tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post5898192528435604940..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: कुत्ते का ब्रह्मज्ञानअनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-20092996349516896702007-10-26T17:07:00.000+05:302007-10-26T17:07:00.000+05:30अभिव्यक्ति जी, मैं आपकी भावनाओं और पारखी दृष्टि की...अभिव्यक्ति जी, मैं आपकी भावनाओं और पारखी दृष्टि की कद्र करता हूं। लेकिन जितना है उतना ही देखिए। ऐसा संभव नहीं हो सकता कि उपनिषद की कोई कथा सदियों पहले ही लिख इसलिए दी गई थी कि साल 2007 में अनिल रघुराज नाम का कोई शख्स अपनी भडांस निकालेगा तो इस कहानी का शब्दश: इस्तेमाल कर सकता है। मुझे भडांस निकालनी होगी तो मेरे पास बहुत सारा कुछ है कहने के लिए। क्यों आप लोग छेड़ते जा रहे हैं ताकि मैं संयम तोड़कर अनाप-शनाप लिखने पर उतारू हो जाऊं, जिससे फायदा किसी का नहीं होगा, ताली बजाकर मजा लेने वालों की मौज हो जाएगी।<BR/>वैसे, खरी-खोटी का टैग आप जैसी संशयात्माओं को परखने के लिए ही लगाया था, सायास।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-22385371154038314802007-10-26T16:35:00.000+05:302007-10-26T16:35:00.000+05:30अनिल जी आपने यह कहानी इस टिप्पणी के साथ शुरु की है...अनिल जी आपने यह कहानी इस टिप्पणी के साथ शुरु की है कि सुबह-सुबह फालतू बहस में समय क्यो खोटी किया जाय.. पर आपने इसे अपने खरी-खोटी वाले लेबल में भी डाला.....क्यों !!<BR/>मैं आप लोगों की तरह विचारों की मर्मज्ञ नहीं हूं एक विद्यार्थी की तरह हूं और सीखने समझने की कोशिश कर रही हूं। मैंने अपने विद्यार्थी जीवन में 'आइसा' में सक्रिय भागीदारी की है पर अब कुछ निजि कारणों के चलते ऐसा नहीं कर पा रही हूं। वहां मैने देखा है कि वैचारिक रुप से मजबूत लोग बीच रास्ते से अपने निजि कारणों के चलते भाग खडे नहीं हुए हैं बल्कि दोनों ही स्तर पर (वैचारिक औऱ समाजिक)पर ज्यादा समझदारी के साथ डटे रहे हैं। कुछ जो समझ को उम्र और परिवार का मोहताज मानते हैं वे उससे अलग होने के बाद अपने अलगाव को सही साबित करने के लिए उन्ही सपनों का मजाक उडाते हैं जिसे कभी उन्होने भी देखा था। मतभेद होना एक बात है पर कहानी के बहाने भडास निकालना.....आप खुद ही अनुमान लगा लिजिए.....।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-29378720728796095312007-10-26T16:00:00.000+05:302007-10-26T16:00:00.000+05:30मन कर रहा है कि यह किताब मिल जाये और इसे पूरी पढ़ प...मन कर रहा है कि यह किताब मिल जाये और इसे पूरी पढ़ पाऊँ.<BR/><BR/>उपनिषदों की कहानियां-प्रयास करुँगा. आपका आभार यह अंश प्रस्तुत करने का.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-23052041244618931562007-10-26T14:42:00.000+05:302007-10-26T14:42:00.000+05:30यह किताब मेरे पास भी थी. अभी कुछ कहानिया ही पढ़ी थ...यह किताब मेरे पास भी थी. अभी कुछ कहानिया ही पढ़ी थी कि कोई ले गया. अच्छी किताब के बारे में याद दिलाने के लिए धन्यवाद. इसे फिर से खरीदूगां.DesignFlutehttps://www.blogger.com/profile/00283434937237912410noreply@blogger.com