू वित्त वर्ष 2008-09 की सितंबर में समाप्त तिमाही के आंकड़ों के मुताबिक पूरे देश का औसत ऋण-जमा अनुपात 74.93 फीसदी है। लेकिन उत्तर भारत के इस छह राज्यों का ऋण-जमा अनुपात 50 फीसदी से नीचे है। यह अनुपात देश के सभी बैंकों द्वारा हासिल जमा और बांटे गए ऋण के आधार पर निकाला जाता है। इससे पता चलता है कि बैंक किसी राज्य या जिले के लोगों से हासिल की गई जमाराशि का कितना हिस्सा उस राज्य या जिले में औद्योगिक गतिविधियों के लिए कर्ज के रूप में दे रहे हैं।
देश में तमिलनाडु और चंडीगढ़ ही ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर बैंक कुल मिली जमाराशि से ज्यादा कर्ज दे रहे हैं। तमिलनाडु में ऋण-जमा अनुपात 113.6 फीसदी और चंडीगढ़ में 107.4 फीसदी है। यह अनुपात आंध्र प्रदेश में 95.02 फीसदी और महाराष्ट्र में 97.88 फीसदी है। यानी, इन राज्यों में आनेवाली जमा कमोवेश उनके उद्योग या व्यापार क्षेत्र को मिल जाती है। राजस्थान में यह अनुपात 80.51 फीसदी और कर्णाटक में 78.10 फीसदी है। बाकी सभी प्रमुख राज्यों में यह अनुपात 70 फीसदी से कम है।
उत्तर पूर्वी क्षेत्र में पडऩेवाले सात राज्यों की हालत अच्छी नहीं है। फिर भी इस क्षेत्र का औसत ऋण-जमा अनुपात 49.71 फीसदी है। लेकिन उत्तराखंड में कैसे औद्योगिक विकास हो सकता है, जब वहां का ऋण-जमा अनुपात महज 25.78 फीसदी है। इस मामले में उत्तराखंड के ठीक ऊपर आता है बिहार, जहां का ऋण-जमा अनुपात 27.57 फीसदी है। प्राकृतिक संसाधनों में समृद्ध झारखंड की स्थिति भी खास अच्छी नहीं है। वहां से आनेवाली जमाराशि का 34.65 फीसदी हिस्सा बैंक राज्य की औद्योगिक या व्यापारिक गतिविधियों को ऋण के रूप में दे रहे हैं।
देश में सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश से सितंबर 2008 में खत्म तिमाही में बैंकों को 2.33 लाख करोड़ रुपए जमाराशि के रूप में हासिल हुए, लेकिन 96,596 करोड़ रुपए के ऋण वितरण के साथ वहां का ऋण-जमा अनुपात 41.40 फीसदी है। हिमाचल प्रदेश का ऋण-जमा अनुपात 40.73 फीसदी और छत्तीसगढ़ का ऋण-जमा अनुुपात 47.66 फीसदी है। देश के गरीब माने जानेवाले राज्य उड़ीसा तक की स्थिति इन सभी राज्यों से बेहतर है क्योंकि वहां का ऋण-जमा अनुपात 51.29 फीसदी है।
उत्तर भारत के उक्त छह राज्यों में से अगर छत्तीसगढ़ को छोड़ दें तो बाकी पांच राज्यों में ऋण-जमा अनुपात की हालत पिछले दो वित्त वर्षों में कमोबेश ऐसी ही रही है। उत्तराखंड का ऋण-जमा अनुपात वित्त वर्ष 2006-07 में 26.98 और वित्त वर्ष 2007-08 में 26.64 फीसदी रहा है। इन्हीं दो सालों के दौरान बिहार में यह अनुपात 30.14 व 29.69, झारखंड में 33.95 व 35.15, हिमाचल प्रदेश में 41.52 व 43.63 और उत्तर प्रदेश में 45.14 व 44.92 फीसदी रहा है। छत्तीसगढ़ में जरूर यह अनुपात वित्त वर्ष 2006-07 में 53.01 फीसदी और वित्त वर्ष 2007-08 में 52.28 फीसदी रहा है।
चालू साल 2008-09 की सितंबर में समाप्त तिमाही के आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश, हरियाणा और पंजाब से लेकर गुजरात और पश्चिम बंगाल बेहतर स्थिति में हैं। राजनीतिक रूप से दो ध्रुवों पर खड़े गुजरात और पश्चिम बंगाल में ऋण-जमा अनुपात लगभग बराबर है। गुजरात में यह 62.30 फीसदी और पश्चिम बंगाल में 60.52 फीसदी है। केरल का ऋण-जमा अनुपात 65.28 और पंजाब का ऋण-जमा अनुपात 67.15 फीसदी है। मध्य प्रदेश में ऋण-जमा अनुपात 56.05 फीसदी और हरियाणा में 58.05 फीसदी रहा है।
अगर हम बैंकों द्वारा हासिल जमाराशि और ऋण-वितरण की क्षेत्रवार स्थिति पर नजर डालें तो एक क्षेत्रीय असंतुलन साफ नजर आता है। पिछले दो वित्त वर्षों में उत्तरी क्षेत्र का बैंकों की कुल जमा में हिस्सा 23 फीसदी के आसपास है, जबकि वितरित ऋण में इसका हिस्सा 21 फीसदी है। मध्य भारत का कुल जमा में योगदान लगभग 11.5 फीसदी है, जबकि उन्हें बैंकों के ऋण का सात फीसदी हिस्सा ही मिल पा रहा है। पूर्वी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की हालत इससे जुदा नहीं है। लेकिन देश के पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्र अपनी जमा से अधिक हिस्सा ऋण के बतौर हासिल कर रहे हैं। पश्चिमी क्षेत्र का बैंकों की कुल जमा में योगदान 31 फीसदी के आसपास है, जबकि वे बैंकों के ऋण का तकरीबन 37 फीसदी हिस्सा हासिल कर रहे हैं। दक्षिणी राज्यों का जमा में योगदान लगभग 22 फीसदी है, जबकि बैंकों से मिले ऋण में उनका हिस्सा करीब 26 फीसदी है।
लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था पर नजर रखनेवाली प्रमुख संस्था सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी) के प्रबंध निदेशक व सीईओ महेश व्यास का कहना है कि इसमें क्षेत्रीय असंतुलन जैसी कोई बात नहीं है। बचत का आना एक बात है, लेकिन बैंकों तो उन्हीं राज्यों या इलाकों में ऋण देंगे, जहां निवेश के बेहतर अवसर हैं। बैंकों का यह रुख एकदम स्वाभाविक है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के प्रमुख अर्थशास्त्री डी के जोशी का भी मानना है कि हमेशा से ऐसा ही होता आया है और जमाराशि के रूप में आया पैसा वहीं निवेश होगा जहां बेहतर सुविधाएं हैं। तमिलनाडु में ज्यादा ऋण वितरण के बारे में उनका कहना था कि यह तेजी से प्रगति कर रहा राज्य है। इसलिए वहां जमा से अधिक निवेश हो रहा है।
फोटोशॉप छवि सौजन्य: DesignFlute
Comments
Its very difficult for people to get loans from bank to initiate a karobaar.
I remember several instances, where people who only had talent, and no assets, failed to get any financial help from the banks.