tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post4313838590439668591..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: सूंघ नहीं सकते तो अच्छा सोच नहीं सकतेअनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-70967890686425880242007-10-02T13:23:00.000+05:302007-10-02T13:23:00.000+05:30सही है। ब्लाग् मैदान् में जाकर् लिखा जाये अब्! :)सही है। ब्लाग् मैदान् में जाकर् लिखा जाये अब्! :)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-55720936138541648542007-10-01T17:46:00.000+05:302007-10-01T17:46:00.000+05:30एक दम सही कहा है अनिल जी अगर खिड़की और दरवाजे बंद ह...एक दम सही कहा है अनिल जी अगर खिड़की और दरवाजे बंद हों तो दिमाग भी कुंद हो जाता है। क्यों कि शरीर की खुराक भले ही भोजन हो परंतु दिमाग की खुराक तो शुद्ध और ताज़ा हवा है। तभी तो कोई महान कृति बन्द कमरे मे बौठ कर नहीं लिखी गई।विकास परिहारhttps://www.blogger.com/profile/07464951480879374842noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-62577456992557603072007-10-01T10:40:00.000+05:302007-10-01T10:40:00.000+05:30हूँ! देखिए, हम लोग यानी पत्रकार निरंतर सूंघते रहते...हूँ! देखिए, हम लोग यानी पत्रकार निरंतर सूंघते रहते हैं. शायद इसीलिए हमारी सोच हमेशा अच्छी बनी रहती है.इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-20875098513824369542007-10-01T08:40:00.000+05:302007-10-01T08:40:00.000+05:30मुझे अपने गोलू (दिवंगत कुत्ते) की याद हो आई. वह वर...मुझे अपने <A HREF="http://igdp.blogspot.com/2007/03/golu-refused-to-give-me-chance-to-win.html" REL="nofollow">गोलू (दिवंगत कुत्ते)</A> की याद हो आई. वह वर्षा के मौसम में ठीक से सूंघ नहीँ पाता था. तेज वर्षा उसकी घ्राण शक्ति को प्रभावित करती थी. उसका रिस्पॉंस इरेटिक हो जाता था और व्यवहार चिड़चिड़ा. <BR/>घ्राण शक्ति मेधा का महत्वपूर्ण हिस्सा है. आपने सही फरमाया.Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-69088925146137568352007-10-01T08:12:00.000+05:302007-10-01T08:12:00.000+05:30कुछ समय पहले एक डॉक्यूमेन्ट्री में देखा कि गंध म...कुछ समय पहले एक डॉक्यूमेन्ट्री में देखा कि गंध मनुष्य के लिए कितनी अहम है । इस डॉक्यूमेन्ट्री में एक वैज्ञानिक प्रयोग का ब्यौरा दिखाया गया था । और बताया गया था कि हमारे खाने का स्वाद हमें अपनी स्वाद ग्रंथियों से कम और गंध से ज्यादा मिलता है । <BR/>यानी अगर आपको केसर खिलाया जाये या दूध में पिलाया जाये और आपकी नाक पर क्लिप लगा दिया जाये तो आपको कुछ पता ही नहीं चलेगा कि क्या खाया । इसीलिए जुकाम होने पर कई चीज़ों का स्वाद ही नहीं मिलता । इससे हमें एक बाद समझ में आई । <BR/>नाक वाकई 'बड़ी' चीज़ है । मुंह से भी बड़ी ।Yunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-28466638770654312502007-10-01T07:45:00.000+05:302007-10-01T07:45:00.000+05:30कभी कोई कहता था कि अमोनिया की गंध बड़ी तीव्र होती ह...कभी कोई कहता था कि अमोनिया की गंध बड़ी तीव्र होती है फिर मंत्री जी ने मुझे समझाया कि जिस द्रव्य की गंध सबसे तेज होती है वो है पैसा. तभी तो बिना पुकारे उसकी तरफ नेताओं का रुख बरबस ही हो आता है. नसला भी इसमें अवरोधक नहीं बन पाता.<BR/><BR/>वैसे तो कनाडा में चार माह छोड़ कर अगर खिड़की-दरवाजा खोलकर सो जायें तो अगले दिन से घर पर ताला ही लगा मिलेगा और हम धरा के नीचे सो रहे होंगे यहाँ के रिवाज के मुताबिक.<BR/><BR/>भाई मेरे, कोशिश फिर भी रहेगी कि सर्दी में भी कुछ लिख पायें खुले दिमाग से. बस हमारे लिये शुभकामनायें बनाये रहें. बड़ी घबड़ाहट हो रही है कि सर्दी में मेरे ब्लॉग का क्या होगा.<BR/><BR/>अभी से लिख कर रख लूँ क्या अगले आठ महिने का स्टॉक..इसके पहले कि दिमाग बंद हो. :)Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com