tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post7344306257787303277..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: चेहरे मिलाना पुराना शगल है अपुन काअनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-87245360407404742592007-09-22T16:21:00.000+05:302007-09-22T16:21:00.000+05:30मेरी भी आदत रही है चेहरे मिलाने की, अक्सर लोगों के...मेरी भी आदत रही है चेहरे मिलाने की, अक्सर लोगों के चेहरे फिल्मी कलाकारों से मिलाने की। कई बार तो लोगों को बताने की तीव्र इच्छा होती है कि आप का चेहरा अमुक अभिनेता/अभिनेत्री से मिलता है।ePandithttps://www.blogger.com/profile/15264688244278112743noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-36533491486547989282007-09-19T23:32:00.000+05:302007-09-19T23:32:00.000+05:30अनिल भाईये क्या बीमारी लगवा दी? अब जो सामने दिख रह...अनिल भाई<BR/><BR/>ये क्या बीमारी लगवा दी? अब जो सामने दिख रहा है उसी में कुछ और नजर आ रहा है. :)<BR/><BR/>एक तो बिल्कुल बंदर दिखा अभी अभी.<BR/><BR/>अब देखो शाम को क्या होता है, जब घर जाकर शीशा देखूंगा. हम्म!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-82896452291339154012007-09-19T19:46:00.000+05:302007-09-19T19:46:00.000+05:30यह बीमारी मुझे भी है, मुझे भी हर चेहरे को बिगाड़कर...यह बीमारी मुझे भी है, मुझे भी हर चेहरे को बिगाड़कर देखने की आदत है. मेरे दफ़्तर में एक दुबली लड़की काम करती है जो मुझे बकरी जैसी लगती है, एक साहब की दोनों आँखे सूजी रहती हैं और वे मुझे हमेशा मेढ़क की याद दिलाते हैं. लेकिन एक बेईमानी हमेशा हो जाती है, आईने में अपना चेहरा देखता हूँ तो कोई जानवर नज़र नहीं आता. आप लोग ग़ौर से देखें तो बता सकते हैं, कुत्ता, गधा...या कुछ और...अनामदासhttps://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-52761511713482440702007-09-19T16:55:00.000+05:302007-09-19T16:55:00.000+05:30बहुत बढ़िय विषय ढंढा रघु भाई..मज़ा आया पढ़कर आपका ...बहुत बढ़िय विषय ढंढा रघु भाई..मज़ा आया पढ़कर <BR/>आपका चेहरा हमें फिल्म एक्टर महिपाल की याद दिलाता है। आधा है चंद्रमा.....अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-23251606759863900272007-09-19T15:19:00.000+05:302007-09-19T15:19:00.000+05:30फुरसतिया जी की सिर्फ फोटो ही देखी है ,आपकी रपट ( म...फुरसतिया जी की सिर्फ फोटो ही देखी है ,आपकी रपट ( मीट वाली) और दिल्ली की रपट (मीट वाली) में. किंतु लगता है कि अब मिलना पडेगा, क्योंकि आपके मुताबिक उनका चेहरा/ हाव-भाव/ आदि वीरेन्द्र सेंगर से मिलता है. 1987 से परिचय रहा है वीरेन्द्र सेंगर से. राजनीति और बाद में जब पत्रकारिता से जुडा रहा, तो रोज़ ही भेंट होती रहती थी.2002 से ,जब से पूर्णकालिक अध्यापन में आ गया, मिल नही सका हूं.<BR/><BR/>वैसे बच्पन में मुझे शौक था ,एक जैसी शकलें ढूंढने का. <BR/><BR/>हां, जौर्ज बुश की शक्ल में कोई जानवर नज़र आया क्या ?<BR/><BR/>aur...soniya gandhi me^ bhee kuchh DhoonDhiye ?डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedihttps://www.blogger.com/profile/01678807832082770534noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-80751131343347866802007-09-19T14:31:00.000+05:302007-09-19T14:31:00.000+05:30अच्छा! तो यह बात है . तभी हमारी शक्ल डॉयचे वेले के...अच्छा! तो यह बात है . तभी हमारी शक्ल डॉयचे वेले के उज्ज्वल भट्टाचार्य से मिला रहे थे . देखनी पड़ेगी उनकी तस्वीर .<BR/><BR/>इस फ़ील्ड में आपके साथ-साथ ज्ञान जी का रडार भी सही सिग्नल पकड़ रहा है .(संदर्भ:उनकी टिप्पणी)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-7709233106009240212007-09-19T12:43:00.000+05:302007-09-19T12:43:00.000+05:30कैरीकेचर्स बढिया बनेंगे ।कैरीकेचर्स बढिया बनेंगे ।Pratyakshahttps://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-16069895757923204462007-09-19T10:47:00.000+05:302007-09-19T10:47:00.000+05:30आपकी तरह यह शौक अपन को भी रहा है.लेकिन जिस गहराई स...आपकी तरह यह शौक अपन को भी रहा है.लेकिन जिस गहराई से आप देखते हैं वैसा अपन नहीं देखते. आप उपन्यासकार बन ही जाइये अब.काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-54091787026675864892007-09-19T10:39:00.000+05:302007-09-19T10:39:00.000+05:30मैं फिर आया. जब रघुराज जी ने प्रधान मंत्रियों की ब...मैं फिर आया. जब रघुराज जी ने प्रधान मंत्रियों की बात की है तो अपने मन की भी जोड़ दूं - गुजराल बकरा लगते हैं और देवगौड़ा काइयां सूदखोर.Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-87465845696910365932007-09-19T10:19:00.000+05:302007-09-19T10:19:00.000+05:30बहुत सही । अपुन का भी यही शौक़ रहा है भाई । कितने ...बहुत सही । <BR/>अपुन का भी यही शौक़ रहा है भाई । <BR/>कितने कितने 'जानवरों' को जीन्स टी शर्ट पहने शहर में घूमते देखा है अपुन ने ।<BR/>इसी तरह कितने कितने इंसानों के हमशक्ल दूसरे शहरों में पाए जाते हैं ।<BR/>कभी पीठ की ओर से देखो और पास जाकर कंधे पर हाथ रखो तो सामने वाला मुड़ जाता है<BR/>और अपन चक्कर में पड़ जाते हैं कि अरे ये तो वो नहीं है, जो हमने सोच रखा है ।Yunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-82355440465447179282007-09-19T09:03:00.000+05:302007-09-19T09:03:00.000+05:30नहीं, राजीव भाई। लेख कहीं से भी सीरियस टाइप का नही...नहीं, राजीव भाई। लेख कहीं से भी सीरियस टाइप का नहीं था। मैंने तो अंदर बैठे उस शांत शरारती बच्चे की कुछ फितरत दिखाई जो शायद हम सभी के अंदर थोड़ी-बहुत मौजूद है।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-26939480219308280742007-09-19T08:53:00.000+05:302007-09-19T08:53:00.000+05:30लेख तो सीरियस टाईप का था क्या?हम तो उत्तरार्ध के भ...लेख तो सीरियस टाईप का था क्या?<BR/><BR/><BR/>हम तो उत्तरार्ध के भाग को मारे हँसी के पूरा पढ़ ही न सके कि कहीँ यही लत लग गयी तो? और गधे, उल्लू, वगैरह से आस-पास के लोगों का... ना बाबा.. <BR/><BR/>और फ़िर कभी भी अजायबघर जाना तो दूभर हो जायेगा!Rajeev (राजीव)https://www.blogger.com/profile/04166822013817540220noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-8810392313880220132007-09-19T08:52:00.000+05:302007-09-19T08:52:00.000+05:30हास्य अलग कर दें; तो भी यह तो तय है कि चेहरा अन्दर...हास्य अलग कर दें; तो भी यह तो तय है कि चेहरा अन्दर की बात चेहरे पर बताता है - यह अन्दर की बात कभी चेहरे वाले के अन्दर की होती है तो कभी देखने वाले के अन्दर की!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.com