tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post2456060296995672810..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: गुरुजी आशीष दें, आप से जिरह ही मेरी दक्षिणा हैअनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-10403965208630999912010-03-08T12:22:29.210+05:302010-03-08T12:22:29.210+05:30Yaar konse hindu shastra me likha h ki BHOO(DHARTI...Yaar konse hindu shastra me likha h ki BHOO(DHARTI) CAPTI H, SHASTRO ME TO GOL DHARTI BATANE K LIYE "BHOOGOL"<br />shabd hi ka prayog dekha h hamne to aaj takAmit Sharmahttps://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-29349781855422968102008-02-28T16:38:00.000+05:302008-02-28T16:38:00.000+05:30भैय्या चंद्रभूषण जी ! आपको संसार की कितनी भाषा के...भैय्या चंद्रभूषण जी ! आपको संसार की कितनी भाषा के कितने व्याकरण का ज्ञान है ? वैसे अब और अधिक न भटकें तो 'अंग्रेजी' में ही पढ़ लें ,मन का उद्वेग कुछ कम हो जायेगा !दिवाकर प्रताप सिंहhttps://www.blogger.com/profile/06302009569112820477noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-26589639990104312792008-02-28T16:16:00.000+05:302008-02-28T16:16:00.000+05:30प्यारे भाई, संसार की किस भाषा के किस व्याकरण से यह...प्यारे भाई, संसार की किस भाषा के किस व्याकरण से यह सूटर होगा, बता दें तो कहीं से खोज कर पढ़ लूं।चंद्रभूषणhttps://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-24496465708634357882008-02-27T23:15:00.000+05:302008-02-27T23:15:00.000+05:30चंद्रभूषण जी!Suitur का उच्चारण 'सूटर' होगा, सुइतुर...चंद्रभूषण जी!Suitur का उच्चारण 'सूटर' होगा, सुइतुर नहीं ! ... और अभी के तनावों और बिखरावों में भी मनुष्य सुगठित आत्मन् की स्थायी अनुभूति कर सकता है! बस ईमानदारी से प्रयास होना चाहिये तथा अनवरत होना चाहिये।दिवाकर प्रताप सिंहhttps://www.blogger.com/profile/06302009569112820477noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-725035334763249662008-02-27T23:12:00.000+05:302008-02-27T23:12:00.000+05:30This comment has been removed by the author.दिवाकर प्रताप सिंहhttps://www.blogger.com/profile/06302009569112820477noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-24970272318078930542008-02-27T21:54:00.000+05:302008-02-27T21:54:00.000+05:30अनिल जी - गूढ़ बहस है - एक "यावत जीवे सुखं जीवे ऋण...अनिल जी - गूढ़ बहस है - एक "यावत जीवे सुखं जीवे ऋणं कृत्वा घृतं पीवे - भस्मिभूतस्य देह्स्यौ पुनरागमन कुतौ ? " वाला पक्ष भी हैAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/08624620626295874696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-52235283386538192702008-02-27T17:53:00.000+05:302008-02-27T17:53:00.000+05:30अभी तो सुइतुर जी और अनिल जी के शब्दों में व्यक्त ह...अभी तो सुइतुर जी और अनिल जी के शब्दों में व्यक्त हो रही यह बहस दो हजार साल पुरानी लग रही है। आत्मन् सुदूर उपनिषदों से निकला शब्द है, जिसे तार्किक तीक्ष्णता योगवाशिष्ठ में और दार्शनिक पूर्णता आचार्य शंकर के काम में प्राप्त होती है। आचार्य शर्मा द्वारा इतनी पुरानी बात के दोहराव में नयेपन का पहलू सिर्फ उनके व्याख्यानों में आए अधुनातन संदर्भों में ही खोजा जा सकता है। <BR/><BR/>क्या अभी के तनावों और बिखरावों में मनुष्य सुगठित आत्मन् की किसी स्थायी अनुभूति को जी सकता है? आखिर वजह क्या है कि यह अनुभूति व्याख्यान पंडालों से निकलते ही जाती रहती है? <BR/><BR/>दूसरी तरफ चेतना की पदार्थवादी व्याख्या भी सवालों से परे नहीं है। इवोल्यूशन जैसी कुछ अपुष्ट प्रस्थापनाओं के आधार पर किसी जीव के होने या न होने की आधी-अधूरी वस्तुगत व्याख्या जरूर हो जाती है लेकिन आत्मगत धरातल पर इसके कोई मायने नहीं होते। <BR/><BR/>क्या ये दोनों धाराएं ईमानदारी से अपने सामने जीव-जगत के कष्टों से जुड़े कुछ नए सवाल रखने, अपनी बहस का समाधान होने के लिए कुछ और सदियों तक इंतजार करने और इस बीच मनुष्य की आम चिंताओं में साझीदार होने, उनके हल में मददगार होने का कष्ट करेंगी?चंद्रभूषणhttps://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-85033979827327935712008-02-27T15:37:00.000+05:302008-02-27T15:37:00.000+05:30अनिल जी, समय की कमी है फिर जैसे ही यथेष्ट समय मिला...अनिल जी, समय की कमी है फिर जैसे ही यथेष्ट समय मिला तो आपकी इच्छापूर्ति का प्रयास करुगा!दिवाकर प्रताप सिंहhttps://www.blogger.com/profile/06302009569112820477noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-45491930081270766512008-02-27T15:11:00.000+05:302008-02-27T15:11:00.000+05:30suiter जी, आपने बड़ी गंभीर बात कही है। इस पर आप अप...suiter जी, आपने बड़ी गंभीर बात कही है। इस पर आप अपने ब्लॉग पर विस्तार से लिखें तो हम सभी का फायदा होगा। मेरा भी मंथन आगे बढ़ पाएगा।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-74211437012577452732008-02-27T14:42:00.000+05:302008-02-27T14:42:00.000+05:30अनिल जी ! स्थिरता या गतिशीलता तो सदैव सापेक्ष होती...अनिल जी ! स्थिरता या गतिशीलता तो सदैव सापेक्ष होती, अब किसके सापेक्ष पृथ्वी के ,सूर्य के या फिर किसी गैलेक्सी के... फिर यह आवश्यक भी नहीं कि जो आप मानें वही सब मान लें।आप तो अभी चतुर्थ-आयाम तक पहुँचे मगर ऋषियों नें षट्-आयाम देख लिये थे। <BR/>कोशिका का जन्म-मृत्यु या बनने-बिगड़ने का सिलसिला हमें "देह" से अलग एक बार में नहीं कर पाता जबकी "आत्मा" कर देती है , मेरा आशय तो आप समझ ही गये होंगे। इस विषय पर आचार्य श्रीराम शर्मा ही सही हैं आप अनावश्यक रूप से भ्रमित हो गए।दिवाकर प्रताप सिंहhttps://www.blogger.com/profile/06302009569112820477noreply@blogger.com