tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post4542349945773808141..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: आधा तीतर, आधा बटेर तो कभी मुर्गा छाप पटाखेअनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-45596377567697516532007-08-18T05:39:00.000+05:302007-08-18T05:39:00.000+05:30आत्मा को झकझोर कर रख दिया आपके विचार ने। सोचने के...आत्मा को झकझोर कर रख दिया आपके विचार ने। सोचने के लिए मजबूर हो गया...प्रसून पंकजhttps://www.blogger.com/profile/03381478284845481119noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-17205821345804680012007-08-15T19:18:00.000+05:302007-08-15T19:18:00.000+05:30यकीन मानिए आदर्श की बातें हम सबसे अंजान नहीं हैं ....यकीन मानिए आदर्श की बातें हम सबसे अंजान नहीं हैं ... <BR/>चलते फिरते ... उठते बैठते ... कई बार ऐसे सवाल दिल में उठते हैं और शायद इन्हीं भावनाएं की बदौलत “ हम कुछ और कर सकते थे “ की परिधि से निकलकर ये सवाल एक ऐसे पेशे में सिमट गए हैं जो तमाम दिक्कतों ... परेशानियों के बावजूद बेहद आत्मीय है ... <BR/>आदर्श, देश की राजनीति का सफरनामा हर इंसान के नजरिए से अलग हो सकता है ये मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि हममें से कोई दक्षिणपंथी हैं ... तो कोई वामपंथी ... हालांकि बेहद तार्किक होकर सोचने वाले हर इंसान इस बात को शिद्दत से मानेगा कि भले ही हम रॉकेट से उड़ें ... या कंम्पयूटर से अपने दैन्दिनी तय करें विकास के लिए ये पैरामीटर मायने नहीं रखते .... आज भी हमारे आदिवासी जंगलों से रिजर्व फॉरेस्ट , उद्योग धंधे , शहरी अमीरों के ( सेकेन्ड होम) के लिए भगाए जाते हैं ... और जब वो रोजी के लिए शहर का मुंह ताकते हैं … तो हम अपनी जिंदगी को सस्ता बनाने के लिए उनका इस्तेमाल तो कर लेते हैं ... लेकिन हमारे बड़े शहरों के पास इतना छोटा सा दिल नहीं होता कि उन्हें सिर छुपाने के लिए जगह दे दें ...<BR/>खैर मैं शायद आपके सवाल को कोई और मोड़ दे दूं ... <BR/>इसलिए अंत मैं सिर्फ इतना लिखना चाहता हूं कि जिस पेशे से हम सब इतना प्यार करते हैं कहीं बाजारवाद उस पर इतना हावी न हो जाए कि भूख ... बेरोजगारी ... बुनियादी सुविधाओं से ध्यान हटाकर लोगों को मंडल – कमंडल, मंदिर – मस्जिद और इंडिया शाइनिंग के भूल भूलैय्ये में छोड़ने का जो षडयंत्र हमारे नेता रचते हैं ... उसमें कहीं हम भी भागीदार न बन जाएं<BR/>क्योंकि लोग क्या देखना चाहते हैं ये एक सवाल तो है ... लेकिन ये सवाल इस बुनियाद पर भी खड़ा हो सकता है कि हम क्या दिखा रहे हैं ...<BR/>आपका <BR/>अनुराग द्वारीAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-23611850514014656582007-08-15T16:05:00.000+05:302007-08-15T16:05:00.000+05:30आदर्श के पापा की बात से इत्तेफाक रखते हुए अकबर इला...आदर्श के पापा की बात से इत्तेफाक रखते हुए अकबर इलाहाबादी का एक शेर अर्ज है...<BR/>हम क्या कहें अहबाब क्या कार-ए-नुमाया कर गए।<BR/>बीए किया, एमए किया, अफसर हुए और मर गए।।Unknownhttps://www.blogger.com/profile/03362346877261091863noreply@blogger.com