tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post6519805895041832528..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: महीने में 25000 तो क्रीमीलेयर, 50000 तो गरीब!!!अनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-26995195258879504782008-04-22T14:56:00.000+05:302008-04-22T14:56:00.000+05:30इस पोस्ट ने तो असली सूरते हाल हमारे सामने खोल के ...इस पोस्ट ने तो असली सूरते हाल हमारे सामने खोल के रख दिया है...अभय सही कह रहे हैं...वाकई ये जनता के प्रतिनिधि नहीं शुद्ध रूप से दलाल और गद्दार है...पर कैसे बदलेगी ये स्थिति?VIMAL VERMAhttps://www.blogger.com/profile/13683741615028253101noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-65912897892109240702008-04-22T12:14:00.000+05:302008-04-22T12:14:00.000+05:30मेरा सवाल ये है कि सरकार किस हक से एक विद्यार्थी क...मेरा सवाल ये है कि सरकार किस हक से एक विद्यार्थी की पढ़ाई को सब्सिडी देकर उसे निजी कम्पनी ्का नौकर होने के लिए खुला छोड़ देती है.. वो भी देश से बाहर कहीं.. एक तरह से देखें तो सबसिडी तो उस निजी कम्पनी को मिली ना?<BR/>जबकि देश में प्राथमिक शिक्षा अफ़्रीकी देशों से भी बुरे हाल में हैं.. और ये लोग अपने को जनता का प्रतिनिधि कहते हैं.. शुद्ध दलाल और गद्दार हैं ये नेता!अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-29710709853818898542008-04-22T06:33:00.000+05:302008-04-22T06:33:00.000+05:30बढ़िया पोस्ट। पर स्वायत्तता से छेड़ छाड़ टेक्स पेयर क...बढ़िया पोस्ट। पर स्वायत्तता से छेड़ छाड़ टेक्स पेयर के पैसे के नाम पर मत करिये। टेक्स पेयर के पैसे का प्लण्डर बहुत जगह हो रहा है - उसकी बात कीजिये। बेहतर शिक्षा के साथ सरकारी नियंत्रण की लीद मिलाना उचित नहीं है।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-56094515523933248262008-04-21T23:55:00.001+05:302008-04-21T23:55:00.001+05:30जब सारे समाज में कौन कितने डिजिट में कमाई कर रहा ह...जब सारे समाज में कौन कितने डिजिट में कमाई कर रहा है की मानसिकता का बोलबाला है, तो आईआईएम जैसी संस्थाएं अपनी विषिष्टता बनाये रखने के लिए फ़ीस ऊंची रखती हैं तो शायद बहुत ताज्जुब होना नहीं चाहिए. लेकिन यह मसला सचमुच स्क्रूटिनी मांगता है कि सार्वजनिक शिक्षा का किस तरह का प्रतिशत ऐसी, व अन्य उच्च शिक्षण संस्थाओं को जाता है. क्योंकि इस ठाठशाही शिक्षा के बाद ज़्यादा बच्चे देश की सेवा में तो लगते नहीं, अपनी सेवा में विदेश जाते हैं. शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़े घपले हैं, मित्र, पता नहीं वे दुरुस्त कब होंगे..azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-40795247335640145292008-04-21T23:55:00.000+05:302008-04-21T23:55:00.000+05:30जब सारे समाज में कौन कितने डिजिट में कमाई कर रहा ह...जब सारे समाज में कौन कितने डिजिट में कमाई कर रहा है की मानसिकता का बोलबाला है, तो आईआईएम जैसी संस्थाएं अपनी विषिष्टता बनाये रखने के लिए फ़ीस ऊंची रखती हैं तो शायद बहुत ताज्जुब होना नहीं चाहिए. लेकिन यह मसला सचमुच स्क्रूटिनी मांगता है कि सार्वजनिक शिक्षा का किस तरह का प्रतिशत ऐसी, व अन्य उच्च शिक्षण संस्थाओं को जाता है. क्योंकि इस ठाठशाही शिक्षा के बाद ज़्यादा बच्चे देश की सेवा में तो लगते नहीं, अपनी सेवा में विदेश जाते हैं. शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़े घपले हैं, मित्र, पता नहीं वे दुरुस्त कब होंगे..azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-20059525804531294572008-04-21T22:41:00.000+05:302008-04-21T22:41:00.000+05:30कितने ढेर सारे सवाल खड़े हो जाते हैं लेकिन किसे परव...कितने ढेर सारे सवाल खड़े हो जाते हैं लेकिन किसे परवाह है क्योंकि जवाब देना ही नहीं है,हम तो सरकार हैं...डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava)https://www.blogger.com/profile/13368132639758320994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-14791409195876701642008-04-21T21:45:00.000+05:302008-04-21T21:45:00.000+05:30"फिर आप ऐसी कौन-सी पढ़ाई पढ़ाते हैं कि हर छात्र पर..."फिर आप ऐसी कौन-सी पढ़ाई पढ़ाते हैं कि हर छात्र पर आपको महीने में 46,000 रुपए खर्च करने पड़ते हैं? आप यह भी तो बताएं कि हर साल आपको केंद्र सरकार यानी जनता के टैक्स से कितने करोड़ मिलते हैं? ज़रूरी है कि उच्च शिक्षण संस्थानों की स्वायत्ता बरकरार रखी जाए।" <BR/><BR/>महीने में ४६,००० रूपये, यानि दो साल में १२ लाख के आस पास मेरे लिहास से तो कोई ज्यादा खर्च नहीं है । जब सबको पता है कि IIM में घुसने के बाद अच्छी नौकरी मिलेगी तो अच्छी फ़ीस वसूलने में कोई बुराई नहीं है । कोई एक उदाहरण बताईये जिसमें छात्र का IIM में दाखिला हुआ हो और फ़ीस के चलते उसने दाखिला न लिया हो ।<BR/><BR/>IIM को साल भर में उतनी सरकारी सहायता मिली थी जितनी भारतीय बिज्ञान संसथान (IISc) के पुस्तकालय का एक साल का बजट है (ये २००२-२००४ के बीच की बात है)। लेकिन आज भी हालत वही है ।Neeraj Rohillahttps://www.blogger.com/profile/09102995063546810043noreply@blogger.com