फंड की लागत का रोना, बैंकों का डर छिपाने का बहाना
बैंकों ने कर्ज पर ब्याज दरें घटाने का सिलसिला शुरू कर दिया है। देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक ने हर तरह के होमलोन पर एक साल के लिए 8 फीसदी ब्याज दर घोषित करके सबको चौंका दिया है। बैंकों ने सरकार से वादा भी कर दिया है कि वे ब्याज दरों में दो फीसदी कमी कर सकते हैं, बशर्ते उनके फंड की लागत घट जाए। दूसरे शब्दों में बैंकों का कहना है कि वे इस समय जमा पर ज्यादा ब्याज दे रहे हैं। इसलिए जब तक वे जमा पर ब्याज घटाने की स्थिति में नहीं आते, तब तक कर्ज पर ब्याज घटाना उनके लिए घाटे का सौदा रहेगा। देश के दूसरे सबसे बड़े बैंक पंजाब नेशनल बैंक के चेयरमैन के सी चक्रवर्ती का कहना है कि बैंक उधार पर ब्याज दर घटाने को तैयार है, बशर्ते फंड की लागत और घट जाए।
लेकिन क्या सचमुच ऐसी ही स्थिति है या बैंक झूठ-मूठ का रोना रो रहे हैं और वे असल में देश की सुस्त पड़ी आर्थिक गतिविधियों में जान डालने के लिए कर्ज देने के जोखिम से यथासंभव बचना चाहते हैं। शायद यही वजह है कि स्टेट बैंक के चेयरमैन ओ पी भट्ट को कहना पड़ता है कि बड़े और मझोले उद्योगों को कर्ज देने पर बैंक की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) बढ़ सकती हैं। लेकिन बैंकों के फंड की वास्तविक लागत पर नजर डालने पर दूसरी ही बात सामने आती है।
अभी ज्यादातर बैंकों में कुल जमा धन का लगभग 35 फीसदी हिस्सा चालू और बचत खातों से आता है। बैंकों के लिए रकम जुटाने का यह सबसे सस्ता जरिया है क्योंकि बचत खातों पर उसे महज 3.5 फीसदी सालाना ब्याज देनी पड़ती है जो सात-आठ सालों से जस की तस है। इसके अलावा फर्में और कंपनियां अपना धन चालू खाते में रखती हैं जिस पर बैंकों को एक धेला भी ब्याज नहीं देना पड़ता। अगर फिक्स्ड डिपॉजिट की बात करें तो इस समय बैंक इस पर अवधि के हिसाब से 4 फीसदी से शुरू करके ज्यादा से ज्यादा 9 फीसदी सालाना ब्याज दे रहे हैं। जैसे एचडीएफसी बैंक 3.75 फीसदी से लेकर 8.5 फीसदी सालाना ब्याज दे रहा है। स्टेट बैंक ने 12 जनवरी से जमा पर ब्याज दरें एक बार फिर घटा दी हैं और वह पांच साल से दस साल तक की जमा पर अधिकतम 8.5 फीसदी सालाना ब्याज दे रहा है। बल्क डिपॉजिट यानी एक करोड़ रुपए से ज्यादा की जमा पर बैंक अब केवल 7.5 फीसदी ब्याज दे रहा है।
जाहिर-सी बात है कि बैंकों के लिए जमा का औसत खर्च इस समय 6 फीसदी से ज्यादा नहीं है। यह अलग बात है कि बैंक दिसंबर तक सावधि जमा पर लगभग 10 फीसदी ब्याज दे रहे थे। लेकिन पुरानी जमा पर अगर ब्याज दर ज्यादा है तो बैंकों ने पुराने कर्ज पर ब्याज दर भी नहीं घटाई है। जैसे, आईसीआईसीआई बैंक अब भी पुराने होम लोन पर 12.75 फीसदी सालाना ब्याज ले रहा है। सरकारी बैंकों की प्राइम लेंडिंग रेट (पीएलआर) घटकर 12-13 फीसदी हो गई है, जबकि निजी बैंकों की पीएलआर अब भी 14 से 16 फीसदी बनी हुई है। ऐसे में फंड की लागत और कर्ज पर ब्याज का अंतर अब भी बैंकों के लिए 3 फीसदी से ज्यादा ही बैठता है जिसे एक अच्छा लाभ मार्जिन कहा जा सकता है।
इसके अलावा बैंकों ने अपनी जमा का तकरीबन 29 फीसदी हिस्सा सरकारी प्रतिभूतियों में लगा रखा है, जबकि एसएलआर (वैधानिक तरलता अनुपात) की अनिवार्यता के तहत उन्हें केवल 24 फीसदी निवेश करना है। इस तरह उन्होंने 1.80 लाख करोड़ रुपए सरकारी प्रतिभूतियों में ज्यादा लगा रखे हैं, जिसे जमानत (कोलैटरल) के बतौर रखकर वे रिजर्व बैंक से महज 5.5 फीसदी की रेपो दर पर तात्कालिक जरूरत के लिए उधार ले सकते हैं। अगर उन्हें और भी रकम की जरूरत पड़ती है तो अंतरबैंक बाजार से कॉलमनी के जरिए ले सकते हैं जहां इस समय दरें 2.5 से 4.30 फीसदी चल रही है। साथ ही रिजर्व बैंक ने बैंकों को अपने एसएलआर निवेश के 1.5 फीसदी हिस्से के एवज में 5.5 फीसदी ब्याज पर 60,000 करोड़ देने की सहूलियत दे रखी है। बात एकदम साफ है फंड की लागत बस रोना है। असली बात यही है कि बैंक अब भी जोखिम लेने से घबरा रहे हैं।
लेकिन क्या सचमुच ऐसी ही स्थिति है या बैंक झूठ-मूठ का रोना रो रहे हैं और वे असल में देश की सुस्त पड़ी आर्थिक गतिविधियों में जान डालने के लिए कर्ज देने के जोखिम से यथासंभव बचना चाहते हैं। शायद यही वजह है कि स्टेट बैंक के चेयरमैन ओ पी भट्ट को कहना पड़ता है कि बड़े और मझोले उद्योगों को कर्ज देने पर बैंक की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) बढ़ सकती हैं। लेकिन बैंकों के फंड की वास्तविक लागत पर नजर डालने पर दूसरी ही बात सामने आती है।
अभी ज्यादातर बैंकों में कुल जमा धन का लगभग 35 फीसदी हिस्सा चालू और बचत खातों से आता है। बैंकों के लिए रकम जुटाने का यह सबसे सस्ता जरिया है क्योंकि बचत खातों पर उसे महज 3.5 फीसदी सालाना ब्याज देनी पड़ती है जो सात-आठ सालों से जस की तस है। इसके अलावा फर्में और कंपनियां अपना धन चालू खाते में रखती हैं जिस पर बैंकों को एक धेला भी ब्याज नहीं देना पड़ता। अगर फिक्स्ड डिपॉजिट की बात करें तो इस समय बैंक इस पर अवधि के हिसाब से 4 फीसदी से शुरू करके ज्यादा से ज्यादा 9 फीसदी सालाना ब्याज दे रहे हैं। जैसे एचडीएफसी बैंक 3.75 फीसदी से लेकर 8.5 फीसदी सालाना ब्याज दे रहा है। स्टेट बैंक ने 12 जनवरी से जमा पर ब्याज दरें एक बार फिर घटा दी हैं और वह पांच साल से दस साल तक की जमा पर अधिकतम 8.5 फीसदी सालाना ब्याज दे रहा है। बल्क डिपॉजिट यानी एक करोड़ रुपए से ज्यादा की जमा पर बैंक अब केवल 7.5 फीसदी ब्याज दे रहा है।
जाहिर-सी बात है कि बैंकों के लिए जमा का औसत खर्च इस समय 6 फीसदी से ज्यादा नहीं है। यह अलग बात है कि बैंक दिसंबर तक सावधि जमा पर लगभग 10 फीसदी ब्याज दे रहे थे। लेकिन पुरानी जमा पर अगर ब्याज दर ज्यादा है तो बैंकों ने पुराने कर्ज पर ब्याज दर भी नहीं घटाई है। जैसे, आईसीआईसीआई बैंक अब भी पुराने होम लोन पर 12.75 फीसदी सालाना ब्याज ले रहा है। सरकारी बैंकों की प्राइम लेंडिंग रेट (पीएलआर) घटकर 12-13 फीसदी हो गई है, जबकि निजी बैंकों की पीएलआर अब भी 14 से 16 फीसदी बनी हुई है। ऐसे में फंड की लागत और कर्ज पर ब्याज का अंतर अब भी बैंकों के लिए 3 फीसदी से ज्यादा ही बैठता है जिसे एक अच्छा लाभ मार्जिन कहा जा सकता है।
इसके अलावा बैंकों ने अपनी जमा का तकरीबन 29 फीसदी हिस्सा सरकारी प्रतिभूतियों में लगा रखा है, जबकि एसएलआर (वैधानिक तरलता अनुपात) की अनिवार्यता के तहत उन्हें केवल 24 फीसदी निवेश करना है। इस तरह उन्होंने 1.80 लाख करोड़ रुपए सरकारी प्रतिभूतियों में ज्यादा लगा रखे हैं, जिसे जमानत (कोलैटरल) के बतौर रखकर वे रिजर्व बैंक से महज 5.5 फीसदी की रेपो दर पर तात्कालिक जरूरत के लिए उधार ले सकते हैं। अगर उन्हें और भी रकम की जरूरत पड़ती है तो अंतरबैंक बाजार से कॉलमनी के जरिए ले सकते हैं जहां इस समय दरें 2.5 से 4.30 फीसदी चल रही है। साथ ही रिजर्व बैंक ने बैंकों को अपने एसएलआर निवेश के 1.5 फीसदी हिस्से के एवज में 5.5 फीसदी ब्याज पर 60,000 करोड़ देने की सहूलियत दे रखी है। बात एकदम साफ है फंड की लागत बस रोना है। असली बात यही है कि बैंक अब भी जोखिम लेने से घबरा रहे हैं।
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दीपक भारतदीप