tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post4524777513541389387..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: सारे इंसानों का एक इंसान होता तो पागल होताअनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-88456841868407697262008-01-14T19:50:00.000+05:302008-01-14T19:50:00.000+05:30सहमत सा होता पा रहा हूं।सहमत सा होता पा रहा हूं।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-7344319587007695792008-01-14T16:59:00.000+05:302008-01-14T16:59:00.000+05:30अनिलजी मेरा मानना है १५-२० की बजाय पिछली शताब्दी क...अनिलजी मेरा मानना है १५-२० की बजाय पिछली शताब्दी करदें तो ज्यादा सही होगा। पॉल पॉट , हिटलर, मुसोलिनी और इदी अमीन पिछले पन्द्रह बीस सालों में तो कम से कम नहीं ही हुए।सागर नाहरhttps://www.blogger.com/profile/16373337058059710391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-24090375833649128112008-01-14T16:36:00.000+05:302008-01-14T16:36:00.000+05:30अनिल जी काफी गंभीर और अच्छे विषय का चयन किया आपने।...अनिल जी काफी गंभीर और अच्छे विषय का चयन किया आपने। लेख खुद को जानने-समझने को मजबूर करता है। कृष्ण में समाहित सृष्टि अर्जुन की हर जिज्ञासा का समाधान थी। लेकिन इस प्रेरक प्रसंग की वर्तमान में कल्पना डराने वाली दिखाई देती है। सचमुच एक समय में दोहरे चरित्र (या इससे अधिक)जीने वाला दुनिया की नज़रों में पागल ही होता है। हालांकि पागल के बारे में भी कई अवधाराणाएं हैं उनमें से एक है 'जो व्यवहारगत औपचारिकताओं का आवरण उतार कर फेंक देता है उसे लोग पागल कहते हैं'। वर्तमान में ये व्यवहारगत औपचारिकताएं भी गहन पड़ताल की गुजारिश करती हैं। लेख पीड़ाबोध(नैतिकता) के जिस मुकाम पर आकर ठहरा वो बिंदु नया न होते हुए भी पाठक को ठहरने सोचने पर मजबूर करता है। देखना ये है विषय प्रवर्तन लेख को कौन सा पड़ाव देता है। बधाई।Sandeep Singhhttps://www.blogger.com/profile/17906848453225471578noreply@blogger.com