tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post5387422916771274843..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: शुक्रिया ब्लॉगवाणी, सच्ची सूरत दिखाने के लिएअनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger26125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-15204928990432882142008-03-14T04:29:00.000+05:302008-03-14T04:29:00.000+05:30हमारी बात को गंभीरता से न लिया जाए।हमारी बात को गंभीरता से न लिया जाए।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-37974309209677493542008-03-13T21:56:00.000+05:302008-03-13T21:56:00.000+05:30देर आयद - वैसे मेरे संवाद से पहले आपका ये वाला पो...देर आयद - वैसे मेरे संवाद से पहले आपका ये वाला पोस्ट १७५ बार पढ़ा जा चुका था और (हालांकि बच्चों में भेदभाव नहीं होता) - मेरी पसंद में आपके इससे भी प्रखर लेख इससे कम पढे गए - पढने की चिंता न करें - चाट खाने वाले भी हैं - करेला और जामुन खाने वाले भी हैं - यही एक माध्यम है जहाँ मन की बात लिख सकते बगैर सम्पादन, अपनी शैली में - जारी रहें - ब्लॉगवाणी की पसंदों से परे - सादर - मनीषAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/08624620626295874696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-33837622481994735072008-03-13T19:09:00.000+05:302008-03-13T19:09:00.000+05:30न टू यह कोई ट्रेंड है और न ऐसे कोई ट्रेंड सेट होता...न टू यह कोई ट्रेंड है और न ऐसे कोई ट्रेंड सेट होता है. हिन्दी समाज के कितने बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं ब्लॉगर. कुल मिला कर हमीं-हम हैं. तुम हमें खुदा कहो हम तुम्हे खुदा कहें की परम्परा इस देश में बहुत पहले से चली आ रही है. यह चिंता की बात जरूर है लेकिन इसका जवाब यह भी नहीं है की फालतू लोगों की फालतू बातों के फालतू विरोध में हम अपना समय नष्ट करें. इन्हे इनके हाल पर छोडिये और अच्छे ब्लॉग पढ़ने लायक माहौल बनाइये. जिस पोस्ट में हमें पता ही है की गाली-गलौच के अलावा कुछ हो ही नहीं सकता और कुल नाखून कटा कर शहीदों की पंक्ति में नाम लिखने की प्रतिस्पर्धा ही जहाँ चल रही हो, उसके बारे में सोचने और उस पर क्लिक करने की जरूरत ही क्या है? यह सारा हिट गंदे लोगों के नाते नहीं, हमारे आपके भीतर छिपी गंदी मानसिकता ke नाते बढ़ रहा है. इससे बचने की जरूरत है.इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-58209249254916311442008-03-13T07:56:00.000+05:302008-03-13T07:56:00.000+05:30ठीक किया, आईना दिखाया।ठीक किया, आईना दिखाया।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-86207758650293300692008-03-13T07:25:00.000+05:302008-03-13T07:25:00.000+05:30@अनिलजी, जो बात आप कह रहे हो वो कोई नयी बात नही इस...@अनिलजी, जो बात आप कह रहे हो वो कोई नयी बात नही इससे पहले कितनी बार कही जा चुकी है। नारद के समय भी ये उठी थी अब आपने फिर उठायी है। सारे ग्रुपस को एक नजर से नही देखना चाहिये आपको, आप भी पहले मोहल्ला ग्रुप के मेंबर थे क्या आप भी उसके हर लेख पर जाकर पसंद पर क्लिक करते थे।<BR/><BR/>मैंने इनमें से जिसके आपके जिक्र किये हैं सिर्फ अनिताजी वाला आलेख पड़ा है और उसमें ऐसा कुछ नही है बल्कि वो पहले से चल रहे लेख की दूसरी कड़ी है। बाकी लिंक में क्या है कह नही सकता, आप का ही ये आलेख जो अब तक १६३ बार पड़ा जा चुका है मैं अब पढ़ रहा हूँ।<BR/><BR/>हिंदी ब्लोगिंग भी एक भीड़ तंत्र का हिस्सा है यहाँ ये तो होना ही था। एग्रीगेटरस के साथ यही होता है कि लोग टाईटिल देख कर ही पड़ते हैं। अरविंदजी आप ही बतायें आप कितने Individual ब्लोग जाकर पढ़ते हैं और कितनों पर टिप्पणी करते हैं। ताली दोनों हाथों से बजती है।<BR/><BR/>@विमल जी, जिन सज्जन का आपने जिक्र किया है वो महानुभाव हम ही हैं, और वो जो किया था (बच्चो और एडल्ट वाला) वो दो अलग अलग आलेख थे जिसके टाईटिल जानबूझ कर ऐसे रखे गये थे जिससे सभी हिंदी चिट्ठाकारों को आईना दिखाया जा सके। उस पूरे प्रयोग की <A HREF="http://www.readers-cafe.net/nc/2008/02/13/just-a-reply/" REL="nofollow">Explanation</A> पोस्ट भी थी लेकिन शायद आपने भी नही पढ़ी।Tarunhttps://www.blogger.com/profile/00455857004125328718noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-3659674478245202622008-03-13T04:01:00.000+05:302008-03-13T04:01:00.000+05:30भाई, हमारी पोस्ट का उल्लेख क्यों किया ? उसमें तो...भाई, हमारी पोस्ट का उल्लेख क्यों किया ? उसमें तो कोई सनसनी, मसाला या अश्लील नहीं था। फिर हमारा तो कम्युनिटी ब्लाग भी नहीं है।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-2962961941130971902008-03-12T22:04:00.000+05:302008-03-12T22:04:00.000+05:30आभार मेरे मित्र...आप मेरे भाव को समझ पाये. उसके अत...आभार मेरे मित्र...आप मेरे भाव को समझ पाये. उसके अतिरिक्त पूरा कमेंट व्यर्थ था.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-7328332191494090122008-03-12T20:13:00.000+05:302008-03-12T20:13:00.000+05:30घुघूती जी, आप सही कहती है कि, “सबका अपना अपना जीवन...घुघूती जी, आप सही कहती है कि, “सबका अपना अपना जीवन दर्शन होता है। यदि कोई ग्रुप ब्लॉग बनायेगा तो स्वाभाविक है, वहाँ लोग अधिक जाएँगे। वहाँ अधिक हिट्स, अधिक पसन्द आदि दिखेगी।” साफ सी बात है कि इसमें ब्लॉगवाणी जैसे मंच का कोई दोष नहीं है। मैं तो उस सैंपल की बात कर रहा था, जो इस मंच के जरिए सामने आया है। आज मेरी पोस्ट में पसंद की सूची में सबसे ऊपर चली गई और सबसे ज्यादा पढ़ी गई तो इसमें भी एक सैंपल नज़र आता है। लेकिन इसके आधार पर मैं यह नहीं कह सकता कि मैंने कोई श्रेष्ठ पोस्ट लिखी हैं। हां, अभी पाठकों का जो समूह है उसमें ज्यादातर ब्लॉगर हैं और अपने दायरे से जुड़ी बातों को ही तवज्जो देते हैं, पढ़ते हैं, पसंद करते हैं। मेरा कहना है कि हमें इस दायरे से निकलकर व्यापक सामाजिक सरोकारों से जुड़ना चाहिए। और, ऐसा नहीं है कि हमारे बीच में ऐसा लिखनेवाले नहीं हैं। लोग लिख ही रहे हैं और बेहतरीन लिख रहे हैं, लेकिन वो सतह पर नहीं दिख रहे। मैंने सतह की काई की बात की थी, पूरे हिंदी ब्लॉगिंग समुदाय की नहीं।<BR/>दूसरी बात, जाहिर है कि अगर ‘परोसा गया भोजन देखने में बदसूरत हो और किसी अन्य़ का परोसा सुंदर व मनमोहक हो’ तो लोग उसी पर झपटेंगे। इसमें तो कोई दो राय ही नहीं कि शीर्षक catchy होना चाहिए। लेकिन गालियां भी catchy होती हैं। मुझे इनके इस्तेमाल पर ऐतराज है और इस पर भी कि जो आप शीर्षक लगाएं, सामग्री उसी हिसाब से होनी चाहिए। न कि शीर्षक से सनसनी फैला दें और अंदर सन्नाटा हो। मैंने पाया है कि पिछले कुछ दिनों से कई ब्लॉगर ऐसा ही कर रहे हैं, जिसे एक स्वस्थ रुझान नहीं कहा जा सकता।<BR/>अंत में आप सभी का शुक्रिया, जिन्होंने अपनी राय रखकर मेरा उत्साह बढ़ाया। खासकर समीर भाई का जिन्होंने एक उदाहरण के जरिए स्थापित किया कि, “हिन्दी तो हिन्दी है, विकास मार्ग पर है नेट जगत में. एक दिन समर्द्ध हो ही जाएगी नेट पर।”अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-2965777679594557592008-03-12T18:46:00.000+05:302008-03-12T18:46:00.000+05:30घर के सामने कच्ची सड़क थी या यूँ कहिये, पहले सड़क थी...घर के सामने कच्ची सड़क थी या यूँ कहिये, पहले सड़क थी ही नहीं. बस जगह थी. चलते चलते थोड़ी समतल जरुर होने लगी थी. आबादी बढ़ी, कुछ गढ़्ढ़े भी हो गये. लोग उसी तरह चलते रहे..ज्यादा आवाजाही से समतलीकरण को जहाँ लाभ मिल रहा था, वहीं गढ़्ढ़े भी बढते जा रहे थे. मौसम मौसम बात बदलती. जहाँ बरसात में दुर्गती की गति तेज हो जाती तो सर्दीयों में उसे कुछ विराम मिलता. कुछ लोग अपने घरों के सामने के गढ़्ढ़े मिट्टी डाल कर भरवा भी देते. फिर विकास की ओर ध्यान गया. बात चली. चंदा इक्ठठा किया गया. सबने नहीं दिया. फिर भी पूरी सड़क सीमेंट की बनाने की ठानी गई. यह तो कतई नहीं सोचा गया कि जिन महानुभावों मे चंदा देने से मना कर दिया है या जो अपने घर के सामने हुआ गढ्ढ़ा तक नहीं भरवाते, उनके घर के सामने सड़क न बनवा कर वैसे ही छोड़ दिया जाये. वरना तो पूरे प्रोजेक्ट का सत्यानाश तय था. तैयारी के दौरान..फिर से सड़क खोदी गई. पत्थर भर कर बेस तैयार किया गया. उन दिनों उस बेस पर चलना बड़ा दुष्कर कार्य था. मेरी कार कई बार पंचर हुई. मगर क्या करते. सड़क के पक्का होने के लिये यह भी तो जरुरी था. कई महिने धुल मिट्टी रही. पत्थरों पर चले.<BR/><BR/>आज एक बेहतरीन आलीशान सीमेंटेड सड़क है घर के सामने..हमारे भी और उनके भी, जिन्होंने न तो चंदा दिया और न गढ़्ढे भरे थे. सड़क कोई भेदभाव नहीं कर रही. एक जैसी है सबके घर के सामने. अब हमारे इलाका शहर के समर्द्ध और विकसीत इलाकों में से एक है.<BR/><BR/>मालूम है, इससे प्रापर्टी के दाम भी बढ़ गये हैं हमारे भी और उनके भी. तो उन्होंने भी घर को रंग रोगन करा लिया है. कल देखा कि वो घर के सामने थोड़ी सफाई भी करवा रहे थे सड़क पर.<BR/><BR/>देखिये न, कितना कठीन था विकास का यह सफर.<BR/><BR/>न जाने क्यूँ, यह वाकिया अभी याद आया. हाँलाकि आपके लिखे का इससे क्या लेना देना है?<BR/><BR/>खैर, जो लिखा, वो यूँ ही है मेरे आलेखों की तरह. <BR/><BR/>हिन्दी तो हिन्दी है, विकास मार्ग पर है नेट जगत में. एक दिन समर्द्ध हो ही जायेगी नेट पर. तब तक के लिये शुभकामनायें.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-43347530198907245932008-03-12T18:06:00.000+05:302008-03-12T18:06:00.000+05:30हाँ,एक बात और, हम सब यह जो सनसनीखेज शीर्षक की बात...हाँ,एक बात और, हम सब यह जो सनसनीखेज शीर्षक की बात कर रहे हैं तो उससे क्या आप और हम बचे हैं ? मै्ने ६ मार्च को एक पोस्ट लिखी थी मेरे मामा को शेर ने काट लिया है । मुझे कल की छुट्टी चाहिये । http://ghughutibasuti.blogspot.com/2008/03/blog-post_06.html इसपर १६ टिप्पणियाँ आईं । सबने लिखा अगली पोस्ट की प्रतीक्षा है । मूर्ख की तरह अगली पोस्ट का शीर्षक मैंने उबाऊ सा रख दिया, 'शेर, चरवाहे, भारवाड़ और गोफेण ।' http://ghughutibasuti.blogspot.com/2008/03/blog-post_08.html रोधोकर ४ टिप्पणियाँ आईं । मन तो मेरा भी हुआ था कि एक बार फिर शीर्षक बदलकर पोस्ट कर देती हूँ । यदि मैं कहूँ कि यह गलत है तो कैसे गलत है ? कब किसीने हमें यह लिखित दिया था कि ब्लॉग लिखो , हम पढ़ेंगे आदि ? हम किसी भी वस्तु की तरफ पहले उसके बाहरी आकर्षण के कारण ही जाते हैं । फिर हम उसकी असली कीमत जान पाते हैं । यदि मेरे द्वारा परोसा भोजन देखने में बदसूरत हो और किसी अन्य का परोसा सुन्दर व मनमोहक तो आप कौन से भोजन पर झपटेंगे? बाद में आप शायद पाएँ कि वह भोजन आपके स्वादुनुसार नहीं है ।<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-79089370578778232462008-03-12T17:59:00.000+05:302008-03-12T17:59:00.000+05:30This comment has been removed by a blog administrator.Unknownhttps://www.blogger.com/profile/09286581823477052400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-73889380761205794502008-03-12T17:33:00.000+05:302008-03-12T17:33:00.000+05:30अनिल जी, आपकी बातें ठीक भी हैं परन्तु अन्तिम सत्य ...अनिल जी, आपकी बातें ठीक भी हैं परन्तु अन्तिम सत्य नहीं हैं । सबका अपना अपना जीवन दर्शन होता है । यदि कोई ग्रुप ब्लॉग बनायेगा तो स्वाभाविक है, वहाँ लोग अधिक जाएँगे । वहाँ अधिक हिट्स, अधिक पसन्द आदि दिखेगी। स्वतन्त्र दल बनाएँगे, उसके इकलौते सदस्य होंगे तो आपके अनुयायी भी कम होंगे। परन्तु आप स्वतन्त्र महसूस करेंगे । 'You can't have your cake and eat it too.' <BR/>इसमें अच्छी भाषा -बुरी भाषा जैसे ही मुद्दे नहीं आते। वे लोग भी जो सच्चे मन से हिन्दी की सेवा कर रहे हैं और जिन्हें लोग भी ऐसा करता मानते हैं,वे भी जब दल में काम करते हैं तो स्वाभाविक है दल में ही मत देंगे । किसी भी चुनाव या पसन्द नापसन्द के चुनाव में वही जीतेगा जो किसी दल का प्रतिनिधित्व कर रहा हो । इसपर यदि हम या आप आश्चर्यचकित रह जाएँ तो यह हमारी मूर्खता है । मुझे तो सच में आश्चर्य होता है जब कोई इसके विपरीत आशा रखता है । <BR/> <BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-9643350834201821182008-03-12T15:40:00.000+05:302008-03-12T15:40:00.000+05:30आजकल हर जगह सनसनी खेज बातों को ही ज्यादा महत्त्व ...आजकल हर जगह सनसनी खेज बातों को ही ज्यादा महत्त्व दिया जाता है।mamtahttps://www.blogger.com/profile/05350694731690138562noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-88013181200409242032008-03-12T15:32:00.000+05:302008-03-12T15:32:00.000+05:30ओह! मैने तो फीड एग्रेगेटर पर इस प्रकार सोचा ही नही...ओह! मैने तो फीड एग्रेगेटर पर इस प्रकार सोचा ही नहीं। अपना तो गूगल रीडर जिन्दाबाद!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-74496515832580524152008-03-12T13:29:00.000+05:302008-03-12T13:29:00.000+05:30यहाँ पर अभी तक चैनलिया तर्क नहीं दिया गया!! की चिट...यहाँ पर अभी तक चैनलिया तर्क नहीं दिया गया!! की चिट्ठों पर वहीं लिखा जा रहा हैं जो लोग पढ़ना चाहते है.!!संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-35939683647870707532008-03-12T12:34:00.000+05:302008-03-12T12:34:00.000+05:30अनिल जी! जरा एक निगाह यहाँ डालेंब्लोगवाणी के निरर्...अनिल जी! जरा एक निगाह यहाँ डालें<A HREF="http://blogbuddhi.blogspot.com/2008/03/blog-post_12.html" REL="nofollow">ब्लोगवाणी के निरर्थक रेटिंग का सच</A>Vikashhttps://www.blogger.com/profile/01373877834398732074noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-27760829849576564332008-03-12T12:00:00.000+05:302008-03-12T12:00:00.000+05:30अनिल जी, आपकी विंताएं बिल्कुल वाजिब हैं। ब्लॉग इ...अनिल जी, आपकी विंताएं बिल्कुल वाजिब हैं। ब्लॉग इस समाज से अलग कोई चीज तो है नहीं। यहां भी वही सब संकीर्णताएं और चिरकुटइयां भरी पड़ी हैं, जो बाहर के समाज में। आखिर लोग तो वही हैं।मनीषा पांडेhttps://www.blogger.com/profile/01771275949371202944noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-35512737197115433902008-03-12T11:45:00.000+05:302008-03-12T11:45:00.000+05:30This comment has been removed by the author.Vikashhttps://www.blogger.com/profile/01373877834398732074noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-80134158993560251112008-03-12T11:35:00.001+05:302008-03-12T11:35:00.001+05:30क्षमा चाहते हैं. लेख में अधीरता और अधूरेपन के दर्श...क्षमा चाहते हैं. लेख में अधीरता और अधूरेपन के दर्शन हो रहे हैं. आखिरी दो paragraphs पूर्वाग्रह के लक्षण दिखाते हैं. जरा जरा सी बात पर हाय समाज हाय समाज करने की कौन सी विवशता आन पड़ी है अनिल भाई? कौन पापी लिस्ट में चढ़ गया वो तो आपने बता दिया लेकिन कौन पिछड़ गया ये नहीं बताया. <BR/><BR/>इन ब्लॉग ratings का कोई ख़ास अर्थ नहीं है. सबसे अच्छे चिट्ठे (प्रमोद जी, ज्ञान जी, अनूप शुक्ल जी, आलोक पुराणिक जी, शिव कुमार जी इत्यादी इत्यादी) तो हमारी तरह कई लोगों ने बुकमार्क में जोड़ रखे होंगे. सीधे इन ब्लॉग पर जाकर पढ़ लेने से ब्लागवाणी का counter तो घूमने से रहा.<BR/><BR/>दूसरे कई लोग ब्लागवाणी की इन लिस्ट से भी चुन कर ब्लॉग पढ़ते हैं. अब देखिये कितना catchy टाइटल है: "ब्लागवाणी का सर्वनाश हो". तो भई यहाँ से क्लिक्कियाय कर पहुँच गए. लिस्ट में थोड़े ही लिखा होता है किस ब्लॉग पर ले जायेगी सवारी को. (वैसे नीचे status bar में ब्लॉग का पता ठिकाना आता तो है दबा हुआ सा, पर कितने लोग ध्यान देते हैं) जब भाषाई गहराही और वैचारिक उच्चता के दर्शन किए तो हकबकाए कर भाग लिए आपकी तरह. जो भी हो counter तो चढ़ ही चुका एक और बार.<BR/><BR/>तो अनिल जी परेशान न होइए, बस लगे रहिये. आपके कुछ आलेख भी बहुत अच्छे थे.Ghost Busterhttps://www.blogger.com/profile/02298445921360730184noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-10743145159548377952008-03-12T11:35:00.000+05:302008-03-12T11:35:00.000+05:30काफ़ी रिसर्च और होमवर्क के बाद लिखा है आपने यह लेख....काफ़ी रिसर्च और होमवर्क के बाद लिखा है आपने यह लेख.... इतनी सूचना परोसने के लिये साधूवादMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-5349207674531554232008-03-12T11:12:00.000+05:302008-03-12T11:12:00.000+05:30भीड़ की भेड़चाल तो हमेशा रहेगी । कुछ अलग खोजने में ज...भीड़ की भेड़चाल तो हमेशा रहेगी । कुछ अलग खोजने में जुटे लोगों को कुछ अलग मिलता भी रहता है । अब तक .. गनीमत है।Pratyakshahttps://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-14276622450354960452008-03-12T11:05:00.000+05:302008-03-12T11:05:00.000+05:30समाज तो पहले जैसा ही है...थोड़ा कम ज्यादा...परिवर्...समाज तो पहले जैसा ही है...थोड़ा कम ज्यादा...परिवर्तन हमेशा बहुत कम गिने चुने लोग ही लाते हैं...चाहो तो वहाँ रहो और बदलो जो बदलने की जरूरत है...Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16964389992273176028noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-32705086485927195932008-03-12T10:54:00.001+05:302008-03-12T10:54:00.001+05:30अनिल भाई,बाकी लोगों के बारे में नहीं जानता पर अपने...अनिल भाई,बाकी लोगों के बारे में नहीं जानता पर अपने बारे में मैं ये तो कह सकता हूँ कि भाई हम वाकई ठस्स हो गये हैं,अपनी ज़िन्दगी में तो वैसे कुछ भी उथल पुथल तो नहीं ही है सब खरामा खरामा चल रहा है ,पर जहां कुछ भी झांय झपट देखते हैं कौतुहल वश चले जाते हैं..पर निरवता टूटती दिखती नहीं..अभी भी हम शीर्षक देखकर तय करते हैं कि पढ़ा जाय कि नहीं...कुछ दिनों पहले एक सज्जन ने बच्चों के कुछ लिखा उसे किसी ने भी नहीं पढ़ा..पर उसी लेख का शीर्षक बदलकर कर उसने लिखा कि ये सिर्फ़ एडल्ट पढ़ सकते हैं तो उन्हें काफ़ी हिट मिला..कहीं हम भीड़ तो नहीं हुए जा रहे हैं.....VIMAL VERMAhttps://www.blogger.com/profile/13683741615028253101noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-28219527990533854372008-03-12T10:54:00.000+05:302008-03-12T10:54:00.000+05:30This comment has been removed by the author.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-3780336082288748662008-03-12T10:23:00.000+05:302008-03-12T10:23:00.000+05:30सही चिंतायें हैं.. खूब हंटर चलाइए.. ब्लागवाणी की ...सही चिंतायें हैं.. खूब हंटर चलाइए.. ब्लागवाणी की 'आज की पसंद' और 'आज सबसे ज़्यादा पढ़ा गया' चिरकुटई के चरम में बदल चुकी है और मज़ेदार है कि मैथिली साहब उसे बदलने की सोच भी नहीं रहे? सोच रहे हैं?.. <BR/>लेकिन जैसा स्वप्नदर्शी कह रही हैं शो और शोर-शराबे से अलग लोग कुछ और देखना चाहते हैं? पढ़ना?.. मगर पॉडकास्ट पर आप गुस्सा क्यों निकाल रहे हैं? मेरे पास कैमरा होता तो मैं रोज़-रोज़ वीडियो भी चढ़ा रहा होता..azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.com