tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post5561213532030301128..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: सुहाती नहीं है हिंसा की ये भाषाअनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-58944568585363801852007-10-25T21:42:00.000+05:302007-10-25T21:42:00.000+05:30पढ़ लिया जी.पढ़ लिया जी.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-23967567165780122632007-10-25T21:32:00.000+05:302007-10-25T21:32:00.000+05:30मैंने ब्लाग की दुनिया को नया-नया ही जाना है औऱ आपक...मैंने ब्लाग की दुनिया को नया-नया ही जाना है औऱ आपके इस लेख के जरिये मैं जनमत के ब्लाग तक पहुचने औऱ उन लेखों तक औऱ शायद इस सारी बहसों को कुछ हद तक समझ सकने में समर्थ हुई हूं। आपके ब्लाग को ध्यन्यवाद।<BR/>एक बात जो मुझे परेशान कर रही है वह यह है कि आपने अपने 'बाल-विवाह' वाले लेख में साफ-साफ लिखा है कि विचारों से बचपन में अवगत कराना अपराध है...'अधकचरी उम्र के आदर्शवादी लड़कों को वो जिस तरह शुरू में अपना आंशिक और बाद में पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनाते हैं, मेरी नज़र में वह बाल-विवाह के अपराध से किसी तरह कम नहीं है।'यहां मुझे लगता है कि आप शायद अपने वैचारिक बाल-विवाह को अपराधिक मानते हैं पर आपने जनमत पर मंडल जी के लेख पर अपनी टिप्पणी में इसे गर्व की बात कही है......<BR/>मैं बस यह कहना चाहती हूं कि ज्ञान और समझ पर उम्र और जाति का कोइ अधिकार नहीं होता... यहीं देख लिजिए, कुछ दिनों पहले के आपके लेख औऱ आज आपकी टिप्पणी बताती है कि समझदारी की कोइ उम्र नही होती औऱ वह कभी भी आप में आ सकती है।<BR/>एक दूसरी बात जो मैं आप सबसे कहना चाहती हूं वह यह है कि भगत सिंह या चन्द्रशेखर के बारे में, उनके संघर्षों के बारे में जानने और समझने के लिए एस.टी.दास जैसे लोगों के लेख पर निर्भर नहीं रहना चाहिए क्यो कि आप लोग, जैसा कि मुझे लगता है, मिडिया के सस्ती लोकप्रियता पाने के हथकण्डों समझने में आम लोगों को ज्यादा सक्षम होगे ।<BR/>क्रान्ति पढे-लिखे खाये-अघाये लोगों की मोहताज नहीं होती औऱ ऐसा अक्सर देखा है मैने कि जब ये तथाकथित ज्ञानी अपने सक्रिय जीवन में कुछ नहीं कर पाते तो एक नौकरी पकडकर दूसरे काम करने वालों पर आक्षेप लगाने का कार्य शुरु कर देते हैं। उन्हे किसान तक दंभी लगने लगते हैं और विचार की हत्या दहेज हत्या लगने लगती है। कुल मिलाकर विचार की बहस गौड हो जाती है और व्यक्ति मुख्य हो जाते हैं।Anonymousnoreply@blogger.com