बहन जी ने जगा दी उम्मीदें
हरिशंकर तिवारी, केशरीनाथ त्रिपाठी और बेनी प्रसाद वर्मा जैसे दिग्गजों की हार और बसपा को पूर्ण बहुमत। यकीनन उत्तर प्रदेश की राजनीति बदल रही है। ये भी तय है कि बीजेपी और कांग्रेस की वापसी अब उत्तर प्रदेश में कभी संभव नहीं है। राहुल बाबा उत्तर प्रदेश में डेरा जमा लें, तब भी कांग्रेस को सत्ता नहीं दिला सकते। अब तो यहां दो ही दल, सपा और बसपा, बदल-बदल कर पक्ष-विपक्ष में आते रहेंगे।
ये भी तय है कि मायावती से दलित-ब्राह्मण-मुसलमान का जो समीकरण बांधा है, वह लगभग एक अजेय समीकरण है। लेकिन मुलायम सिंह सही-सलामत रहे और उनके ऊपर से अमर सिंह की वक्र दृष्टि हट गई तो पांच साल बाद मायावती को पटखनी दे भी सकते हैं। वैसे, फिलहाल मायावती सही कह रही हैं कि मरे हुए को क्या मारना। सचमुच, मुलायम नब्बे से ज्यादा विधायकों के बावजूद फिलहाल एक मरी हुई शक्ति हैं।
मायावती उत्तर प्रदेश में यकीनन विकास का काम करेंगी। सड़कें बनवाएंगी, पुल बनवाएंगी। इसलिए नहीं कि वो दिली तौर पर विकास की पैरोकार हैं, बल्कि आज की राजनीति में खाने-खिलाने के लिए विकास के पैसों का खर्च होना जरूरी है। मायावती से ये उम्मीद कतई नहीं है कि वो दलितों की किस्मत बदल देंगी। हां, इतना जरूर है कि उनके शासन में दलित भी डीएम और एसपी से लेकर बीडीओ का कॉलर पकड़ सकता है।
मायावती से दलितों के सम्मान को बढ़ाया है, उन्हें एक भावनात्मक संपन्नता दी है। लेकिन जब विधायकों तक को बहन जी के कदमों में बैठना पड़ता है तो उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणवाद के टूटने की उम्मीद नहीं की जा सकती। वैसे भी बसपा के करीब 210 विधायकों में से एक तिहाई विधायक सवर्ण हैं।
फिर भी मायावती के सत्ता में आने से राज्य में लोकतंत्र की चाहत को बल मिलेगा क्योंकि बहन जी से बड़े-बड़े अफसर खौफ खाते हैं और कहते हैं कि किसी सरकारी कर्मचारी को काम न करते हुए देखने पर वो दीवार की तरफ मुंह करके खड़ा होने की सजा दे देती हैं।
ये भी तय है कि मायावती से दलित-ब्राह्मण-मुसलमान का जो समीकरण बांधा है, वह लगभग एक अजेय समीकरण है। लेकिन मुलायम सिंह सही-सलामत रहे और उनके ऊपर से अमर सिंह की वक्र दृष्टि हट गई तो पांच साल बाद मायावती को पटखनी दे भी सकते हैं। वैसे, फिलहाल मायावती सही कह रही हैं कि मरे हुए को क्या मारना। सचमुच, मुलायम नब्बे से ज्यादा विधायकों के बावजूद फिलहाल एक मरी हुई शक्ति हैं।
मायावती उत्तर प्रदेश में यकीनन विकास का काम करेंगी। सड़कें बनवाएंगी, पुल बनवाएंगी। इसलिए नहीं कि वो दिली तौर पर विकास की पैरोकार हैं, बल्कि आज की राजनीति में खाने-खिलाने के लिए विकास के पैसों का खर्च होना जरूरी है। मायावती से ये उम्मीद कतई नहीं है कि वो दलितों की किस्मत बदल देंगी। हां, इतना जरूर है कि उनके शासन में दलित भी डीएम और एसपी से लेकर बीडीओ का कॉलर पकड़ सकता है।
मायावती से दलितों के सम्मान को बढ़ाया है, उन्हें एक भावनात्मक संपन्नता दी है। लेकिन जब विधायकों तक को बहन जी के कदमों में बैठना पड़ता है तो उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणवाद के टूटने की उम्मीद नहीं की जा सकती। वैसे भी बसपा के करीब 210 विधायकों में से एक तिहाई विधायक सवर्ण हैं।
फिर भी मायावती के सत्ता में आने से राज्य में लोकतंत्र की चाहत को बल मिलेगा क्योंकि बहन जी से बड़े-बड़े अफसर खौफ खाते हैं और कहते हैं कि किसी सरकारी कर्मचारी को काम न करते हुए देखने पर वो दीवार की तरफ मुंह करके खड़ा होने की सजा दे देती हैं।
Comments
घुघूती बासूती
अंसभव तो कुछ भी नहीं है भाई.
बहुत पहले कांशीरामजी से पहली बार हम तब मिले थे जब वो चावड़ी में अपने छोटे से अखबार के लिये कागज खरीदने आते थे.क्या उस समय के बीज से इतने बड़े बरगद की उम्मीद की जा सकती थी?
अभी तो शुभ शुभ की कामना और प्रतीक्षा करें.