tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post6071260014202916487..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: ट्रेन पर सवार धार्मिक आस्था के तीन ताज़ा चेहरेअनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-35600577470216537662009-02-16T07:05:00.000+05:302009-02-16T07:05:00.000+05:30मैं कहते हुए माफ़ी चाहता हूँ पर आपकी अभिव्यक्ति से ...मैं कहते हुए माफ़ी चाहता हूँ पर आपकी अभिव्यक्ति से कदाचित ऐसा आभास होता है कि आप भी हमारे तथाकथित सेकुलर नेताओं से खास प्रभावित हैं. धर्मं का खानपान से सम्बन्ध है जिसे कोई अस्वीकार नही कर सकता क्यूंकि धर्मं सिर्फ़ उपासना नही वरन जीवन शैली को प्रभावित करने वाला है लेकिन यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर है की वह अपने धर्मं का कितना बखूबी पालन करता है. जहाँ तक हिंदू सभ्यता की बात है उसमे मांसाहार वर्जित नही है परन्तु दया और अहिंसा हमारे संस्कृति के अभिन्न अंग हैं जिसके कारण शाकाहार को भारतीय मनीषियों द्वारा खासा तवज्जो दिया जाता रहा है. यही बात भी इस्लाम पर लागू होती है भारतीय मुस्लमान सिर्फ़ मजहबी तौर पर इस्लामिक हैं आख़िर वे हैं तो भारतीय ही तो उनपर भारतीय संस्कृति और सभ्यता का प्रभाव देखकर आपको आश्चर्य होता है यह बात सुनके मैं भी कम अचंभित नही हुआ.<BR/>जहाँ आपने राम नम की लोरी को लेकर एक युवा माँ के दिल और दिमाग पर प्रश्न उठाया है तो मैं आपसे पूछता हूँ कि रामनाम में आख़िर ऐसी क्या बुराई है जिसने आपको ये सब बातें लिखने को विवश किया ? चलो एक बात आपकी मैंने ये मानली कि राम और कृष्ण काल्पनिक पत्र हैं तो फ़िर रामसेतु कहाँ से आया कुरुक्षेत्र में आज भी श्रीमद्भाग्वतम में वर्णित वटवृक्ष कहाँ से आया और अगर कोई माँ अपने बेटे को इनकी कथाये सुनाये तो उसमे बुराई क्या है ? क्या राम ने कभी ये कहाँ था कि तुम किसी व्यक्ति विशेष से नफरत करो वो तो मर्यादा पुरुषोत्तम माने जाते हैं अगर उनका १% व्यक्तित्व भी कोई आत्मसात कर ले तो मैं नही समझता कि आपको ये सब कहने की जरूरत पड़ती <BR/>आप क्या सोचते हैं कि भाजपा, शिवसेना, विश्व हिंदू परिषद् और जनसंघ जैसे संगठन राम को पूजते हैं तो आप ग़लत हैं ये सब राम को भुनाते हैं ये आपके साथ मेरे साथ हम सबके साथ छलावा कर रहे हैं इसलिए आप पुनः चिंतन करके देखे आपको बुराई किसमे नज़र आती है राम में, रामनाम में या फ़िर रामनाम की राजनीति में.<BR/>आशा करता हूँ कि आप मेरे विचारो पर कुछ समय देंगे <BR/>धन्यवादSunil Sharmahttps://www.blogger.com/profile/17402147566910805629noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-82113955218067927902007-11-29T20:34:00.000+05:302007-11-29T20:34:00.000+05:30अभी कुछ ही देर पहले शास्त्रीजी की यह टिप्पणी मेल ...अभी कुछ ही देर पहले शास्त्रीजी की यह टिप्पणी मेल में मिली...<BR/>शास्त्रीजी का कहना बिल्कुल सही है, कुछ दिनों पहले हमारी इस विषय पर बात हुई थी तब शास्त्री जी की कई खास बातें पता चली एक तो यह कि वे शुद्ध शाकाहारी हैं और शाकार के पक्षपाती है।<BR/>दूसरी एक बात कि उन्होने मुझसे जैन मासिक पत्रिका जिनवाणी का पोस्टल पता पूछा.. मुझे आश्चर्य हुआ कि आप जिनवाणी के पते से क्या करेंगे तब उन्होने बताया कि वे इस पत्रिका के नियमित पाठक हैं पर कुछ दिनों से उन्हें यह पत्रिका नहीं मिल रही और वे इस पत्रिका के सदस्य बनना चाहते हैं। <BR/>मुझे भी तब लगा था कि ईसाई और जैन पत्रिका... <BR/>धन्यवाद शास्त्री जी भूल सुधरवाने के लियेSagar Chand Naharhttps://www.blogger.com/profile/13049124481931256980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-11868014940157689382007-11-29T20:18:00.000+05:302007-11-29T20:18:00.000+05:30मेरे कनि़ष्ट भ्राता सागर चंद नाहर टिप्पणी की लम्बा...मेरे कनि़ष्ट भ्राता सागर चंद नाहर टिप्पणी की लम्बाई के कारण मेरा जिक्र छोड गये क्योंकि वे एकमात्र चिट्ठाकर हैं जो जानते हैं की ईसाई होते हुए भी मैं घोर शाकाहार का पक्षपाती हूं.Shastri JC Philiphttps://www.blogger.com/profile/00286463947468595377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-82177026386592565502007-11-29T03:48:00.000+05:302007-11-29T03:48:00.000+05:30अनिल भाई , बात पसंद आई। मेरे परिवार के ए बुजुर्ग ए...अनिल भाई , बात पसंद आई। मेरे परिवार के ए बुजुर्ग एक मुस्लिम फकीर को तभी आटा देते थे जब वो अल्लाह के नाम पर मांगता । वो सूफी था और अक्सर मौज में आकर दे दे महादेव बाबा के नाम पर की टेर लगाता था जो बुजुर्गवार को नागवार गुजरता ।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-41166686500850446402007-11-28T21:18:00.000+05:302007-11-28T21:18:00.000+05:30मेरी अनिलजी की इस धारणा से विनम्र सहमति है कि राम ...मेरी अनिलजी की इस धारणा से विनम्र सहमति है कि राम के नाम की टेर, युवा मॉं का स्वस्थ बर्ताव नहीं है- र्धम बेहद निरापद रास्तों से आकर पैठ जाता है और दंगाई न भी बनाए तो भी मूर्तियों को दूध तो पिलाने ही लगता है।<BR/>कॉलेज में पुस्तकालय की पढ़ने की मेज पर सवार होकर नमाज पढ़ते देखा है लोगों को...कहें की क्या फर्क पड़ता है तो सच नहीं होगा।<BR/>अच्छा किया लिख दियामसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-49242928907918146782007-11-28T20:47:00.000+05:302007-11-28T20:47:00.000+05:30kuch betuki, bhadku tippaniyon ka gandaa khel hind...kuch betuki, bhadku tippaniyon ka gandaa khel hindii blog me shuru ho chukaa hai. mei bahut nayi hoo aur samajh nahi paa rahii hoo ki ye kon log hai. inke apne koi blogs nahi hai, <BR/>mei filhaal inhe reject kar rahii hoon.स्वप्नदर्शीhttps://www.blogger.com/profile/15273098014066821195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-78721497106265332632007-11-28T19:40:00.000+05:302007-11-28T19:40:00.000+05:30अनिल भाईआपकी पिछली पोस्ट पर मेरे नाम से की गई टीप ...अनिल भाई<BR/>आपकी पिछली पोस्ट पर मेरे नाम से की गई टीप मेरी नहीं है....कृपया आप अभय और प्रमोद जी और अन्य मित्रों मेरे नाम के आड़ में खेल रहे भाई से सावधान रहें....<BR/>आपका<BR/>बोधिसत्वबोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-51149640473532739572007-11-28T18:42:00.000+05:302007-11-28T18:42:00.000+05:30ज्ञानदत्त जी, कोई अगड़म-बगड़म या बौद्धिकता नहीं है...ज्ञानदत्त जी, कोई अगड़म-बगड़म या बौद्धिकता नहीं है। मैं तो बस यह कहना चाहता था कि लोरियां हमारी परंपरा और संस्कृति का हिस्सा हैं। उन्हें किसी जाप से replace नहीं किया जा सकता। धार्मिक कर्मकांडों और सांस्कृतिक विरासत में फर्क किया जाना चाहिए। मुझे राम या मरा जपने पर कोई आपत्ति नहीं है।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-78310990920374680472007-11-28T18:04:00.000+05:302007-11-28T18:04:00.000+05:30यह क्या अगड़म-बगड़म है? यह कौन सा तरीका है अपनी बौद्...यह क्या अगड़म-बगड़म है? यह कौन सा तरीका है अपनी बौद्धिकता दिखाने का? राम का नाम किसे बरबाद करता है? <BR/>बैंगलूरू के जी. विश्वनाथ जी से मेरी सहमति है।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-87031423004798267072007-11-28T16:45:00.000+05:302007-11-28T16:45:00.000+05:30एक यात्रा वृत्तांत का बहुत गहराई से चित्रण किया है...एक यात्रा वृत्तांत का बहुत गहराई से चित्रण किया है. एक स्वाभाविक सोच है कि हम अंजान व्यक्ति के हाव भाव से उसके चरित्र को जानने को उत्सुक हो जाते हैं. <BR/>महिला अगर शक्ल से भक्तिन टाइप लग रही थीं तो राम कृष्ण का नाम लेने को अटपटा लगने पर भी स्वाभाविक रूप से लेना चाहिए था. कई मुसलमान मित्र हैं जो शुद्ध शाकाहारी हैं. कुर्बानी के दिन कमरे में दुबक जाते हैं.मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-10815939292448604942007-11-28T13:24:00.000+05:302007-11-28T13:24:00.000+05:30हिन्दी चिट्ठाजगत से हाल ही में मेरा परिचय हुआ है।आ...हिन्दी चिट्ठाजगत से हाल ही में मेरा परिचय हुआ है।<BR/>आजकल औरों के चिट्ठे पढ़कर टिप्पणी करना अच्छा लगता है।<BR/>पहली बार आपका ब्लॉग पढ़ रहा हूँ।<BR/>अच्छा लगा।<BR/>मेरी कुछ टिप्पणियाँ:<BR/>आजकल वेश से कुछ पता नहीं चलता।<BR/>मेरे पास भी एक T-Shirt है जिसकी पीठ पर श्री श्री रविशंकर की छवी छपी हुई हैं। उसे पहनकर कभी कभी मैं सुबह सुबह टहलने चलता हूँ। एक बार किसी ने पूछ लिया "क्या आप श्री श्री रविशंकर के अनुयायी हैं?" ऊत्तर में मैं समझाता हूँ कि मैं उनके प्रवचनों को जरूर सुनता हूँ लेकिन मैं उनका सक्रिय शिष्य नहीं हूँ। लोग फ़िर पूछते हैं की मैं इस T-Shirt को क्यों पहनता हूँ? इसका सीधा उत्तर है कि यह T-Shirt मार्केट में मुझे सस्ते में मिला और ठीक से फ़िट होता है! और इस T-shirt के बहाने सुबह टहलते टहलते मेरा आप जैसी जिज्ञासु लोगों से परिचय भी हो जाता है।<BR/><BR/>हिन्दू धर्म में गोहत्या को छोड़कर खाने के मामले में कोई परहेज़ नहीं है। मेरे लिए हिन्दू धर्म का यह लचीलापन ही उसकी शक्ति है और आकर्षण भी है। बचपन में मैं शाकाहारी बन गया क्योंकि मेरे माँ बाप शाकाहारी थे। आज मैं शाकाहारी इस लिए हूँ क्योंकि मुझे इसी में अपनी और समाज की भलाइ नज़र आती है।<BR/><BR/>लेकिन मैं अपने इन विचारों को औरों पर थोंपता नहीं हूँ।<BR/>मेरे दोस्त और कई रेश्तेदार माँस खाते हैं और मुझे उनके साथ बैठकर अपना अलग शाकाहारी खाना खाने में कोई हिचक नहीं होती।<BR/><BR/>जहाँ तक मुसलमानों का सवाल है, मैं जानना चाह्ता हूँ कि क्या मुसलमानों का माँसाहारी होना अनिवार्य है?<BR/>क्या बकरी ईद के अवसर पर अगर कोई मुसलमान माँस नहीं खाता तो क्या उसकी निन्दा की जा सकती है?<BR/>मेरा खयाल है कि ट्रेन में ये दो मुसलमानों ने शाकाहारी भोजन इस लिए की के शायद घर के बाहर का माँसाहारी भोजन जोखिम भरा होता है।<BR/><BR/>आपने मुसलमानों का अपना अलगाव कायम रखने के बारे में बात की। इससे मुझे कोई परेशानी नहीं होती। क्या हमारे सिख भाइ, जैन मुनियों, हरिद्वार और ह्रिषिकेश के साधु संतों भी अपना अलगाव कायम नहीं रखते? <BR/><BR/>आपने लिखा है:<BR/>-----------------<BR/>राम-राम सुनकर बढ़ते हुए इस बच्चे का मानस कल को क्या स्वरूप लेगा, मैं तो इसे सोचकर ही घबरा जाता हूं।<BR/>----------------<BR/>घबराहट?<BR/>लेकिन क्यों?<BR/>बचपन में राम का नाम सुनने से किसी को कभी नुकसान हुआ है?<BR/>बच्चा बड़ा होकर अपना भाग्य स्वयं निश्चय करेगा। इस उम्र में उसे लोरी और राम नाम मे कोई फ़र्क मालूम नहीं पढे़गा। अगर उसकी माँ को राम का नाम जपने में आनन्द मिलता हैं तो जपने दो!<BR/><BR/>लिखते रहिए और कृपया हमारी टिप्पणियों को भी बर्दाश्त कीजिए।<BR/>शुभकामनाएँ।<BR/>G विश्वनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरुG Vishwanathhttps://www.blogger.com/profile/13678760877531272232noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-60386278142840760782007-11-28T12:53:00.000+05:302007-11-28T12:53:00.000+05:30कुर्ते,रिंगटोन और लोरी से शायद आप धार्मिक अभिव्यक्...कुर्ते,रिंगटोन और लोरी से शायद आप धार्मिक अभिव्यक्ति निकालने की बात कर रहे हैं. लेकिन कुर्ते और रिंगटोन से यह साबित नहीं होता कि हम उस धर्म के प्रति आस्था भी रखते हैं. हाँ लोरी जरूर एक धार्मिक संस्कार सा लगता है पर इसमें मुझे तो कुछ गलत नहीं लगता. और अभय जी सहमत क्या राम राम बोलने से कोई बिगड़ जाता है?काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-87452630246467294292007-11-28T12:36:00.000+05:302007-11-28T12:36:00.000+05:30आस्था या धर्म का खान-पान से कोई भी वास्ता नहीं है।...आस्था या धर्म का खान-पान से कोई भी वास्ता नहीं है। ये नितान्त निजी मामला है कि कोई क्या खाना पसन्द करता है।हाँ,रही बात लोरी की जगह राम नाम सुनाने की तो ये कुछ उचित सा नहीं लगता।संस्कार या धुट्टी की तरह राम नाम को बच्चे पर थोपना अनुचित है।anuradha srivastavhttps://www.blogger.com/profile/15152294502770313523noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-78490147024576268762007-11-28T12:30:00.000+05:302007-11-28T12:30:00.000+05:30मुसलमानों में एक संप्रदाय है खोजा जो प्रिंस आगाखा...मुसलमानों में एक संप्रदाय है खोजा जो प्रिंस आगाखान के अनुयायी हैं और नमाज भी पढ़ते हैं और हिन्दू देवी देवताओं की पूजा भी करते हैं। <BR/>गुजरात में मेरे एक मित्र हैं जिनकी किराना की दुकान का नाम है "अंबिका किराना स्टोर"। <BR/>यहाँ हैदराबाद में एक खोजा मित्र का नाम है सुलेमान पंजवाणी और स्टेज पर मुकेश के गाने गाते हैं और अपने आप को सुनील पंजवाणी कहलाया जाना ज्यादा पसंद करते हैं। <BR/>ऐसे भी कई हिन्दू मित्र है जो रमजान में एक दो दिन का रोजा रखते हैं। <BR/>बाकी हिन्दू और मांसाहार पर इतना जरूर कहना चाहूंगा कि मुझे मेरे कई मुस्लिम मित्र चिढ़ाते थे, जब से तुम जैनों ने मांसाहार करना शुरु किया है मटन के भाव बढ़ गये हैं। यह जानते हुए भी कि<BR/>मैं शुद्ध शाकाहारी हूँ, क्यों कि कई जैन बड़े मजे से मांसाहार करने लगे हैं। <BR/>कई नमूने तो ऐसे हैं जो जैन आमलेट खाते हैं, बिना प्याज का आमलेट। यानि लहसुन-प्याज से परहेज और अंडे से कोई तकलीफ नहीं।<BR/>ओह... अभी और कहना है पर टिप्पणी बहुत लम्बी हो गई।Sagar Chand Naharhttps://www.blogger.com/profile/13049124481931256980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-43315872149119291772007-11-28T12:08:00.000+05:302007-11-28T12:08:00.000+05:30राम नाम से कुछ नुकसान होगा.. ऐसा तो नहीं लगता..राम नाम से कुछ नुकसान होगा.. ऐसा तो नहीं लगता..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-12633568203290720322007-11-28T11:51:00.000+05:302007-11-28T11:51:00.000+05:30आपकी पूरी बात शायद पोस्ट मे स्पष्ट नही हो पायी है....आपकी पूरी बात शायद पोस्ट मे स्पष्ट नही हो पायी है. जंहा तक हिंदू या आस्तिक होते हुए भी माँसाहारी होने की बात है तो शायद ये एक संजोग ही है की कल रात आस्था पर एक स्वामीजी का प्रवचन आ रहा था उसमे उन्होंने बताया कि हिंदू धर्म मे भी मांसाहार वर्जित नही है. <BR/>दुसरे दो मुस्लिम मित्रों द्वारा अपने मोबाइल की रिंग अल्ला-हो-अकबर होने से आपके विचलित होने का कोई कारन मेरी समझ मे नही आता. ये तो महज उनकी आस्था और धर्म का मामला है और इससे उनका अलग दिखने कि बात भी ग़लत है.<BR/>तीसरे अगर एक माँ अपने बच्चों को लोरी मे राम नाम सुनाती है तो इससे अच्छी बात क्या होगी. हम पहले भी इतिहास मे पढ़ चुके है कि माएं अपने बच्चों को यही सब सुनाया करती थी.बालकिशनhttps://www.blogger.com/profile/18245891263227015744noreply@blogger.com