tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post6446222396568736448..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: बचत की नई परिभाषा, बाबा का सच्चा किस्साअनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-82155335972535174832008-01-28T23:09:00.000+05:302008-01-28T23:09:00.000+05:30बचतचपतलगाती हैफिर भी न जानेकैसेसुहाती हैपर हमारी थ...बचत<BR/>चपत<BR/>लगाती है<BR/>फिर भी<BR/> न जाने<BR/>कैसे<BR/>सुहाती है<BR/>पर <BR/>हमारी थाती है<BR/>जैसे दिया <BR/>संग बाती है.अविनाश वाचस्पतिhttps://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-45375600546683526822008-01-28T15:46:00.000+05:302008-01-28T15:46:00.000+05:30ज्ञान जी, सही कहा आपने। हम में से बहुतों ने यदा-कद...ज्ञान जी, सही कहा आपने। हम में से बहुतों ने यदा-कदा ऐसी बाबागिरी की है। एक बार शाम को मैं दिल्ली में मंडी हाउस से घर (पटपड़गंज) जा रहा था। पत्नी ने कहा - ऑटो से चलते हैं। लेकिन मैंने पैसे बचाने के चक्कर में बस का सहारा लिया। घर पहुंचा तो किसी ने जेब से 8000 रुपए का मोबाइल निकाल लिया था। पत्नी ने कहा - देख लिया ना, 80 रुपए बचाने के चक्कर में 8000 चले गए। इसीलिए मुझे लगता है कि अपरिग्रह की इस सोच से आज बाहर निकलने की ज़रूरत है।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-32432495783758140962008-01-28T13:01:00.000+05:302008-01-28T13:01:00.000+05:30मस्त लगते है ऐसे लोगमस्त लगते है ऐसे लोगSanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-49530346490979788572008-01-28T11:59:00.000+05:302008-01-28T11:59:00.000+05:30ये नयी परिभाषा खूब पसंद आई। और ऐसा अक्सर होता भी ह...ये नयी परिभाषा खूब पसंद आई।<BR/> और ऐसा अक्सर होता भी है।mamtahttps://www.blogger.com/profile/05350694731690138562noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-2005130177287931472008-01-28T11:15:00.000+05:302008-01-28T11:15:00.000+05:30अब बाबा को छील लें इकनॉमिक प्र्यूडेंस पर; पर बाबा ...अब बाबा को छील लें इकनॉमिक प्र्यूडेंस पर; पर बाबा रहे होंगे कलरफुल पर्सनालिटी। <BR/>हम लोग बतायेंगे नहीं - पर ऐसी बाबागीरी तो हम सब ने यदाकदा की होगी! जिसपर कभी मन ही मन पछताते होंगे और कभी अन्दर ही अन्दर हंसते होंगे!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-89692433182622212112008-01-28T10:50:00.000+05:302008-01-28T10:50:00.000+05:30भैय्या हमहूं एसी बचत ना करिबे........भैय्या हमहूं एसी बचत ना करिबे........anuradha srivastavhttps://www.blogger.com/profile/15152294502770313523noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-68988202463029850982008-01-28T10:30:00.000+05:302008-01-28T10:30:00.000+05:30बिल्कुल सच है. वे ऐसा ही करते हैं. पांच पैसा बचाने...बिल्कुल सच है. वे ऐसा ही करते हैं. पांच पैसा बचाने के लिए पांच रूपया खर्च कर देंगे और कोई अफसोस नहीं होगा. यही तो जिंदगी के रंग हैं.<BR/> <BR/>देशज शब्दों का प्रयोग बहुत अच्छा है.Sanjay Tiwarihttps://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com