tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post3654914712957986543..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: एक भ्रम जिसे पीएम ने चूर-चूर कर दियाअनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-84022026824709723482007-11-30T22:49:00.000+05:302007-11-30T22:49:00.000+05:30अनिलजी, आपका शुक्रिया, इस महत्तवपूर्ण सवाल को उठा...अनिलजी, आपका शुक्रिया, <BR/>इस महत्तवपूर्ण सवाल को उठाने के लिए. मेने अपने ब्लोग पर इसे आगे बढाया है. मुझे लगता है कि प्रधान मंत्री सही कह रहे है, भले ही ये एक राजनैतिक जुमला ही क्यों न हो? बडे ही सचेत तरह से अपने पर्यावरण, और संसाधनों को बचाने के लिए आम लोगो की सक्रिय भागीदारी की ज़रूरत है। सिर्फ सरकार या कानून कुछ नही कर सकता। और उतनी ही सचेत जरूरत नए industries ko develop करने की है, और ये भी सोचने की, कि किस कीमत पर क्या मिल रहा है ?।<BR/><BR/>दूसरा मुझे लगता है, की भारत की पूरी राजनीती, जिसमे मीडिया भी शामिल है, और आम आदमी भी, हर बात मे सरकार पर गरियाना हो गया है, या फिर मध्यवर्ग पर। एक नागरिक की व्यक्तीगत जिम्मेदारी उठाने या फिर हर एक नागरिक को शक्षम बनाने की कोई सोच, कोई प्रक्रिया कही नही दिखती। अपनी ज़िम्मेदारी से हर कोई भागना चाहता है। कुछ चीजे सभी बिना सरकारी मदद के कर सकते है----स्वप्नदर्शीhttps://www.blogger.com/profile/15273098014066821195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-50370596673037205322007-11-30T22:22:00.000+05:302007-11-30T22:22:00.000+05:30प्राकृतिक संसाधन के बारे में प्रधानमन्त्री सही हो ...प्राकृतिक संसाधन के बारे में प्रधानमन्त्री सही हो सकते हैं। पर अधिक महत्वपूर्ण है मानव-सन्साधन। इज्राइल बिना प्राकृतिक सन्साधन का देश है पर अत्यन्त विकसित/शक्तिशाली है।<BR/>मै उत्तराखण्ड के बारे में उसके उत्तरप्रदेश से अलग होने पर सोचता था कि अगर उसे ह्यूमन रिसोर्सेज की पूरी फ़्रीडम हो तो वह पूरे भारत से अधिक शक्तिशाली बन सकता है - यद्यपि उसके पास नेचुरल रिसोर्सेज बहुत नहीं हैं।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-35764160090131701022007-11-30T19:10:00.000+05:302007-11-30T19:10:00.000+05:30सबसे बड़ा भ्रम तो भारतीयों को यह है कि मनमोहन सिंह ...सबसे बड़ा भ्रम तो भारतीयों को यह है कि मनमोहन सिंह अर्थशास्त्री हैं. अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री कैसे ली जाती है और रिजर्व बैंक में नौकरी कैसे की जाती है, यह आप भी जानते हैं. अपने मूल रूप में मनमोहन अर्थशास्त्री भी वैसे ही हैं जैसे की राजनेता. सब कुछ कृपा आधारित. चूंकि यह एक ऐसे व्यक्ति है जिनका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है इसलिए यह हमेशा सिर्फ कृपाजीवी रहे है. कभी नरसिंह राव तो कभी सोनिया का और कभी जॉर्ज बुश की कृपा. जैसे भगत सिंह और आजाद जैसे लोग देश के बच्चे-बच्चे के मन में देश के प्रति स्वाभिमान और आत्मसम्मान का भाव भरना चाहते थे वैसे ही तथाकथित चुनावी वामपंथी और कांग्रेसी हर चीज के प्रति हीन भावना भर देना चाहते हैं. अब कल को ये कहें कि भारत देश ही नहीं है, तो क्या हम उसे मान लेंगे?इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-34246318186265101592007-11-30T18:32:00.000+05:302007-11-30T18:32:00.000+05:30प्राकृतिक संसाधनों का बे हिसाब दोहन ही प्रधानमंत्र...प्राकृतिक संसाधनों का बे हिसाब दोहन ही प्रधानमंत्री<BR/>के चिंतायुक्त बयान का कारण हो सकता है । हमारी वन संपदा और वन्य जीवों का लगातार ह्रास किसी से छुपा नही है। सोने की चिडिया कहे जाने वाले इस देश में सोना और हीरे तो कब के खत्म हैं। और भी खनिज़ कम होते जा रहे हैं ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.com