कुछ जानते हैं तो कितना कुछ नहीं जानते हम
चोर से लेकर जुआरी तक दीवाली जगाते हैं तो लिखने का ‘धंधा’ करनेवाले हम कैसे पीछे रह सकते हैं!! पूरे दो हफ्ते हो गए, कुछ नहीं लिखा। लेकिन आज एक नई शुरुआत का दिन है, विक्रम संवत् 2065 की शुरुआत की बेला है तो लिखना ज़रूरी है। लेकिन लिखने के लिए जानना ज़रूरी है और मैं शायद अब भी जानने के मामले में सिफर के काफी करीब हूं। लोग कहते हैं कि मैं आर्थिक मामलों की कायदे की समझ रखता हूं। लेकिन हिंदी के एक नए बिजनेस अखबार में मुंबई ब्यूरो प्रमुख का काम संभाला तब पता चला कि अर्थ के बारे में अभी तक कितना कम जानता हूं मैं। फिर यह सोचकर तसल्ली हुई कि लेहमान ब्रदर्स से लेकर एआईजी के लिए फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट तैयार करनेवाले लोग भी इतना नहीं जानते थे कि वित्तीय संकट को पास फटकने से कैसे रोका जा सकता है। खैर, उन लोगों जैसी जटिल समझ हासिल करने के लिए मुझे एवरेस्ट की फतेह जैसा उपक्रम करना होगा।
एक बात और बता दूं कि साढ़े पांच साल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में काम करने के बाद प्रिंट में वापस लौटने पर मुझे लगा, जैसे कोई मछली सूखे किनारे से उछलकर दोबारा पानी में पहुंच गई हो। आपको अगर गांव का अनुभव होगा तो ज़रूर जानते होंगे कि तालाब के पानी में छिछली खिलाना क्या होता है। हाथ तिरछा करके फेंका गया खपड़ा या पतले पत्थर का टुकड़ा सतह को छूता-छूता उड़ा चला जाता है, कहीं गहरे नहीं उतरता। मुझे लगता है कि आज हमारी टेलिविजन न्यूज़ में छिछली खिलाने जैसा ही काम हो रहा है। पूरी शिफ्ट में आप छिछली खिलाते रहते हैं। पारी खत्म कर जब घर लौटते हैं तो लगता है न कुछ किया, न कुछ पाया।
जैसे कोई भिखारी किसी स्टेशन की सीढियों पर दस घंटे बैठकर सौ-दो सौ कमा लेता है, वैसे ही हम हफ्ते में पांच दिन दस-दस घंटे की चाकरी कर महीने में 70-80 हज़ार कमा लेते हैं। लेकिन इस काम से पैसे के अलावा हमें कुछ नहीं मिलता। न बदलते जमाने की समझ, न राजनीति या अर्थनीति की समझ। न अपनी समझ, न परायों की समझ। सत्ता की लिप्सा में डूबे चंद लोग अपना हिसाब-किताब लगाकर आपको सेट करते रहते हैं और आप उनकी फौज के घुघ्घू या सियार बन गए तो ठीक है, नहीं तो बस समय काटते रहिए, ऊर्जा-विहीन होते रहिए, दिन-ब-दिन चुकते चले जाइए। लेकिन मुझे लगता है कि न तो हम इतने फालतू हैं और न ही हमारे पास इतना फालतू समय है।
हां, इतना ज़रूर है कि आज मीडिया, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सत्ता समीकरण का अनिवार्य हिस्सा बन गया है तो जिन्हें इन समीकरणों से खेलने का मौका मिला है और जिन्हें इस खेल का हुनर आता है उनके लिए यहां मौजा ही मौजा है। बाकी सब तो फुरसत मिलने ही इमारत के स्मोकिंग एरिया में छल्ले उड़ाने चले जाते हैं। कल के चंद विद्रोहियों को मैंने इस हालत में देखा है। और, उनकी यह हालत देखकर मुझे लगा कि मैं इस हश्र को कतई प्राप्त नहीं हो सकता। अंत में मैं वे पंक्तियां पेश करना चाहता हूं जो अपने ताज़ा इस्तीफे में मैंने लिखी थीं...
एक बात और बता दूं कि साढ़े पांच साल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में काम करने के बाद प्रिंट में वापस लौटने पर मुझे लगा, जैसे कोई मछली सूखे किनारे से उछलकर दोबारा पानी में पहुंच गई हो। आपको अगर गांव का अनुभव होगा तो ज़रूर जानते होंगे कि तालाब के पानी में छिछली खिलाना क्या होता है। हाथ तिरछा करके फेंका गया खपड़ा या पतले पत्थर का टुकड़ा सतह को छूता-छूता उड़ा चला जाता है, कहीं गहरे नहीं उतरता। मुझे लगता है कि आज हमारी टेलिविजन न्यूज़ में छिछली खिलाने जैसा ही काम हो रहा है। पूरी शिफ्ट में आप छिछली खिलाते रहते हैं। पारी खत्म कर जब घर लौटते हैं तो लगता है न कुछ किया, न कुछ पाया।
जैसे कोई भिखारी किसी स्टेशन की सीढियों पर दस घंटे बैठकर सौ-दो सौ कमा लेता है, वैसे ही हम हफ्ते में पांच दिन दस-दस घंटे की चाकरी कर महीने में 70-80 हज़ार कमा लेते हैं। लेकिन इस काम से पैसे के अलावा हमें कुछ नहीं मिलता। न बदलते जमाने की समझ, न राजनीति या अर्थनीति की समझ। न अपनी समझ, न परायों की समझ। सत्ता की लिप्सा में डूबे चंद लोग अपना हिसाब-किताब लगाकर आपको सेट करते रहते हैं और आप उनकी फौज के घुघ्घू या सियार बन गए तो ठीक है, नहीं तो बस समय काटते रहिए, ऊर्जा-विहीन होते रहिए, दिन-ब-दिन चुकते चले जाइए। लेकिन मुझे लगता है कि न तो हम इतने फालतू हैं और न ही हमारे पास इतना फालतू समय है।
हां, इतना ज़रूर है कि आज मीडिया, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सत्ता समीकरण का अनिवार्य हिस्सा बन गया है तो जिन्हें इन समीकरणों से खेलने का मौका मिला है और जिन्हें इस खेल का हुनर आता है उनके लिए यहां मौजा ही मौजा है। बाकी सब तो फुरसत मिलने ही इमारत के स्मोकिंग एरिया में छल्ले उड़ाने चले जाते हैं। कल के चंद विद्रोहियों को मैंने इस हालत में देखा है। और, उनकी यह हालत देखकर मुझे लगा कि मैं इस हश्र को कतई प्राप्त नहीं हो सकता। अंत में मैं वे पंक्तियां पेश करना चाहता हूं जो अपने ताज़ा इस्तीफे में मैंने लिखी थीं...
The moment you feel stagnant, the moment you feel that you are becoming redundant, immediately you should say, quit. That’s why I support euthanasia. Always new challenges are waiting for you somewhere outside.क्या करूं, अपने यहां इस्तीफे अब भी अंग्रेज़ी में लिखने का चलन है। वैसे, आज का लिखा यह सारा कुछ एकालाप ही है। लेकिन अक्सर लगता है कि अपने से संवाद बनाने की कोशिश में बहुतों से संवाद बन जाता है क्योंकि एक की हद टूटकर कब अनेक से मिल जाती है, पता ही नहीं चलता। इसीलिए कभी-कभी लगता है कि मैं अनाम ही रहता तो अच्छा रहता।
Comments
चलिए, अच्छा है… देर आयद, दुरुस्त आयद।
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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
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फिर एक दिन पढ़ता था:
दूसरों की गलतियों से सीखें। आप इतने दिन नहीं जी सकते कि आप खुद इतनी गलतियां कर सके।
उस लिहाज से जिसे आप एकालाप कह रहे हैं और मैं उसे आपके द्वारा अपना अमूल्य अनुभव बांटना मान रहा हूँ-बहुत उपयोगी है. अतः ऐसे ही जारी रहें. काश हर दिन दिवाली हो और आप अपनी लेखनी जगाने के लोलुपता लिए लिखते हों.
दीपावली के इस शुभ अवसर पर आप और आपके परिवार को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
हर बदलाव के समय यही महसूस होता है।
- राय तपन, दिल्ली।
मो- 9899075196
शुभ दीपावली!
आपके नये पोस्ट का मैं इन्तेजार कर रहा था. उम्मीद यह थी की आप उत्तर प्रदेश की हाल की यात्रा के अनुभव लिखेंगें. मैं उम्मीद करता हूँ कि इस बीच में वहाँ काफ़ी कुछ बदला होगा .उस सन्दर्भ में आपके लेख का इन्तेजार रहेगा
आपके नए उद्दयम में प्रवेश की बधाई.
पता नहीं क्यों अर्थशास्त्र और वित्तीय मामलों पर खासकर अंग्रेजी बालों का वर्चस्व कुछ ज्यादा ही रहा है.
इस क्षेत्र में आपके प्रवेश से निसंदेह बहुत इस क्षेत्र के कई मसलों पर से रहस्य का गैरजरूरी और झूठा लबादा हटेगा.
हिन्दी बेल्ट में धीरे- धीरे ही सही,पर निश्चित तौर पर आ रहे बदलाब के इस दौर में आर्थिक मसलों पर हिन्दी में सहज भाषा में लिखे लेखों कि सख्त जरूरत है.
सादर
कुछ अखबार ठीक है, एक पाठक/दर्शक की दृष्टि से बस इतना ही कह सकता हूँ.
pl visit my blog-www.galikartar.blogspot.com
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मन मोह लिया, इस एकालाप ने..
माना की इलेक्ट्रानिक मीडिया
रास नहीं आया आपको,लेकिन
आप ब्लाग मित्रों को निराश मत
कीजिएगा कभी....बहरहाल प्रिंट दुनिया की
चौथी सत्ता में आपकी नई शुरूवात के लिए
शुभकामनाएँ....आपकी शैली के मुरीद हैं हम....
अर्थ की आप अर्थवाह कलमकार हैं....
बने और बढे रहें
यही कामना है.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
मेरे प्यारे देशभक्तों,
आज तक की अपनी जीवन यात्रा में मुझे अनुभव से ये सार मिला कि देश का हर आदमी डर यानि दहशत के साये में साँस ले रहा है! देश व समाज को तबाही से बचाने के लिए मायूस होकर सभी एक दूसरे को झूठी तसल्ली दिए जा रहे हैं. खौफनाक बन चुकी आज की राजनीति को कोई भी चुनौती देने की हिम्मत नही जुटा पा रहा. सभी कुदरत के किसी करिश्मे के इंतजार में बैठे हैं. रिस्क कोई लेना नहीं चाहता. इसी कारण मैं अपने देश के सभी जागरूक, सच्चे, ईमानदार नौजवानों को हौसला देने के लिए पूरे यकीन के साथ यह दावा कर रहा हूँ कि वर्तमान समय में देश में हर क्षेत्र की बिगड़ी हुई हर तस्वीर को एक ही झटके में बदलने का कारगर फोर्मूला अथवा माकूल रास्ता इस वक्त सिर्फ़ मेरे पास ही है. मैंने अपनी 46 साल की उमर में आज तक कभी वादा नहीं किया है मैं सिर्फ़ दावा करता हूँ, जो विश्वास से पैदा होता है. इस विश्वास को हासिल करने के लिए मुझे 30 साल की बेहद दुःख भरी कठिन और बेहद खतरनाक यात्राओं से गुजरना पड़ा है. इस यात्रा में मुझे हर पल किसी अंजान देवीय शक्ति, जिसे लोग रूहानी ताकत भी कहते हैं, की भरपूर मदद मिलती रही है. इसी कारण मैंने इस अनुभव को भी प्राप्त कर लिया कि मैं सब कुछ बदल देने का दावा कर सकूँ. चूँकि ऐसे दावे करना किसी भी इन्सान के लिए असम्भव होता है, लेकिन ये भी कुदरत का सच्चा और पक्का सिधांत है की सच्चाई और मानवता के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर जो भी भगवान का सच्चा सहारा पकड़ लेता है वो कुछ भी और कैसा भी, असंभव भी सम्भव कर सकता है. ऐसी घटनाओं को ही लोग चमत्कार का नाम दे देते हैं. इस मुकाम तक पहुँचने के लिए, पहली और आखिरी एक ही शर्त होती है वो है 100% सच्चाई, 100% इंसानियत, 100% देशप्रेम व 100% बहादुरी यानि मौत का डर ख़त्म होना. यह सब भी बहुत आसान है . सिर्फ़ अपनी सोच से स्वार्थ को हटाकर परोपकार को बिठाना. बस इतने भर से ही कोई भी इन्सान जो चाहे कर सकता है. रोज नए चमत्कार भी गढ़ सकता है क्योंकि इंसान फ़िर केवल माध्यम ही रह जाता है, और करने वाला तो सिर्फ़ परमात्मा ही होता है. भगवान की कृपा से अब तक के प्राप्त अनुभव के बलबूते पर एक ऐसा अद्भुत प्रयोग जल्दी ही करने जा रहा हूँ, जो इतिहास के किसी पन्ने पर आज तक दर्ज नहीं हो पाया है. ऐसे ऐतिहासिक दावे पहले भी सिर्फ़ बेहतरीन लोगों द्वारा ही किए जाते रहे हैं. मैं भी बेहतरीन हूँ इसीलिए इतना बड़ा दावा करने की हिम्मत रखता हूँ.
प्रभु कृपा से मैंने समाज के किसी भी क्षेत्र की हर बर्बाद व जर्जर तस्वीर को भलीभांति व्यवहारिक अनुभव द्वारा जान लिया है. व साथ- साथ उसमें नया रंग-रूप भरने का तरीका भी खोज लिया है. मैंने राजनीति के उस अध्याय को भी खोज लिया है जिस तक ख़ुद को राजनीति का भीष्म पितामह समझने वाले परिपक्व बहुत बड़े तजुर्बेकार नेताओं में पहुँचने की औकात तक नहीं है.
मैं दावा करता हूँ की सिर्फ़ एक बहस से सब कुछ बदल दूंगा. मेरा प्रश्न भी सब कुछ बदलने की क्षमता रखता है. और रही बात अन्य तरीकों की तो मेरा विचार जनता में वो तूफान पैदा कर सकता है जिसे रोकने का अब तक किसी विज्ञान ने भी कोई फार्मूला नही तलाश पाया है.
सन 1945 से आज तक किसी ने भी मेरे जैसे विचार को समाज में पेश करने की कोशिश तक नहीं की. इसकी वजह केवल एक ही खोज पाया हूँ
कि मौजूदा सत्ता तंत्र बहुत खौफनाक, अत्याचारी , अन्यायी और सभी प्रकार की ताकतों से लैस है. इतनी बड़ी ताकत को खदेड़ने के लिए मेरा विशेष खोजी फार्मूला ही कारगर होगा. क्योंकि परमात्मा की ऐसी ही मर्जी है. प्रभु कृपा से मेरे पास हर सवाल का माकूल जबाब तो है ही बल्कि उसे लागू कराने की क्षमता भी है.
{ सच्चे साधू, संत, पीर, फ़कीर, गुरु, जो कि देवता और फ़रिश्ते जैसे होते हैं को छोड़ कर}
देश व समाज, इंसानियत, धर्मं व इन्साफ से जुड़े किसी भी मुद्दे पर, किसी से भी, कहीं भी हल निकलने की हद तक निर्विवाद सभी उसूल और सिधांत व नीतियों के साथ कारगर बहस के लिए पूरी तरह तैयार हूँ. खास तौर पर उन लोगों के साथ जो पूरे समाज में बहरूपिये बनकर धर्म के बड़े-बड़े शोरूम चला रहे हैं.
अंत में अफ़सोस और दुःख के साथ ऐसे अति प्रतिष्ठित ख्याति प्राप्त विशेष हैसियत रखने वाले समाज के विभिन्न क्षेत्र के महान लोगों से व्यक्तिगत भेंट के बाद यह सिद्ध हुआ कि जो चेहरे अखबार, मैगजीन, टीवी, बड़ी-बड़ी सेमिनार और बड़े-बड़े जन समुदाय को मंचों से भाषण व नसीहत देते हुए नजर आ रहे हैं व धर्म की दुकानों से समाज सुधार व देश सेवा के लिए बड़ी-बड़ी कुर्बानियों की बात करने वाले धर्म के ठेकेदार, जो शेरों की तरह दहाड़ते हैं, लगभग 99% लोगों ने बात पूरी होने से पहले ही ख़ुद को चूहों की कौम में परिवर्तित कर लिया. समस्या के समाधान तक पहुँचने से पहले ही इन लोगों ने मज़बूरी में, स्वार्थ में या कायरपन से अथवा मूर्खतावश डर के कारण स्पष्ट समाधान सुझाने के बाद भी राजनैतिक दहशत के कारण पूरी तरह समर्पण कर दिया. यानि हाथी के खाने और दिखने वाले दांत की तरह.
मैं हिंदुस्तान की 125 करोड़ भीड़ में एक साधारण हैसियत का आम आदमी हूँ, जिसकी किसी भी क्षेत्र में कहीं भी आज तक कोई पहचान नहीं है, और आज तक मेरी यही कोशिश रही है की कोई मुझे न पहचाने. जैसा कि अक्सर होता है.
मैं आज भी शायद आपसे रूबरू नहीं होता, लेकिन कुदरत की मर्जी से ऐसा भी हुआ है. चूँकि मैं नीति व सिधांत के तहत अपने विचारों के पिटारे के साथ एक ही दिन में एक ही बार में 125 करोड़ लोगों से ख़ुद को बहुत जल्द परिचित कराऊँगा.
उसी दिन से इस देश का सब कुछ बदल जाएगा यानि सब कुछ ठीक हो जाएगा. चूँकि बात ज्यादा आगे बढ़ रही है इसलिए मैं अपना केवल इतना ही परिचय दे सकता हूँ
कि मेरा अन्तिम लक्ष्य देश के लिए ही जीना और मरना है.
फ़िर भी कोई भी , लेकिन सच्चा व्यक्ति मुझसे व्यक्तिगत मिलना चाहे तो मुझे खुशी ही होगी.. आपना फ़ोन नम्बर और अपना विचार व उद्देश्य mail पर जरुर बताये, मिलने से पहले ये जरुर सोच लें कि मेरे आदर्श , मार्गदर्शक अमर सपूत भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, लाला लाजपत राए सरीखे सच्चे देश भक्त हैं. गाँधी दर्शन में मेरा 0% भी यकीन नहीं हैं.
एक बार फ़िर सभी को यकीन दिला रहा हूँ की हर ताले की मास्टर चाबी मेरे पास है, बस थोड़ा सा इंतजार और करें व भगवान पर विश्वास रखें. बहुत जल्द सब कुछ ठीक कर दूंगा. अगर हो सके तो आप मेरी केवल इतनी मदद करें कि परमात्मा से दुआ करें कि शैतानों की नजर से मेरे बच्चे महफूज रहें.
मुझे अपने अनुभवों पर फक्र है, मैं सब कुछ बदल दूंगा.
क्योंकि मैं बेहतरीन हूँ.
आपका सच्चा हमदर्द
(बेनाम हिन्दुस्तानी)
e-mail- ajadhind.11@gmail.com
मैं इस वक हिंदुस्तान की हर बिगड़ी हुई तस्वीर को 24 घंटे के अंदर बदलने का माद्दा रखता हूँ, वह भी केवल अपनी एक स्पीच से. क्योंकि मैं बेहतरीन हूँ. क्या आप के ग्रुप के सभी एड़ीटर्स सिर्फ़ एक बार मुझसे बहस करने को तैयार होंगे? एक ही बार में फ़ैसला हो जाएगा मैं यक़ीन के साथ दावा कर रहा हूँ की प्राकृत ने मुझे ही चुना है देश की तकदीर बदलने के लिए . अगर मुझे आपका जबाब नहीं मिला तो भी यक़ीन दिलाता हूँ की किसी भी वक़्त इस देश की पूरी सत्ता को पूरी तरह बदलने के लिए एक ऐसा खेल शुरू कर दूँगा जिसमे आठ दिन के अंदर सब कुछ बदलने की गारांट भी है. संत महात्मा, पीर, फ़क़ीर, गुरुओं व 100% सच्चे इंसान, जिनका रूप फ़रिशतों का होता है को छो. किसी से भी किसी भी वक़्त बहस करने को तैयार हूँ. हर प्रश्न भी सब कुछ बदलने का माद्दा रखता है व मेरे हर जबाब में जीत का ही प्रत्यक्ष दर्शन होगा.हर जबाब men . आपके मीडिया क के इतिहास में आज तक ऐसी क घटना न घाटी है. बल्कि आज तक सुनी भी नही गयी है बल्कि आज ताज किसी ने सोच ही नही पाई है. मुझे बहुत प्रसन्नता होगी आप जैसे महान देशभक्त, देशप्रेमी, सच्चे जागरूक , बहादुर , कर्तव्यनिष्ट, विस सर्वोक्च पद दयावान इस संदेश को बेवकूफ़ी, पागलपन, सिरफिरा,बडबोला समझा ही सही अपने मीडिया धर्मं व अपने मीडिया अभियान के तहत नीतिगत मुझे शीघ्रातिशीघ्र ज़रूर जबाब देंगे. इंतज़ार अभी से शुरू है, जो आपके जबाब के लिए ही जागता रहेगा.
साधन्यवाद
आपका अपना ही 'मस्ताना'