tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post8624593829639693335..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: एक नई उम्मीद के साथअनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-11059774874617060262008-08-10T03:08:00.000+05:302008-08-10T03:08:00.000+05:30नायाब !!! - हीरा भी, जौहरी भी - साभार - मनीषनायाब !!! - हीरा भी, जौहरी भी - साभार - मनीषAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/08624620626295874696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-54668235712222041632008-08-09T00:15:00.000+05:302008-08-09T00:15:00.000+05:30सोचिए जरा क्यों हैं विनायक सेन जेल के भीतर। इसलिए ...सोचिए जरा क्यों हैं विनायक सेन जेल के भीतर। इसलिए कि साहस नहीं मुख्यमंत्री में उन्हें अपनी रियाया के बीच देख पाने का।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-39212375240076375802008-08-08T19:09:00.000+05:302008-08-08T19:09:00.000+05:30आसमान में एक बार देख चुकने के बाद देखने को कुछ भी ...आसमान में एक बार देख चुकने के बाद देखने को कुछ भी नहीं बचता<BR/>एक आभासी दुनिया, शून्य में, आसमान में जहां कुछ भी नहीं होता<BR/>देखने पर हर बार कुछ नया होता है<BR/>एक नई उम्मीद के साथ...<BR/><BR/>सशक्त रचना...समीचीन प्रस्तुति<BR/>=======================<BR/>साभार बधाई<BR/>डा.चन्द्रकुमार जैनDr. Chandra Kumar Jainhttps://www.blogger.com/profile/02585134472703241090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-36750738759050446582008-08-08T15:22:00.000+05:302008-08-08T15:22:00.000+05:30सुंदर!अति सुंदर!बेहतरीन....बहुत ही उम्दा... रचना.आ...सुंदर!<BR/>अति सुंदर!<BR/>बेहतरीन....<BR/>बहुत ही उम्दा... रचना.<BR/>आपको बधाई.बालकिशनhttps://www.blogger.com/profile/18245891263227015744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-59465354858069658312008-08-08T13:31:00.000+05:302008-08-08T13:31:00.000+05:30This comment has been removed by the author.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-21962611647352069732008-08-08T13:30:00.000+05:302008-08-08T13:30:00.000+05:30कविता में एकदम नवीन प्रयोग.काफी उम्दा प्रस्तुति धन...कविता में एकदम नवीन प्रयोग.काफी उम्दा प्रस्तुति धन्यवादL.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-27451936721422419832008-08-08T13:08:00.000+05:302008-08-08T13:08:00.000+05:30सबसे पहले मैं अनिल रघुराज जी को धन्यवाद दूंगाजिनके...सबसे पहले मैं अनिल रघुराज जी को धन्यवाद दूंगा<BR/>जिनके सौजन्य से इसे पढ पाया. <BR/>कविता की सबसे खास बात इसका बहुत सटीक होना है न बहुत लाउड न बहुत अंडरटोन. गुस्सा जो बेचारगी और असहायता की हदों को छूता है.<BR/><BR/>कविता बेचैन करती है. और कवि की इस बात के लिये भी तारीफ होनी चाहिये कि इतने क्रूर समय का बयान करने के बाद भी कविता में उम्मीद बची रह्ती है. बेहद व्क्तिगत स्तर पर शायद मै अंत से सहमत न होउँ पर कविता बहुत अच्छी है.Avanish Gautamhttps://www.blogger.com/profile/03737794502488533991noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-45093794354541775522008-08-08T12:34:00.000+05:302008-08-08T12:34:00.000+05:30यह कविता अपने समय के जटिल यथार्थ को बहुत मर्मस्पर्...यह कविता अपने समय के जटिल यथार्थ को बहुत मर्मस्पर्शी वस्तुनिष्ठता -- एक किस्म की आभासी निस्पृहता और 'प्रिसीज़न' के साथ अभिव्यक्त करती है . बासी विद्रोह-मुद्राओं से बचते हुए और बिना 'लाउड' हुए यह कविता 'अंडरस्टेटमेंट' की शैली में बड़ी बात कहने का जबर्दस्त उदाहरण है .<BR/><BR/>इस कविता के दृश्य और पृष्ठीय 'अंडरस्टेटमेंट' के पीछे पिन्हां हैं गुम चोटें,मौन कराहें और जमा हुआ क्रोध . एक चीत्कार जो अभी उठनी है . <BR/><BR/>साथ ही एक उम्मीद भी . जो हर 'सिनिक' को चिढाती है और हर 'स्वप्नदर्शी' का मौलिक औजार होती है .<BR/><BR/>यह कविता पिटे-पिटाए कवि समय के केंचुल को न केवल उतार फेंकती है; बल्कि,नई वास्तविकताओं को प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त करता नया कवि समय रचती है .<BR/><BR/>बेहद अच्छी और असरदार कविता .<BR/><BR/>कविता की चौथी,बारहवीं और सत्रहवीं पंक्ति में 'मैं' को यदि सिंगल इनवरटेड कौमा में कर दें तो शायद बेहतर हो .Priyankarhttps://www.blogger.com/profile/13984252244243621337noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-59217470772415971452008-08-08T09:06:00.000+05:302008-08-08T09:06:00.000+05:30अनिल जी, कविता को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद. हा...अनिल जी, कविता को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद. हालाँकि कविता कुछ नया देखने की उम्मीद की बात करती है पर सच में रायपुर में आज का माहौल में लगता नहीं कि आशा के लिए कोई जगह बची है. बिनायक और अजय जैसे नाम और मानव अधिकारों की बात, केवल बातें ही लगती हैं, जो बस वहाँ के कानून के नाम पर होने वाले खेल का व्यंग हों.Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.com