फ्रेम तोड़कर सतह से निकलता चिट्ठा-समय
वर्धा के पास सेवाग्राम में गांधी की कुटिया में खिड़की के फ्रेम से झांकती रौशनी हम माकूल वक्त का इंतज़ार करते रहते हैं और वक्त हाथ से सरकता जाता है। लेकिन यह सरकता वक्त कभी-कभी अनायास नहीं, सायास ऐसी चीजें ले आता है जो रुकी हुई गाड़ी को फिर से चला देतीं हैं। जी हां, सायास साझा प्रयास से चंद दिनों में ऐसी ही चीज़ आने जा रही है जो करीब चार साल से रुकी हुई हिंदी ब्लॉगिंग की गाड़ी को एक नई गति दे सकती है। तारीख मुकर्रर है। 15 अक्टूबर तक हिंदी ब्लॉगों का नया एग्रीगेटर, चिट्ठा-समय हमारे बीच उपस्थित होगा। यह पहले की तरह कोई व्यक्तिगत उपक्रम नहीं, बल्कि सांस्थानिक उपक्रम है। इसे शुरू कर रहा है वर्धा का महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदीविश्वविद्यालय । आप जानते ही होंगे कि यह एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है और इसके पास संसाधनों की कोई कमी नही है। आप सोच रहे होंगे कि कोई सरकारी संस्थान नौकरशाही जकड़न से निकलकर ऐसी पहल कैसे कर सकता है। लेकिन हर संस्थान में व्यक्ति ही होते हैं जो किसी द्वीप पर नहीं, बल्कि इसी समाज के घात-प्रतिघात के बीच जीते हैं। इन व्यक्तियों की निजी ऊर्जा नई पहल की जननी बन जात...