tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post4954004595640748529..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: अतृप्त आत्माओं से भरा है हमारा हिंदी समाजअनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-20809785249155548112008-02-16T20:36:00.000+05:302008-02-16T20:36:00.000+05:30बढ़िया लिखा है । परन्तु लिखेगा तो अतृप्त ही ! जो तृ...बढ़िया लिखा है । परन्तु लिखेगा तो अतृप्त ही ! जो तृप्त हो गया वह तो हिमालय की कन्दराओं में जाकर बसेरा करेगा । वैसे भी वाद विवाद करना हमारी संस्कृति का एक अभिन्न अंग रहा है । यह तभी रुका जब हम गुलाम हुए । जब शेष संसार को ढंग से बात करना नहीं आता था तबसे हमारे ॠषि मुनि, विद्वान यह करते आ रहे हैं । कालिदास को भूल गए ? यदि वाद विवाद ना जीत सकते तो विवाह भी न हो पाता था तब !<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-19940439255884918032008-02-16T16:25:00.000+05:302008-02-16T16:25:00.000+05:30आपसे शत प्रतिशत सहमत! ... और इसी वजह से मुझे कहीं ...आपसे शत प्रतिशत सहमत! ... और इसी वजह से मुझे कहीं टिप्पणी करने में भी डर लगता है कहीं अन्जाने में ऐसा कोई शब्द लिख दिया तो बस फिर तूफान आने में समय नहीं लगेगा।सागर नाहरhttps://www.blogger.com/profile/16373337058059710391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-32625632517512166212008-02-16T14:48:00.000+05:302008-02-16T14:48:00.000+05:30अनिल जी, सही कहा आपने. लेकिन सोचिये अगर कोई आत्मा,...अनिल जी, सही कहा आपने. लेकिन सोचिये अगर कोई आत्मा, चाहे वो ब्लोग में हो, या इसके बाहर, अगर 'त्रिप्त' हो गयी तो क्या 'मोक्छ' को प्राप्त नही हो जायेगी? फिर तो वो पिन्ड्दान के लायक हो जायेगी. ये सारा समाज ही 'अत्रिप्त' आत्माओं का समाज है. जो वंचित हैं वो तो हैं ही, जो 'माल' चाभ रहे हैं, वे तो और भी 'अत्रिप्त' हैं. बस डरिये नहीं. लिखते रहिये.Uday Prakashhttps://www.blogger.com/profile/07587503029581457151noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-53154437069404746402008-02-16T14:20:00.000+05:302008-02-16T14:20:00.000+05:30अनिल भाई , बहुत सार्थक रहा अतृप्त आत्माओं का यह नय...अनिल भाई , बहुत सार्थक रहा अतृप्त आत्माओं का यह नया अवतार। मैं खुद को असहज महसूस कर रहा था और आपको लिखने भी वाला था कि अतृप्त आत्माओं का भला आप ही कर सकते हैं, सो आपने पहले ही कर डाला।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-66986623084847077452008-02-16T12:29:00.000+05:302008-02-16T12:29:00.000+05:30atrapt aatmao ka pataa nahi.magar hindi blogging e...atrapt aatmao ka pataa nahi.magar hindi blogging ek sundar bandhan hai jo aapsi uthhapatak,bahas gussa garmi ke baavzuud apney aap me anuutha hai...aapki post munbhaayiपारुल "पुखराज"https://www.blogger.com/profile/05288809810207602336noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-40753612225426836802008-02-16T12:27:00.000+05:302008-02-16T12:27:00.000+05:30This comment has been removed by the author.पारुल "पुखराज"https://www.blogger.com/profile/05288809810207602336noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-2405724153640599652008-02-16T10:58:00.000+05:302008-02-16T10:58:00.000+05:30bahut sahee pakadaabahut sahee pakadaaस्वप्नदर्शीhttps://www.blogger.com/profile/15273098014066821195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-88157887573762251292008-02-16T10:21:00.000+05:302008-02-16T10:21:00.000+05:30हाँ बहुत सही । अनगढ बेचैनियों वाला हिन्दी समाज , क...हाँ बहुत सही । <BR/>अनगढ बेचैनियों वाला हिन्दी समाज , कई बार असमझ करवटें लेता है ,एक दूसरे को पटखनी देता है ....पर शायद यही प्रक्रिया है ..आहत अहम वाले समाज के लिये अस्मिता को पाने की .....सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/10694935217124478698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-7010457448952148202008-02-16T10:10:00.000+05:302008-02-16T10:10:00.000+05:30सर बहुत गहरी बात कही है आपने.सर बहुत गहरी बात कही है आपने.बालकिशनhttps://www.blogger.com/profile/18245891263227015744noreply@blogger.com