tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post7698707344226510373..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: राम बोलने से बन क्या जाएगा?अनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-65182159013073113122007-11-29T20:24:00.000+05:302007-11-29T20:24:00.000+05:30कुछ बातें इसी तरह मेरे मन में भी उठती रही हैं कि क...कुछ बातें इसी तरह मेरे मन में भी उठती रही हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि तुलसीदासजी या वेदव्यासजी उस जमाने के बड़े लेखक रहे हों और जिस तरह आज वेदप्रकाश शर्मा आदि उपन्यास कारों के उपन्यास छपते हैं वैसे ही उस जमाने में रामाय़ण- महाभारत बड़े साहित्य रहे हों!! इस प्रश्न का जवाब बहुत ढूंढ़ा अब तक नहीं मिला... <BR/>नाथद्वारा वाली घटना मेरे साथ भी हुई है<BR/><BR/>कई बार बात चलती है कि हिन्दी चिट्ठाकारों में स्वस्थ बहस करने की अक्ल नहीं है पर पिछले दिनों काकेशजी के ब्लॉग पर और अब अनिल सर के ब्लोग पर कल वाली पोस्ट में जिस तरह की स्वस्थ बहस हुई वह काबिले तारीफ है।<BR/>लगता है हम बचपना छोड़ने लगे हैं।Sagar Chand Naharhttps://www.blogger.com/profile/13049124481931256980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-60938930521540012172007-11-29T18:04:00.000+05:302007-11-29T18:04:00.000+05:30मेहमान ब्लॉगर के रूप में आपका एंट्री लेना बहुत अच्...मेहमान ब्लॉगर के रूप में आपका एंट्री लेना बहुत अच्छा लगा। आशा है, नियमित लिखेंगी। बातों को स्पष्टता और तार्किकता से रखा है आपने। <BR/><BR/>आपने कहा है तो धर्म और आस्था के सवाल पर अपनी कुछ अनुभूतियों के माध्यम से लिखूंगा, अलग पोस्ट के रूप में।Srijan Shilpihttps://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-40243004542290431732007-11-29T14:35:00.000+05:302007-11-29T14:35:00.000+05:30सर, आपके ç...सर, आपके इतना कह देने मात्र से ही सम्पूर्ण प्रसंग याददाश्त की अन्तिम परत तक से हट गया है. मैं आभारी हूँ जो आपने इस नाचीज के बारे मे कुछ सोच और लिखा.बालकिशनhttps://www.blogger.com/profile/18245891263227015744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-2262647663577521912007-11-29T12:42:00.000+05:302007-11-29T12:42:00.000+05:30@बंधुवर बाल किशन,नाराज़ न हों.. गुस्साहट में ग़लत...@बंधुवर बाल किशन,<BR/>नाराज़ न हों.. गुस्साहट में ग़लती और बालपना मुझसे ज़रूर हुई, झोंक में आपका नाम भी लिपटा गया, क्षमा चाहता हूं. मेरे गुस्से पर अपनी तिक्तता को लात लगाके प्रसंग भूल जायें..azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-41017554182546240332007-11-29T12:30:00.000+05:302007-11-29T12:30:00.000+05:30मेरे मन म...मेरे मन मे आपके लिए और प्रमोद जी लिए बहुत सम्मान है. आपलोग अगर एक बार कह भी दे कि " बालकिशन तुम्हे हमारी पोस्ट पढने और फ़िर टिपण्णी करने की कोई आवश्यकता नही है" तो फ़िर मैं नही जाऊंगा आपके ब्लॉग पर .बालकिशनhttps://www.blogger.com/profile/18245891263227015744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-88205031223776410122007-11-29T12:27:00.000+05:302007-11-29T12:27:00.000+05:30इस पोस्ट...इस पोस्ट पर मैं अभय जी बात से पूरी तरह सहमत हूँ. धर्म और आस्था के ऊपर अपने विचार विस्तार से पोस्ट के माध्यम से व्यक्त करूँगा.<BR/>अनिल सर लेकिन ये दो-तीन दिनों से आपकी पोस्ट पर टिप्पानियों के माध्यम से व्यक्ति विशेष के बारे मे जो कुछ कहा जा रहा है वह अनुचित है. आप एक विषय पर पोस्ट लिखते है तो जो भी टिपण्णी करेंगे वो आपसे सहमत भी हो सकते है और असहमत भी लेकिन असहमति के कारण उनके विरुद्ध फतवा जारी करना कंहा तक जायज़ है?<BR/>सन्दर्भ-<BR/>"Pramod Singh said... <BR/>अनिल, आपको जो लिखना हो लिखें मगर खामख़ा अपना दु:ख बढ़ायें, समझदारी की बात नहीं.. इस सिलसिले में मेरा एक छोटा सुझाव ये है कि राघव आलोक, स्�वप्रेम तिवारी और बाल किशन जेसे घेटा नामों व पहचानवालों की टिप्�पणी पाने पर उसे बिना पढ़े सिंपली डिलीट कर दें ओर हाज़मा दुरुस्�त रखें.. यह निजी सलाह है, सो इसे टिप्�पणी में चढ़ाये नहीं..<BR/>27 November, 2007 1:39 PM "बालकिशनhttps://www.blogger.com/profile/18245891263227015744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-13323730240345868912007-11-29T11:32:00.000+05:302007-11-29T11:32:00.000+05:30यह ऐसा विषय विषय है जिस पर लिखने को हजार शब्द है औ...यह ऐसा विषय विषय है जिस पर लिखने को हजार शब्द है और लिखने बैठो तो समझ में नहीं आता कहाँ से शुरू करें. <BR/><BR/>धर्म का अर्थ मन को निर्मल बनाना होता होगा, जो ईश्वर पर आस्था से भी हो सकता है और समझ के उच्च पायदान पर उसे नकार कर भी.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-21529309232956210872007-11-29T11:25:00.000+05:302007-11-29T11:25:00.000+05:30मैं अनिलजी के लेख पर ही लिखने वाला था। मौका नहीं म...मैं अनिलजी के लेख पर ही लिखने वाला था। मौका नहीं मिला। मुझे लगता है कि ट्रेन में सवार तीनों ही यात्री हिंदू धर्म के लचीलेपन की व्याख्या खुद ही कर रहे थे। मुसलमान भाई की अल्लाह हो अकबर की रिंगटोन भी उसी में शामिल है। <BR/>आपने भी लिखा है 'राम का नाम लेना धर्म है. पर स्वस्थ रहना आज के धर्म में शामिल नहीं. जबकि एकादशी के उपवास के पीछे बहुत बड़ा विज्ञान था कि हर 15वें दिन आप थोड़ा कम खाकर पेट को आराम दो!'<BR/>हिंदू धर्म में आस्था, धर्म के साथ समाज जीवन कुछ इसी तरह जुड़ा था। जैसा आपने एक उदाहरण से बताया। सवाल यही है कि इस धर्म को देखने का नजरिया धीरे-धीरे आप किस तरह बदलते जाते हैं। फिर कुछ दिन बाद हम उसी में से कुछ निकालकर बहस शुरू करते है, शायद खुद को ही समझाने के लिए। वैसे अनिलजी ने सचमुच बहुत अच्छी बहस शुरू की है जितने लोग शामिल हो, अच्छा होगा। <BR/>वैसे जहां तक सवाल इस बात का है कि राम बोलने से क्या बन जाएगा तो, मेरा सवाल ये है कि आस्था पर हमले के बिना भी तो बात बन सकती है। <BR/>http://batangad.blogspot.com/2007/10/blog-post_03.htmlBatangadhttps://www.blogger.com/profile/08704724609304463345noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-2136044423815818512007-11-29T10:43:00.000+05:302007-11-29T10:43:00.000+05:30"...आप सबसे निवेदन है कि आपके हिसाब से धर्म क्या ह...<B>"...आप सबसे निवेदन है कि आपके हिसाब से धर्म क्या है, आस्था क्या है ज़रूर बताएं. ..."</B><BR/><BR/>वस्तुतः धर्म और आस्था अज्ञान का ही एक रूप है. अरस्तू से लेकर उन्मुक्त (जी हाँ, हमारे बीच के एक अत्यंत ज्ञानी चिट्ठाकार)तक जिन्होंने धर्म को एक तरह से नकारने की बातें की हैं, तो इसके पीछे उनका संदर्भित ज्ञान ही था/है. किसी ने कहा भी है, एक की आस्था दूसरे के लिए उपहास ही होता है.<BR/><BR/>बचपन में मैं भी भगवान् को साक्षात अनुभव करता था. आज शून्य और उपहास जैसा ही अनुभव होता है. शायद थोड़ा ज्ञान मिल गया है मुझे भी...:)रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-44695830078582851962007-11-29T10:16:00.000+05:302007-11-29T10:16:00.000+05:30बने चाहे कुछ न पर बिगड़ेगा भी नहीं.. व्यक्तिगत आस्थ...बने चाहे कुछ न पर बिगड़ेगा भी नहीं.. व्यक्तिगत आस्था से..। मगर जब व्यक्तिगत आस्था को एक साम्प्रदायिक डण्डे से हाँक कर एक राजनैतिक झण्डे के नीचे तपाया जाता है तब बिगड़ता है.. बहुत कुछ बिगड़ता है..<BR/><BR/>आस्था तो एक प्रकार का सम्बल है.. जो बहुत मजबूत है उसे नहीं चाहिये.. पर सभी मनुष्य कभी न कभी कमज़ोर होते ही हैं..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.com